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इलाहाबाद हाई कोर्ट के 13 जजों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया, आदेश न मानने की अपील की

Allahabad High Court के 13 जजों ने चीफ जस्टिस अरुण भंसाली को एक पत्र लिखा है. आग्रह किया गया है कि Justice Prashant Kumar को आपराधिक रोस्टर से हटाने के Supreme Court के आदेश को लागू न किया जाए.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जजों ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का विरोध किया है. (फाइल फोटो: एजेंसी)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के एक जज के लिए सख्त आदेश सुनाया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा था कि जस्टिस प्रशांत कुमार को सेवानिवृत्ति तक आपराधिक मामलों की सुनवाई करने से रोक दिया जाए. इस आदेश के तीन दिन बाद हाई कोर्ट के कई जज, जस्टिस प्रशांत के समर्थन में आवाज उठा रहे हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का विरोध किया है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के 13 जजों ने चीफ जस्टिस अरुण भंसाली को एक पत्र लिखा है. उन्होंने कोर्ट के सभी न्यायाधीशों की मौजूदगी में एक बैठक बुलाने की मांग की है. साथ ही ये आग्रह भी किया गया है कि जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक रोस्टर से हटाने के शीर्ष अदालत के आदेश को लागू न किया जाए.

ये पत्र 7 अगस्त को साझा किया गया. इस लेटर में लिखा गया है,

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पूरा कोर्ट ये फैसला करता है कि 4 अगस्त 2025 के विषयगत आदेश के पैरा 24 से 26 में दिए गए निर्देशों का पालन नहीं किया जाना चाहिए. क्योंकि शीर्ष अदालत के पास उच्च न्यायालयों के लिए प्रशासनिक अधीक्षण (कामकाज के संचालन पर उच्च-स्तरीय देखरेख और नियंत्रण) नहीं है.

हाई कोर्ट के जजों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हावभाव के प्रति भी अपनी नाराजगी जताई.

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस प्रशांत कुमार के लिए कहा क्या था?

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, 4 अगस्त 2025 को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जस्टिस प्रशांत कुमार को फटकार लगाई थी. पीठ ने कहा कि जस्टिस प्रशांत कुमार ने अपने लिए दयनीय स्थिति बना ली है और न्याय का मजाक उड़ाया है.

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शीर्ष अदालत ने इस बात पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई कि पैसों के लेनदेन में बकाया धनराशि के एक विशुद्ध दीवानी मामले में आपराधिक मामला दायर किया गया, और हाई कोर्ट को इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा. बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट के जज ने सिविल विवाद में दर्ज 'आपराधिक विश्वासघात' के लिए आपराधिक मामला स्वीकार करने में कुछ भी गलत नहीं पाया. उन्होंने आगे कहा,

हम ये समझने में असमर्थ हैं कि हाई कोर्ट के लेवल पर भारतीय न्यायपालिका में क्या गड़बड़ है. कई बार हम ये सोचकर हैरान रह जाते हैं कि क्या ऐसे आदेश किसी बाहरी विचार से पारित किए जाते हैं या कानून की जानकारी का बहुत ज्यादा अभाव है. जो भी हो, ऐसे बेतुके और  त्रुटिपूर्ण आदेश पारित करना अक्षम्य है.

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ऐसे मामलों के लिए CJI ने भी की थी टिप्पणी

इस साल अप्रैल में, भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने भी ऐसे मामलों के लिए कड़ी टिप्पणी की थी. सामान्य दीवानी विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर, तत्कालीन CJI ने उत्तर प्रदेश सरकार की कड़ी आलोचना की थी. उनकी ये टिप्पणी चेक बाउंस के एक मामले का सामना कर रहे दो व्यक्तियों द्वारा दायर एक अपील की सुनवाई के दौरान आई थी. उन पर विश्वासघात, धमकी और आपराधिक षड्यंत्र सहित आपराधिक आरोप भी लगाए गए थे.

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