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सपा सांसद इकरा हसन को ADM ने कहा 'गेट आउट'? साबित हुआ तो बहुत बुरा फंसेंगे

सपा सांसद इकरा हसन ने सहारनपुर के एडीएम पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है. सांसद से कथित बदसलूकी पर सरकारी अफसर मुसीबत में फंस सकते हैं. आज जानते हैं कि इस पर नियम क्या कहते हैं.

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इकरा हसन ने एडीएम पर बदसलूकी का आरोप लगाया है (India Today)

उत्तर प्रदेश के कैराना से समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन ने सहारनपुर के ADM पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है. साथ ही इसकी शिकायत उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से भी की है. इकरा हसन का आरोप है कि सहारनपुर के ADM ने उन्हें ‘Get Out’ कहा. साथ ही, उनके साथ 'अपमानजनक' भाषा का इस्तेमाल भी किया. इस पर ADM ने भी अपना पक्ष रखा है. उन्होंने आरोपों को नकार दिया है.

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सपा सांसद को ADM ने कहा 'गेट आउट'?

दरअसल, 1 जुलाई को यूपी की कैराना सीट से सपा सांसद इकरा हसन चौधरी ने उत्तर प्रदेश के Chief Secretary के नाम शिकायती पत्र लिखा. इसमें उन्होंने सहारनपुर के Additional District Magistrate (Executive) यानी एडीएम(ई) संतोष बहादुर सिंह पर कुछ गंभीर आरोप लगाए. लेटर की प्रति सांसद ने सहारनपुर के Divisional Commissioner को भी दी. इकरा हसन ने बताया कि वो ‘छुटमलपुर नगर पंचायत’ की अध्यक्ष ‘शमा परवीन’ के साथ ADM से मिलने पहुंचीं थीं. ये मीटिंग उन्हें नगर पंचायत से जुड़ी कुछ समस्याओं को लेकर करनी थी. लेकिन कथित तौर पर उस वक्त ADM अपने ऑफिस में नहीं थे. 

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इकरा आरोप लगाती हैं कि ADM (E) ने पहले 'लंच का बहाना' बनाकर मुलाकात को टालना चाहा, लेकिन वो दोपहर 3 बजे फिर से नगर पंचायत अध्यक्ष के साथ, ADM Office पहुंच गईं. तब ADM मिल भी गए. सांसद इकरा हसन का आरोप है कि यहां ADM का रवैया ‘अहंकारी और असभ्य’ था. सांसद ने कहा कि जब वो शालीनता के साथ अपनी बातें रख रही थीं, उसी वक्त ADM उनपर ‘भड़क’ गए. इकरा के मुताबिक, ADM ने खुद को ‘दफ्तर का मालिक’ बताया और उन्हें तथा शमा परवीन को बाहर निकालने की जिद पर अड़ गए. 

पत्र में इकरा हसन ने ये भी दावा किया कि ADM संतोष बहादुर सिंह ने उन्हें ‘Get Out’ तक कह डाला, लेकिन जब उन्होंने आपत्ति जताई तो अधिकारी ने इसे ‘Slip of Tongue’ बताकर टालने की कोशिश की. 

इकरा हसन ने ADM संतोष बहादुर पर कई आरोप लगाए. उनके मुताबिक,

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- एडीएम लंच के नाम पर लंबे वक़्त तक आराम करते हैं.
- उनके इस ‘आराम’ में हमारी वजह से खलल पड़ गया तो वो उग्र हो गए.
- दोनों महिला जनप्रतिनिधियों (इकरा हसन और शमा परवीन) के साथ उन्होंने दुर्व्यवहार किया और अपमाजनक भाषा का इस्तेमाल किया.
- उनका ये व्यवहार महिलाओं के प्रति उनके हीन नजरिए को दर्शाता है.
- एडीएम संतोष बहादुर ने नियमों का उल्लंघन किया है.

ये तमाम आरोप लगाने के बाद सांसद इकरा हसन चौधरी ने UP के Chief Secretary से मांग की,

- एडीएम के व्यवहार की जांच की जाए. जांच में 12 अगस्त 2019 को जारी किए गए सर्कुलर और आचरण नियमावली, 1956 के उल्लंघन को शामिल किया जाए. 
- जांच के बाद संतोष बहादुर सिंह के ऊपर उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए.
- भविष्य में वो जनप्रतिनिधियों के साथ ऐसे दुर्व्यवहार न करें, ये सुनिश्चित करने के लिए एडीएम संतोष बहादुर को प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम में प्रॉपर ट्रेनिंग के लिए भेज दिया जाए.

ये तमाम आरोप बेहद गंभीर हैं. ऐसे में उच्च प्रशासनिक अधिकारियों ने भी इन्हें गंभीरता से लिया है. इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार राहुल कुमार की रिपोर्ट के मुताबिक, सहारनपुर के Divisional Commissioner ने पत्र मिलने के बाद अब ADM के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए हैं. उन्होंने पत्र में सहारनपुर DM को मार्क किया और उन्हीं को इस जांच का जिम्मा सौंप दिया. इसी बीच आरोपी संतोष बहादुर सिंह ने मीडिया से बात की. 

