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दूसरा बच्चा पैदा करने में है दिक्कत? जानें क्या और क्यों होती है सेकेंड्री इनफर्टिलिटी

कई बार कपल्स को बच्चा पैदा करने में मुश्किलें आती हैं. इसे प्राइमरी इनफर्टिलिटी कहा जाता है. वहीं सेकेंड्री इनफर्टिलिटी तब होती है, जब कपल को दूसरा बच्चा पैदा करने में मुश्किल आए.

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सेकेंड्री इनफर्टिलिटी कई वजहों से हो सकती है (फोटो: Freepik)

आपने इनफर्टिलिटी के बारे में सुना है? इसका मतलब है बच्चा पैदा करने में दिक्कत होना. किसी वजह से कपल बच्चा कन्सीव नहीं कर पाते. एक बार भी नहीं. लेकिन एक ऐसी इनफर्टिलिटी भी होती है जिसमें महिला एक बार तो प्रेग्नेंट हो जाती है, पर दूसरी बार बच्चा पैदा करने में मुश्किल आती है. इसे कहते हैं सेकेंड्री इनफर्टिलिटी.  .

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आज डॉक्टर से जानेंगे कि सेकेंड्री इनफर्टिलिटी क्या होती है. इसके क्या कारण हैं. क्या पहली प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ ऐसे लक्षण दिखते हैं, जिनसे सेकेंड्री इनफर्टिलिटी का अंदाज़ा लगाया जा सके. और क्या सेकेंड्री इनफर्टिलिटी का कोई इलाज है. 

सेकेंड्री इनफर्टिलिटी क्या होती है?

ये हमें बताया डॉक्टर प्रीति शुक्ला ने. 

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डॉ. प्रीति शुक्ला, सीनियर कंसल्टेंट, ऑब्सट्रेटिक्स एंड गायनेकोलॉजी, पारस हेल्थ, कानपुर

सेकेंड्री इनफर्टिलिटी को समझने से पहले प्राइमरी इनफर्टिलिटी को जानना ज़रूरी है. प्राइमरी इनफर्टिलिटी तब होती है, जब महिला कभी प्रेग्नेंट ही न हुई हो. वहीं सेकेंड्री इनफर्टिलिटी तब होती है, जब महिला एक बार प्रेग्नेंट हो चुकी हो. तब बच्चा चाहे पैदा हुआ हो या न हो पाया हो, अगर एक बार प्रेग्नेंट होने के बाद महिला दोबारा दोबारा प्रेग्नेंट नहीं हो पा रही तो इसे सेकेंड्री इनफर्टिलिटी कहा जाता है.

सेकेंड्री इनफर्टिलिटी के क्या कारण हैं?

सेकेंड्री इनफर्टिलिटी के कई कारण हो सकते हैं. ये इस पर निर्भर करता है कि आपके रिप्रोडक्टिव सिस्टम में कहीं कोई दिक्कत तो नहीं हो गई. जैसे बच्चेदानी (यूटेरस) में कोई ख़राबी तो नहीं आ गई. या फिर किसी वजह से फैलोपियन ट्यूब तो ब्लॉक नहीं हो गई. फैलोपियन ट्यूब अंडाशय को गर्भाशय से जोड़ती है. ऐसा किसी सर्जरी, इंफेक्शन या किसी गांठ (फाइब्रॉयड या ट्यूमर) की वजह से हो सकता है. कई बार इंफेक्शन की वजह से भी ट्यूब्स ब्लॉक हो जाती हैं.

सेकेंड्री इनफर्टिलिटी के कुछ दूसरे कारण भी होते हैं. जैसे एंडोक्राइनल डिसबैलेंस यानी हार्मोन्स में गड़बड़ी हो गई हो. कैंसर के इलाज, जैसे रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी से अंडाशय पर असर पड़ा हो. इससे अंडे ठीक से बनना बंद हो सकते हैं या खत्म हो सकते हैं, और प्रेग्नेंसी नहीं हो पाती. कभी-कभी लंबी बीमारियां भी वजह बनती हैं, जैसे टीबी, जिससे ट्यूब्स या बच्चेदानी ख़राब हो सकती हैं. इन सब वजहों से सेकेंड्री इनफर्टिलिटी हो सकती है.

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क्या पहली प्रेग्नेंसी के दौरान सेकेंड्री इनफर्टिलिटी का पता चल सकता है?

पहली प्रेग्नेंसी में ऐसे कोई लक्षण नहीं होते, जिससे पता चले कि अगली बार प्रेग्नेंसी होगी या नहीं. लेकिन अगर उस प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ घटनाएं हुई हों, तो आगे दिक्कत आ सकती है. जैसे डिलीवरी के बाद बहुत ज़्यादा ब्लीडिंग हो जाए, जिसे पोस्टपार्टम हैमरेज कहते हैं. इससे दिमाग की पिट्यूटरी ग्लैंड (ग्रंथि) तक खून न पहुंचे और वो ख़राब हो जाए. तब बाद में हार्मोन नहीं बनते, जिससे इनफर्टिलिटी हो सकती है. या गर्भपात हो जाए और बच्चेदानी की अंदरूनी परत की सफाई करानी पड़े. कभी-कभी सफाई के दौरान बच्चेदानी की अंदरूनी परत ज़्यादा घिस जाती है. इससे बच्चेदानी की परतें आपस में चिपक सकती हैं. तब भी आगे प्रेग्नेंसी में परेशानी आ सकती है.

