तेलंगाना के निजामाबाद से एक ऐसा दृश्य सामने आया, जिसने इंसानियत और इंसाफ की एक अनोखी मिसाल लोगों के सामने रख दी. यहां 28 अप्रैल को बोदन कोर्ट में एक बुजुर्ग दंपती अपनी सुनवाई के लिए पहुंचे. लेकिन इनकी कहानी कोई आम कोर्ट ड्रामा नहीं थी. ये दोनों रायकर गांव से ऑटो-रिक्शा में आए थे, मगर उम्र और कमजोरी ने इनके पैरों को ऐसा जकड़ा कि कोर्टरूम तक जाना नामुमकिन था. अब इंसाफ की आस लिए ये ऑटो में ही बैठे रहे. तभी कोर्ट के जज को इसकी खबर मिली. जज साहब ने जो किया, वो दिल जीत लेने वाला था.
बहू ने बुजुर्ग सास-ससुर पर दहेज उत्पीड़न का केस किया, हालत देख जज ने कोर्ट के बाहर किया इंसाफ
कांतापु सयाम्मा और कांतापु नादपी गंगाराम अपने एक केस के सिलसिले में 28 अप्रैल को बोदन कोर्ट पहुंचे थे. तभी जूनियर फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट एसम्पेल्ली साई शिवा को इसकी खबर मिली. वो अपनी कुर्सी छोड़कर कोर्टरूम से बाहर निकले और सीधे ऑटो के पास पहुंच गए. वहां, सड़क किनारे ही उन्होंने बुजुर्ग कपल की बात सुनी.

दरअसल, कांतापु सयाम्मा और कांतापु नादपी गंगाराम अपने एक केस के सिलसिले में 28 अप्रैल को बोदन कोर्ट पहुंचे थे. तभी जूनियर फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट एसम्पेल्ली साई शिवा को इसकी खबर मिली. वो अपनी कुर्सी छोड़कर कोर्टरूम से बाहर निकले और सीधे ऑटो के पास पहुंच गए. वहां, सड़क किनारे ही उन्होंने बुजुर्ग कपल की बात सुनी. मामला था दहेज उत्पीड़न का, जो इनके खिलाफ दर्ज था. जज साहब ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं, दस्तावेज देखे और फिर फैसला सुना दिया. फैसला, केस खारिज. सायम्मा और गंगाराम को इंसाफ मिला, वो भी बिना कोर्ट की सीढ़ियां चढ़े.
ये छोटी सी घटना सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई. कोर्ट के बाहर की एक तस्वीर भी वायरल हो गई. लोग जज के बारे में पूछने लगे. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक जज शिवा ने हैदराबाद के महात्मा गांधी लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई पूरी की. साल 2023 में उन्होंने सिविल जज की परीक्षा क्वालीफाई की. रिपोर्ट के मुताबिक एग्जाम क्वालीफाई करने के बाद उन्होंने कहा था,
बहू ने दर्ज कराया था मामला"बचपन से ही मेरा झुकाव कानूनी मामलों की ओर रहा है. मैंने पीड़ित और आरोपी व्यक्ति के बीच खड़े होकर जज की भूमिका चुनी. मैं पीड़ितों को न्याय दिलाने के अलावा मामलों का तेजी से निपटारा करने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं. मैं एक अदालत के जज का पद संभालने के लिए उत्साहित हूं."
अब आते हैं सायम्मा और गंगाराम के मामले पर. कोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक कांतापु सयाम्मा और कांतापु नादपी गंगाराम पर 2021 में तेलंगाना पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत वैवाहिक क्रूरता का मामला दर्ज किया गया था. दिसंबर 2021 में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल किया गया, जिसके बाद बोधन कोर्ट में मुकदमा चला. करीब 30 सुनवाई के बाद कोर्ट ने 22 अप्रैल को मामले पर फैसला सुनाने की बात की थी.
रिपोर्ट के मुताबिक इससे एक महीने पहले कोर्ट को बताया गया कि दंपती दुर्घटना का शिकार हो गए हैं और चलने में असमर्थ हैं. दंपती की स्थिति को देखते हुए जज ने 30 अप्रैल को इस मामले में फैसला सुनाया. बुजुर्ग दंपती के खिलाफ उनकी बहू द्वारा दर्ज कराया गया ये मामला झूठा पाया गया. कोर्ट ने आदेश में बताया,
"आरोपी नंबर 1 और 2 IPC की धारा 498 ए के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी नहीं पाए गए."
जज शिवा का ये कदम सिर्फ एक केस का फैसला नहीं, बल्कि एक मिसाल है. उन्होंने दिखाया कि इंसाफ की राह में अगर इंसानियत साथ हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं. पर सवाल ये है कि क्या हर कोर्ट में ऐसा जज मिलेगा? क्या सिस्टम बदलेगा, ताकि सायम्मा-गंगाराम जैसे लोग बिना सड़क पर सुनवाई के इंसाफ पा सकें?
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