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यूपी: दरोगा ने 'लेटर' में की ऐसी गड़बड़, पुलिस आरोपी की जगह जज को ही 'अरेस्ट' करने पहुंच गई

UP Police News: यूपी की एक अदालत ने आदेश जारी किया, जिसमें आरोपी तक पुलिस को पहुंचना था. लेकिन दरोगा ने ऐसी गड़बड़ की, जिससे पुलिस आदेश जारी करने वाली मजिस्ट्रेट को ही खोजने लगी. आखिर ये पूरा मामला है क्या?

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चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट नगमा खान ने पुलिस अधिकारी को कड़ी फटकार लगाई. (सांकेतिक तस्वीर: PTI)

23 मार्च को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh Police) की एक अदालत में बड़ा विचित्र माहौल बन गया. चोरी के एक मामले की सुनवाई होनी थी. अभियुक्त फरार था. अदालत ने एक निर्देश (उद्घोषणा) जारी किया था. पुलिस को आरोपी के बारे में पता करने को कहा गया था. ताकि वो कोर्ट में पेश हो सके और अपना पक्ष रख सके. एक सब-इंस्पेक्टर अदालत में उपस्थित हुए. उन्होंने अदालत को बताया कि पुलिस ‘आरोपी’ नगमा खान की खोज में उनके आवास पर गई थी. लेकिन वो वहां मिली नहीं. इसलिए पुलिस ने मजिस्ट्रेट से आग्रह किया कि वो ‘आरोपी’ नगमा खान के खिलाफ फैसला सुनाएं.

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अब इसमें विचित्र क्या है? दरअसल, पुलिस जिसे ‘आरोपी’ नगमा खान कह रही थी, वो वास्तव में सामने बैठीं चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट नगमा खान थीं. और आरोपी के खिलाफ उन्होंने ही निर्देश दिया था. अब ये गड़बड़ी हुई कैसे?

आरोपी की जगह मजिस्ट्रेट को ही खोजने लगी पुलिस

असली आरोपी का नाम है- राजकुमार उर्फ ​​पप्पू. मजिस्ट्रेट नगमा खान ने जब उसके खिलाफ आदेश जारी किया, तो ये आदेश संबंधित थाने में भेजा गया. थाने के सब इंस्पेक्टर ने कार्रवाई के लिए उसे आगे बढ़ाया. लेकिन एक गलती कर दी. उसने निर्देश को गैर-जमानती वारंट बता दिया और जहां आरोपी/अपराधी का नाम लिखना था, वहां आदेश जारी करने वाली मजिस्ट्रेट का ही नाम लिख दिया.

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अब सब-इंस्पेक्टर बनवारीलाल, राजकुमार की जगह नगमा खान की तलाश में लग गए. 23 मार्च को जब कोर्ट को इस गड़बड़ी का पता चला तो मजिस्ट्रेट ने उनको कड़ी फटकार लगाई. 

Chief Judicial Magistrate Nagma Khan
चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट नगमा खान. (फाइल फोटो: इलाहाबाद हाईकोर्ट)
फिर जज ने क्या कहा?

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा,

ये बहुत ही विचित्र बात है. पुलिस स्टेशन के अधिकारी को इस बात का बहुत कम या बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है कि अदालत ने क्या भेजा था. उसे ये भी नहीं पता कि इसे वास्तव में किसने और किसके खिलाफ भेजा था. अधिकारी को CrPC की धारा 82 के तहत जारी निर्देश का अनुपालन करना था. ऐसा लगता है कि उन्हें बेसिक जानकारी भी नहीं थी.

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CrPC की धारा 82 के तहत उद्घोषणा तब जारी की जाती है, जब अभियुक्त फरार होता है या खुद को छिपा रहा होता है. इस उद्घोषणा के बाद भी अगर आरोपी अदालत में पेश नहीं होता तो उसकी गिरफ्तारी हो सकती है.

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