दुनिया में सबसे आसान चीज़ क्या है? किसी को ये कहना कि अरे! स्ट्रेस न लो.
स्ट्रेस दिल के साथ क्या कर रहा, आपको पता भी नहीं!
स्ट्रेस कई तरह का होता है. पहला है, एक्यूट स्ट्रेस यानी तुरंत किसी काम को करने का तनाव. दूसरा है, भविष्य के लक्ष्यों को लेकर तनाव. जब अचानक तनाव होता है, तो दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है. ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. दिल को ज़्यादा ऑक्सीज़न की ज़रूरत पड़ती है. खून की धमनियां सिकुड़ने लगती हैं.


ये कहने में जितना आसान है, करने में उतना ही मुश्किल. भले ही ये सलाह मुफ्त खूब बंटती हो, लेकिन इस पर अमल होना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि, स्ट्रेस आपके दिल के साथ जो करता है, उसका रत्तीभर अंदाज़ा भी आपको नहीं है.
आज हम आपको बताएंगे कि जब आप स्ट्रेस में होते हैं, उस वक्त आपके शरीर में क्या हो रहा होता है. उसका दिल पर क्या असर पड़ रहा होता है. साथ ही जानेंगे, स्ट्रेस को मैनेज करने की कुछ प्रैक्टिकल टिप्स. इनके बारे में हमें बताया है, डॉक्टर अजय प्रताप सिंह. वो SCPM Hospital,Gonda में Chief Interventional Cardiologist हैं. दूसरे हैं डॉक्टर रिपन गुप्ता. वो Max Healthcare, New Delhi में Cardiology Department के Senior Director हैं.

स्ट्रेस से दिल को क्या नुकसान पहुंचता है?
स्ट्रेस कई तरह का होता है. पहला है एक्यूट स्ट्रेस यानी तुरंत किसी काम को करने का तनाव. दूसरा है भविष्य के लक्ष्यों को लेकर तनाव. जब अचानक तनाव होता है, तो दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है. ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. दिल को ज़्यादा ऑक्सीज़न की ज़रूरत पड़ती है. खून की धमनियां सिकुड़ने लगती हैं. शरीर के कई सेल्स एक्टिवेट हो जाते हैं. इन सबके कारण शरीर पर गहरा असर पड़ता है.
तनाव कम समय ले लिए हो या लंबे वक़्त तक, दोनों ही नुकसानदायक हैं. इससे बीपी, दिल की धड़कनों से जुड़ी समस्याएं, डायबिटीज़ और मोटापे जैसी दिक्कतें बढ़ती हैं. इसलिए स्ट्रेस को मैनेज करना बहुत ज़रूरी है.
स्ट्रेस के दौरान शरीर में क्या होता है?
स्ट्रेस लेने से पल्स रेट बढ़ जाता है. ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. ये बदलाव तुरंत आते हैं और दिल पर ज़ोर पड़ता है. अगर व्यक्ति पहले से दिल का मरीज़ है, तो स्ट्रेस लेने से उसकी दिक्कत और बढ़ सकती है. जिन्हें दिल की दिक्कत नहीं भी है, उन्हें भी लगातार स्ट्रेस से नसों में ब्लॉकेज होने का ख़तरा है. ये आगे चलकर हार्ट अटैक का कारण बन सकता है.
जिन लोगों को बीपी नहीं है, उनमें ब्लड प्रेशर की बीमारी हो सकती है. लगातार स्ट्रेस से डायबिटीज़ होने का चांस भी बढ़ जाता है. यानी स्ट्रेस से हमें 5-6 बीमारियां हो सकती हैं. सिर्फ दिल ही नहीं, स्ट्रेस से शरीर के बाकी हिस्सों पर भी असर पड़ता है. लेकिन स्ट्रेस खासतौर पर दिल और उससे जुड़े रिस्क फैक्टर्स को बढ़ा देता है.
दिल के मरीज़ नहीं तो स्ट्रेस से नुकसान नहीं?
हम अक्सर सुनते हैं कि एक 40 साल का व्यक्ति था. उसे दिल की कोई समस्या या उससे जुड़ा कोई रिस्क फैक्टर नहीं था. न उसे शुगर थी, न ब्लड प्रेशर, फिर भी अचानक हार्ट अटैक से उसकी मौत हो गई. जहां कोई रिस्क फैक्टर नज़र नहीं आता, वहां स्ट्रेस एक बड़ा कारण बन सकता है.
