उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कोई नियम बनाने में क्या दिक्कत है. हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जी नरेंद्र की पीठ ने उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता अधिनियम, 2024 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये बात कही है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक आरुषि गुप्ता द्वारा दायर एक जनहित याचिका में विवाह, तलाक और लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े प्रावधानों को चुनौती दी गई थी. इसमें तर्क दिया गया कि ये नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.
'लिव-इन में बच्चा हुआ, फिर रिश्ता टूटा तो... ', UCC पर HC ने सरकार से कड़े सवाल पूछ लिए
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जी नरेंद्र की पीठ ने उत्तराखंड के UCC 2024 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये बात कही है. कई याचिकाओं में लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े प्रावधानों को चुनौती दी गई थी. इनमें तर्क दिया गया कि ये नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. कोर्ट में क्या-क्या हुआ?

एक याचिका अलमासुद्दीन सिद्दीकी और इकराम द्वारा दायर की गई थी. याचिका में UCC की उस लिस्ट को चुनौती दी गई जिसके तहत कुछ रिश्तों को गैरकानूनी कहा गया है. याचिका में कहा गया कि इस तरह का प्रावधान न केवल याचिकाकर्ताओं के विवाह के धार्मिक अधिकार में बाधा डलता है, बल्कि ऐसे विवाह को अपराध मानता है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार, 12 फरवरी को चीफ जस्टिस जी नरेंद्र और जस्टिस आशीष नैथानी की बेंच ने इन याचिकाओं पर सुनवाई की. UCC की धारा 387 (1) के तहत लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन न कराये जाने पर तीन महीने तक की कैद या 10,000 रुपये का जुर्माना या दोनों के साथ इसे अपराध माना गया है. चीफ जस्टिस ने राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इसकी वजह पूछी.
चीफ जस्टिस ने ये भी पूछा कि लिव-इन रिलेशनशिप को रेगुलेट करने में क्या दिक्क्त है? कहा,
लिव-इन रिलेशनशिप में बहुत कुछ गलत भी हो सकता है, अगर ये रिश्ता टूट गया तो क्या होगा? अगर इस रिश्ते से कोई बच्चा हो गया तो उसका क्या होगा? विवाह के मामले में तो पितृत्व को लेकर एक धारणा है, लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में वह धारणा कहां है? क्या किसी की निजता के हनन की आड़ में किसी अन्य व्यक्ति के आत्मसम्मान की बलि दी जा सकती है, और वो भी तब जब वह (ऐसे रिश्ते में पैदा हुआ) बच्चा हो और माता-पिता की शादी का कोई सबूत भी न हो.
इसके बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि लिव-इन में रजिट्रेशन का प्रावधान महिला सशक्तिकरण के लिए किया गया है.
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून के तहत लिव-इन रिलेशनशिप भी आता है. आगे बोले कि यहां समस्या सिर्फ महिलाओं की नहीं है. बल्कि पितृत्व साबित करने की भी है.
इसके बाद तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें सभी सवालों के जवाब के लिए छह हफ्ते का समय दिया जाए. इसके बाद कोर्ट ने उन्हें छह हफ्ते का समय दे दिया.
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