14वीं सदी की बात है. दिल्ली में फ़िरोज़शाह तुग़लक़ का शासन था. एक रोज़ वो आज के फिरोश शाह कोटला में चहलकदमी कर रहे थे. तभी एक चालीस-बयालीस पहिए की हाथगाड़ी आकर रुकी. सैनिकों ने बड़ी सावधानी से एक बड़े खम्बे को उस पर से ऐसे उतारा, मानो उसमें जान हो. चमड़े की चादर ओढ़े और भीतर से रेशमी सूती कपड़े में लिपटे उस अज़ूबे को, हरियाणा के टोपराकलां गांव से लाया गया था. तुग़लक़ ने जिज्ञासावश पूछा - ये क्या है? सैनिकों ने जवाब दिया - गांव वालों के मुताबिक ये महाभारत वाले भीम की छड़ी है. खम्बे की कारीगरी के चलते फ़िरोज़ ने इसे अपने किले के हाते में बीचोंबीच गड़वाया. ये ख़ामख़ा की बात या कोई सुल्तानी सनक नहीं थी. बल्कि ‘तारीख़-ए-फ़िरोज़शाही’ नाम की किताब में ये वाकिया दर्ज है. आज भी कभी दिल्ली के कोटला किला जाएंगे, तो ये पिलर आपको दिख जाएगा. 20वीं सदी में पता चला ये भीम की छड़ी नहीं, बल्कि सम्राट अशोक का स्तम्भ शिलालेख है. अशोक जिन्हें आज हम इतने गर्व से अपने इतिहास से जोड़ते हैं, वो एक लम्बे दौर तक गायब क्यों थे? जानने के लिए देखें तारीख का ये एपिसोड.
तारीख: सोना खोजने गए थे इंजीनियर, ऐसा शिलालेख मिला जिसने सम्राट अशोक की कहानी बयां कर दी
अशोक का शासनकाल 268 से 232 ईसा पूर्व तक माना जाता है. यूं तो अशोक को मौर्यों के इतिहास में महान सम्राट के तौर पर जाना गया. लेकिन ये जान-पहचान कुछ खोजों के बिना अधूरी रहती और इतिहास अनसुलझा रह जाता.
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