अगर किसी को पहले से दिल की कोई समस्या है और वो स्ट्रेस लेता है, तो ज़ाहिर तौर पर उसकी परेशानी बढ़ती है. लेकिन जिन्हें दिल की समस्या नहीं है, अगर वो लंबे समय तक स्ट्रेस लेंगे, तो उनमें भी दिल से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं. खासतौर पर निगेटिव स्ट्रेस को बहुत हानिकारक माना जाता है.

स्ट्रेस से दिल को नुकसान पहुंचने के लक्षण
सबसे पहले ज़रूरी है कि स्ट्रेस को पहचाना जाए. ज़्यादातर लोग समझ नहीं पाते कि कब उन्हें दिक्कत हो रही है और कब नहीं. स्ट्रेस के दौरान दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है. दौड़ने पर भी दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है. कभी-कभी दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो जाती है कि व्यक्ति उसे महसूस कर सकता है. मेडिकल भाषा में इसे पल्पिटेशन कहते हैं यानी दिल में धकधक होना, फड़फड़ाहट होना या धड़कन का अनियमित हो जाना.
कई बार सीने में भारीपन, जलन या चिलकन महसूस होने लगती है. सांस फूलने या सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. कुछ मरीज़ बताते हैं कि स्ट्रेस में सांस अटक जाती है. ज़्यादा स्ट्रेस होने पर एनर्जी कम हो जाती है. जो काम पहले अच्छे लगते थे, उन्हें करने में मन नहीं लगता.
इसके अलावा सिर हल्का लगना. चक्कर आना. खूब पसीना आना. बंद जगहों से डर या घबराहट महसूस होना. ये आम लक्षण हैं, जो मरीज़ अक्सर स्ट्रेस में महसूस करते हैं. स्ट्रेस की वजह से अक्सर ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है. यह एक दुष्चक्र (विशियस साइकिल) बना देता है.
जैसे अगर धड़कन तेज़ होगी, तो बीपी बढ़ जाएगा. फिर व्यक्ति को ब्लड प्रेशर बढ़ने का स्ट्रेस होने लगेगा. इससे दिल की धड़कन और तेज़ हो जाएगी. इस साइकिल को तोड़ना मुश्किल हो जाता है. इसलिए स्ट्रेस को मैनेज करना बहुत ज़रूरी है. अगर दिल की धड़कन बढ़ रही है. बीपी बढ़ रहा है. पसीना ज़्यादा आ रहा है. बंद जगहों में घबराहट हो रही है. काम करने का मन नहीं लग रहा, तो ये स्ट्रेस के लक्षण हो सकते हैं. ऐसे में सेहत बिगड़ने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना बहुत ज़रूरी है.
साल में एक बार ब्रेक लेना काफ़ी है?
सिर्फ लंबी छुट्टी स्ट्रेस को कम नहीं करती. स्ट्रेस रोज़ होता है, इसलिए उसका इलाज भी रोज़ होना ज़रूरी है. अगर कोई सोचे कि 365 दिन में सिर्फ 10 दिन घूमकर स्ट्रेस दूर हो जाएगा, तो ये गलत है. स्ट्रेस कम करने के लिए हमें रोज़ छोटे-छोटे काम करने चाहिए. जैसे रोज़ थोड़ी देर एक्सरसाइज़ करें. एक्सरसाइज़ से एंडोर्फिंस (हैप्पी हॉर्मोन) रिलीज़ होते हैं, जो स्ट्रेस कम करते हैं. आधा घंटा एक्सरसाइज़ करना दिल के लिए भी अच्छा है और स्ट्रेस कम करने के लिए भी. 5–10 मिनट ध्यान लगाना भी बहुत मददगार होता है. अपने परिवार से बातचीत करें.
आजकल लोग सोशल मीडिया पर ज़्यादा वक्त बिताते हैं और घर पर कम बात करते हैं. घर पर बात करने से दिक्कतें कम होती हैं. अपनी उम्मीदें सीमित रखें. बहुत ज़्यादा उम्मीदें रखने से उन्हें पूरा न कर पाने पर स्ट्रेस बढ़ जाता है. खाना-पीना साधारण रखिए. सॉफ्ट ड्रिंक्स कम पिएं, इसमें मौजूद कैफीन से स्ट्रेस बढ़ता है. आजकल कई बच्चे एनर्जी ड्रिंक पीते हैं, इससे भी स्ट्रेस बढ़ सकता है. सबसे ज़रूरी, स्ट्रेस का इलाज साल में एक बार नहीं, बल्कि रोज़ करना है. वरना स्ट्रेस बार-बार लौटकर आएगा और कभी खत्म नहीं होगा.