पहली प्रेग्नेंसी में सीधे लक्षण तो नहीं मिलते जो बताएं कि अगली बार प्रेग्नेंसी नहीं होगी. लेकिन अगर कुछ कॉम्प्लिकेशंस (जटिलताएं) हो जाएं. जैसे हाई ब्लड प्रेशर या प्रेग्नेंसी के दौरान शुगर (जेस्टेशनल डायबिटीज़) बढ़ना. तब अगली प्रेग्नेंसी में यही कॉम्प्लिकेशंस बढ़ने के चांस होते हैं. जिसकी वजह से कभी-कभी प्रेग्नेंट होने में थोड़ी देर हो सकती है. कई बार प्रेग्नेंसी को टालना पड़ता है, ताकि पहले बीमारी को ठीक किया जा सके.

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पहली प्रेग्नेंसी में ऐसे लक्षण नहीं होते, जिनसे पता चले कि आगे प्रेग्नेंसी होगी या नहीं (फोटो: Freepik)

क्या सेकेंड्री इनफर्टिलिटी का कोई इलाज है? कौन-से टेस्ट कराने चाहिए?

सेकेंड्री इनफर्टिलिटी का इलाज उसके कारण पर निर्भर करता है. देखा जाता है कि कहीं बच्चेदानी में कोई गांठ तो नहीं है, जिससे रास्ता बंद हो रहा हो. या अंडा बच्चेदानी में आकर ठहर क्यों नहीं पा रहा. फैलोपियन ट्यूब्स ब्लॉक तो नहीं हैं, ये भी चेक किया जाता है. कई बार दवाइयों की वजह से अंडाशय या बच्चेदानी की परत पर असर पड़ जाता है. अगर पहले बच्चेदानी की अंदरूनी परत की सफाई कराई हो, तब भी बच्चेदानी की परतें खराब हो सकती हैं. अगर बच्चेदानी में ज़्यादा ब्लॉकेज है, तो IVF यानी टेस्ट ट्यूब बेबी की सलाह दी जाती है. वर्ना कोई बीमारी जैसे टीबी या वजाइनल इंफेक्शन हो, तो पहले उसका इलाज किया जाता है.

सेक्स से फैलने वाली बीमारियां और इंफेक्शंस भी चेक किए जाते हैं. अगर कोई बीमारी या इंफेक्शन होता है, तो उनका भी इलाज किया जाता है. टेस्ट की बात करें, तो अल्ट्रासाउंड किया जाता है. इससे पता चल जाता है कि कहीं कोई गांठ तो नहीं है. HSG टेस्ट (हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राम) से देखा जाता है कि ट्यूब्स खुली हैं या नहीं. इसमें दवाई डालकर एक्सरे लिया जाता है. दवा सफेद दिखाई देती है, जिससे पता चलता है कि वो ट्यूब्स से बाहर जा रही है या नहीं. 

आधुनिक तरीकों की बात करें, तो डायग्नोस्टिक लैप्रोस्कोपी और हिस्टोस्कोपी की जाती है. डायग्नोस्टिक लैप्रोस्कोपी में कैमरे से पेट के अंदर बच्चेदानी, अंडाशय और ट्यूब्स को सीधे देख सकते हैं. वहीं, हिस्टोस्कोपी से बच्चेदानी का मुंह, उसका रास्ता और बच्चेदानी की अंदर की सतह को देख लेते हैं. उसी समय इलाज भी किया जा सकता है.

एंडोमेट्रियोसिस नाम की बीमारी भी सेकेंड्री इनफर्टिलिटी का बड़ा कारण है. इसकी वजह से महिलाओं को बहुत दर्द होता है. ये कभी भी हो सकती है. हो सकता है शुरू में आपको ये न हो और बढ़ती उम्र में हो जाए. एंडोमेट्रियोसिस में पीरियड्स का खून उल्टी दिशा में फैलोपियन ट्यूब्स के ज़रिए पेट में चला जाता है. जहां जहां ये खून जाता है, वहां चिपकन हो जाती है. आंतें, पेशाब की थैली, अंडाशय और ट्यूब्स आपस में चिपककर गांठ बना सकती हैं. एंडोमेट्रियोसिस का इलाज ऑपरेशन और दवाइयों दोनों से किया जाता है. कुछ मामलों में हॉर्मोन्स भी गड़बड़ हो जाते हैं. ऐसे में हॉर्मोनल ट्रीटमेंट दिया जाता है.

लोगों का खानपान और लाइफस्टाइल बदलने से मोटापा एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है. इनफर्टिलिटी का इलाज करने के लिए वज़न कम करना बहुत ज़रूरी हो गया है. PCOS (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) जो कि एक हॉर्मोन की गड़बड़ी है. ये युवा लड़कियों और रिप्रोडक्टिव उम्र की महिलाओं (यानी जो अभी बच्चा पैदा कर सकती हैं) में बहुत आम है. ये भी सेकेंड्री इनफर्टिलिटी का एक अहम कारण है. इसका भी इलाज हॉर्मोनल थेरेपी से किया जाता है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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