ADM ने सांसद के आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया और दावा किया है कि सूचना मिलते ही वो तुरंत दफ्तर पहुंच गए थे और आदर के साथ सांसद का स्वागत किया. उन्होंने ‘गेट आउट’ कहने के आरोप को निराधार बताया है.

मगर मामले में जांच का आदेश हो चुके हैं. इस जांच में क्या आता है, अब सभी को इसका इंतजार है. हालांकि अगर इसमें सीनियर अधिकारियों की ओर से कोई कठोर कार्रवाई नहीं होती है, तो इस स्थिति के लिए भी इकरा हसन चेतावनी दे चुकी हैं. उन्होंने अपनी शिकायत में ये भी कहा है कि वो इस मामले को लोकसभा अध्यक्ष के सामने रखेंगी और उनसे मांग करेंगी कि इसे विशेषाधिकार समिति को सौंपा जाए. 

सांसद से दुर्व्यवहार पर क्या कहते हैं नियम?

राष्ट्रपति सचिवालय की ओर से 26 जुलाई 1979 को जारी प्रोटोकॉल अधिसूचना में देश के राष्ट्रपति से लेकर अन्य जनप्रतिनिधियों और आयोगों के चेयरमैन के स्तर की जानकारी दी गई है. इसमें सभी पदों की रैकिंग निर्धारित है. इसमे सांसदों को 21 वें नंबर पर रखा गया है. यानी, वरिष्ठता क्रम में सांसद एडीएम से काफी ऊपर हैं. केंद्र सरकार के सचिवों की वरिष्ठता भी सांसद से काफी नीचे है. ऐसे में सरकारी कर्मचारियों या अफसरों की ओर से सांसद या जनप्रतिनिधियों से अपमानजनक व्यवहार अनुशासन के विरुद्ध माना जाता है.

इसके अलावा सांसद जनप्रतिनिधि होते हैं और उन्हें इस पद पर कुछ विशेषाधिकार भी मिले होते हैं. भारतीय संसद के संसदीय विशेषाधिकार नियमावली में इसकी जानकारी दी गई है. इसके मुताबिक, संसदीय विशेषाधिकार वो खास अधिकार होते हैं जो संसद के एक अनिवार्य अंग के रूप में सांसद को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त हैं और जिनके बिना वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन क्षमतापूर्वक और प्रभावी रूप से नहीं कर सकते. ये अधिकार अन्य निकायों या व्यक्तियों को प्राप्त अधिकारों से कहीं ज्यादा हैं.

नियमावली के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 में संसद और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों को मिले विशेषाधिकारों का उल्लेख किया गया है. इसके उल्लंघन पर दंड का भी प्रावधान है. नियमावली में यह भी लिखा है कि प्रत्येक सदन को ऐसे काम के लिए भी दंड देने का अधिकार है जो संसद या उसके सदस्यों की गरिमा के खिलाफ होते हैं. इनमें संसद के आदेशों की अवज्ञा के अलावा उसके सदस्यों या अधिकारियों का अपमान करना भी शामिल है. ऐसे कृत्यों को ‘विशेषाधिकार उल्लंघन’ या और ज्यादा सही रूप में ‘अवमानना’ कहा जाता है. 

सदन के पास विशेषाधिकार उल्लंघन के कृत्यों पर दंड देने का अधिकार है. चाहे ये सदन में किए गए हों या सदन के बाहर. चाहे सदन के ही किसी दूसरे सदस्य ने किया हो या सदन के बाहर के किसी व्यक्ति ने. संसद के कानूनों के हिसाब से यह दंडनीय है. लेकिन नियमावली के मुताबिक, बिना शर्त की गई सच्ची क्षमायाचना को संसद स्वीकार कर लेती है.

सरकारी आचरण नियमावली

विशेषाधिकारों के अलावा, सांसद से कथित अनुचित व्यवहार एडीएम संतोष बहादुर सिंह के लिए इसलिए भी मुसीबत बन सकता है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश के सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली के हिसाब से भी आपराधिक है. 

सरकारी आचरण नियमावली, 1956 के नियम 3 के मुताबिक, सरकारी सेवक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह शालीनता की मर्यादा में रहे. वह आज्ञाकारी, निष्ठावान, सावधान, ईमानदार, समय का ध्यान रखने वाला, अच्छा व्यवहार करने वाला और अपना काम करने में दक्ष हो. अगर ऐसा नहीं है तो उसका कृत्य दुराचरण की श्रेणी में आएगा. चाहे यह दफ्तर में हो या दफ्तर के बाहर निजी जीवन में.

नियम विरुद्ध आचरण पर सरकारी कर्मचारी को चेतावनी देकर भी छोड़ा जा सकता है. ज्यादा गंभीर अपराध है तो उसे निलंबित किया जा सकता है या पदावनति (Demotion) दी जा सकती है. और ज्यादा गंभीर अपराध पाए जाने पर नौकरी से बर्खास्त भी किया जा सकता है.

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