स्ट्रेस मैनेज करने की प्रैक्टिकल टिप्स
स्ट्रेस ज़िंदगी का एक हिस्सा है. कई बार बिना स्ट्रेस के लोग अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते. अगर हम बिल्कुल टेंशन नहीं लेंगे, तो हो सकता है कि हम विफल हो जाएं या काम उतनी क्षमता से न हो पाए. यानी स्ट्रेस ज़िंदगी का एक ऐसा हिस्सा है, जिससे हमें डील करना सीखना चाहिए. स्ट्रेस कम करने के लिए छोटी-छोटी चीज़ों में खुश रहना सीखें. उम्मीदों को पूरा करने के लिए काम करते रहें. मगर ये न सोचें कि अगर उम्मीद मुताबिक चीज़ें न हों तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी.
स्ट्रेस कम करने के लिए कई लोग म्यूज़िक सुनते हैं. कुछ लोग जिम जाते हैं, एक्सरसाइज़ करते हैं या योग करते हैं. जिस भी काम में आपका मन लगता है, उसे रोज़ कम से कम 15 मिनट या आधा घंटा ज़रूर करें. जिन परिस्थितियों में अचानक स्ट्रेस बढ़ता है. जैसे ऑफिस मीटिंग, बोर्ड मीटिंग, ऑपरेशन थिएटर में जाना या किसी परफॉर्मेंस से पहले. उसमें योग और ध्यान लगाने से काफी मदद मिलती है. कई लोगों को सुकून ईश्वर को याद करने से मिलता है. कुछ लोगों को तैरना, दौड़ना या नाचना आराम देता है. जिस भी काम में आपका मन अच्छे से लगता है, उसे दिन में 20–25 मिनट ज़रूर करिए. इससे निगेटिव सोच धीरे-धीरे पॉज़िटिव सोच में बदल जाएगी और स्ट्रेस उसी दिन कम हो जाएगा.

योग, मेडिटेशन से दिल को क्या फ़ायदा पहुंचता है?
योग हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है. योग पर AIIMS में कई स्टडीज़ भी हुई हैं. इनमें देखा गया है कि योग करने से हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर कम होता है. कोलेस्ट्रॉल का लेवल सुधरता है. अगर योग को कम उम्र से ही रोज़ किया जाए, तो दिल की बीमारियों का चांस कम हो जाता है. इसलिए, योग और ध्यान को इलाज और जीवनशैली का हिस्सा बनाना चाहिए.
सिर्फ योग ही नहीं, साथ में एक्सरसाइज़ भी करें. फिज़िकल एक्टिविटी करना भी शरीर के लिए ज़रूरी है. वैसे तो हर दिन 10 हज़ार कदम चलने चाहिए, पर कई बार लोग इतना नहीं चल पाते. इसलिए, दिन में 4-5 हज़ार कदम चलें और थोड़ा योग करें. दोनों का कॉम्बिनेशन दिल की सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है
नींद की कमी से दिल पर क्या असर पड़ता है?
जब हम सोते हैं, तो शरीर की मरम्मत होती है. नींद जीवन का एक अहम हिस्सा है. रात में 5 से 8 घंटे की नींद लेने से न सिर्फ दिल, बल्कि दिमाग, फेफड़े, लिवर और बाकी अंगों की भी मरम्मत होती है. जैसे कार को 3–6 महीने में सर्विसिंग की ज़रूरत होती है. वैसे ही रात में सोते वक्त शरीर की रिपेयरिंग होती है, इसलिए नींद पूरी करना बहुत ज़रूरी है. अगर नींद पूरी न हो, तो ब्लड प्रेशर, पल्स रेट जैसे सारे पैरामीटर्स बिगड़ सकते हैं. इससे दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
नींद की ज़रूरत हर व्यक्ति में अलग-अलग होती है. किसी के लिए 5 घंटे काफी हैं, किसी को 8 घंटे चाहिए. लेकिन कम से कम 5–6 घंटे की नींद सबके लिए ज़रूरी है. कुछ लोग 7 घंटे से पहले उठें तो सहज महसूस नहीं करते हैं. इसलिए लोग 5 से 8 घंटे के बीच नींद लेते हैं. मगर कम से कम 5 से 6 घंटे की नींद सबको चाहिए.
