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एल्युमिनियम के बर्तनों में बने खाने से होती है लेड टॉक्सिसिटी, सेक्स की इच्छा पर भी पड़ता है असर

लेड टॉक्सिसिटी तब होती है, जब बहुत ज़्यादा लेड शरीर में जमा हो जाता है. इसे लेड पॉइज़निंग भी कहते हैं. ऐसा लेड खाने, पीने, छूने और सूंघने से भी हो सकता है.

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कितने पुराने हैं आपके बर्तन?

मुंबई में 50 साल के एक व्यक्ति को हॉस्पिटल में एडमिट किया गया. उसे याद्दाश्त जाने, थकान और पैरों में भयंकर दर्द और सनसनाहट जैसे लक्षण थे. जांच में पता चला कि वो ‘लेड पॉइज़निंग’ से जूझ रहा था. लेड यानी सीसा. ये एक हेवी मेटल है. जिसकी थोड़ी मात्रा भी शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाती है. 

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इस लेड पॉइज़निंग की वजह क्या थी? उनका प्रेशर कुकर.

मरीज़ की पत्नी खाना बनाने के लिए 20 साल से एक ही प्रेशर कुकर इस्तेमाल कर रही थीं. ये प्रेशर कुकर एल्युमिनियम का था और बहुत पुराना व खराब हालत में था. जब ऐसे प्रेशर कुकर में एसिडिक चीज़ें पकाई जाती हैं. यानी वो चीज़ें जिनमें एसिड पाया जाता है. जैसे टमाटर, दही वगैरह. तब कुकर में मौजूद एल्युमिनियम और लेड के कण खाने में घुल सकते हैं. धीरे-धीरे ये लेड शरीर में जमा होता रहता है और लेड टॉक्सिसिटी हो जाती है.

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लेड टॉक्सिसिटी क्या है? इससे शरीर पर क्या असर पड़ता है? इसके बारे में हमें और जानकारी दी यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, फरीदाबाद में इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉक्टर जयंत ठाकुरिया ने.

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डॉ. जयंत ठाकुरिया , डायरेक्टर, इंटरनल मेडिसिन, यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, फरीदाबाद

डॉक्टर जयंत बताते हैं कि लेड टॉक्सिसिटी तब होती है, जब बहुत ज़्यादा लेड शरीर में जमा हो जाता है. इसे लेड पॉइज़निंग भी कहते हैं. ऐसा लेड खाने, पीने, छूने और सूंघने से भी हो सकता है. शरीर में लेड के जमने से कई हिस्सों पर असर पड़ता है. जैसे दिमाग पर. इससे याद्दाश्त कमज़ोर हो सकती है. सोचने-समझने की क्षमता भी घट सकती है. लिवर और किडनी पर असर पड़ता है. उनके काम करने की शक्ति घट जाती है. लेड हड्डियों में जमा होता रहता है, जिससे हड्डियां कमज़ोर हो सकती हैं. शरीर में खून की कमी हो सकती है. ब्लड प्रेशर हाई हो सकता है. पाचन तंत्र और रिप्रोडक्टिव अंगों से जुड़ी दिक्कतें भी होने लगती हैं.

अगर कोई महिला प्रेग्नेंट है और उसके शरीर में लेड की ज़्यादा मात्रा पहुंच जाए. तो उसकी हड्डियों में जमा लेड, खून में रिलीज़ होता है. इससे पेट में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है.

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लेड पॉइज़निंग का ख़तरा बच्चों को ज़्यादा होता है. पर ये एडल्ट्स को भी हो सकती है. जब एडल्ट्स कोई ऐसी चीज़ खाते-पीते रहते हैं, जिसमें लेड हो. तब लेड टॉक्सिसिटी हो सकती है.

ऐसा होने पर व्यक्ति को सिरदर्द हो सकता है. पेटदर्द हो सकता है. बिहेवियर में बदलाव आने लगता है. शरीर में खून की कमी हो जाती है. हाथ-पैर सुन्न पड़ सकते हैं. सेक्स करने की इच्छा कम हो जाती है. इनफर्टिलिटी तक हो सकती है.

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लेड टॉक्सिसिटी का पता ब्लड टेस्ट करके लगाया जा सकता है 

किसी के शरीर में लेड की मात्रा ज़्यादा है या नहीं, ये ब्लड टेस्ट करके पता लगाया जाता है.

लेड से होने वाला नुकसान पूरी तरह रिवर्स नहीं किया जा सकता. यानी ठीक नहीं किया जा सकता है. पर शरीर में लेड के स्तर को कम किया जा सकता है. इसके लिए केलेशन थेरेपी की जाती है. इसमें एक खास दवाई दी जाती है. जो खून में मौजूद लेड से चिपक जाती है. फिर ये लेड पेशाब के ज़रिए शरीर से बाहर निकल जाता है.

देखिए, लेड कई चीज़ों में पाया जाता है. जैसे पेंट में. पुराने पाइप्स में. कुछ हर्बल दवाइयों में. खिलौनों में. मिट्टी के बर्तनों में. गहनों और कॉस्मेटिक्स के सामानों में.  

आपको बहुत ज़्यादा पुराने, घिसे हुए बर्तन भी नहीं इस्तेमाल करने चाहिए. ऐसे बर्तनों की बाहरी परत खराब हो जाती है. इससे उनमें मौजूद एल्यूमिनियम या लेड खाने में घुल सकता है. फिर वहां से हमारे शरीर में पहुंच सकता है. इसलिए हमेशा अच्छी क्वालिटी के बर्तन ही इस्तेमाल करें.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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