इमोशनल हेल्थ का दिल पर क्या असर पड़ता है?
फिज़िकल, इमोशनल और मेंटल हेल्थ तीनों अलग चीज़ें हैं, लेकिन आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं. इनमें से किसी एक की भी कमी हो तो शरीर हर तरह से प्रभावित होता है. इमोशनल हेल्थ का सीधा असर दिल और दिमाग पर पड़ता है. इसका हमारे हॉर्मोन्स, व्यवहार में उतार-चढ़ाव से सीधा संबंध है. इसका इंफ्लेमेशन से भी संबंध है, जिसकी वजह से शुगर, हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. जो लोग पॉज़िटिव रहते हैं, अपने इमोशंस पर कंट्रोल रखते हैं, खुश रहते हैं, हर चीज़ को सकारात्मक नज़रिए से देखते हैं. उनकी सेहत नकारात्मक सोच वाले लोगों से बेहतर होती है.
अगर कोई व्यक्ति नकारात्मक सोच रखते हुए अच्छा काम कर रहा है, तो भी उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है. अगर इमोशनल हेल्थ अच्छी हो, तो हमारा ऑटोनोमिक बैलेंस सही रहता है. खून की नसों की सेहत अच्छी रहती है. हार्मोन्स संतुलन में रहते हैं. ब्लड प्रेशर बेहतर तरीके से कंट्रोल होता है. हार्ट अटैक और स्ट्रोक का रिस्क कम होता है. सर्जरी या हार्ट अटैक के बाद रिकवरी तेज़ होती है.
अगर आप डिप्रेस्ड रहते हैं तो इसका असर वज़न, शुगर, इंसुलिन रजिस्टेंस, डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन समेत दूसरी बीमारियों पर पड़ता है. वहीं सकारात्मक सोच और अच्छा सोशल सपोर्ट दिल की सेहत को मज़बूत बनाता है. ब्लड प्रेशर के अचानक बढ़ने से बचा जा सकता है. वहीं अगर किसी को पहले से हाई बीपी की समस्या है, तो उसे कम दवाओं से भी कंट्रोल किया जा सकता है. लिहाज़ा, ये न सोचें कि इमोशनल हेल्थ का शरीर या दिल की सेहत से कोई संबंध नहीं है.
स्ट्रेस और दिल से जुड़ी ये बात मानना ज़रूरी
हमें छोटी-छोटी चीज़ों में खुशी ढूंढना सीखना होगा. अगर उम्मीदें कम कर लें और छोटी-छोटी चीज़ों मे खुशी ढूंढें, तो स्ट्रेस अपने आप कम हो जाएगा.
लोग टारगेट सेट करके सिर्फ उसी के पीछे भागते रहते हैं. एक टारगेट पूरा होता है तो वो तुरंत नया सेट कर लेते हैं. सारी ज़िंदगी इसी टारगेट की दौड़ में निकल जाती है. इसलिए हमें छोटी-छोटी चीज़ों में खुशी ढूंढनी चाहिए.
मेलाटोनिन, सेराटोनिन, डोपामीन का असर
मेलाटोनिन नींद का हॉर्मोन है. सेराटोनिन एक एंटीडिप्रेसेंट हॉर्मोन है. डोपामीन खुशी का हॉर्मोन है. स्ट्रेस की वजह से शरीर में इनका रिसाव कम या ज़्यादा होता है. अगर आप खुश रहेंगे तो शरीर में सेरोटोनिन ज़्यादा बनेगा. नींद की साइकिल ठीक होगी तो मेलाटोनिन बैलेंस में रहेगा. लेकिन अगर आप अपना स्ट्रेस मैनेज नहीं कर पाते, तो तीनों हॉर्मोन्स का असंतुलन हो जाता है. ऐसा होने पर रात में नींद नहीं आती. बहुत ज़्यादा घबराहट होती है. सेरोटोनिन की कमी से डिप्रेशन होने लगता है. डोपामीन की कमी से किसी भी काम में मन नहीं लगता.
स्ट्रेस हमारे शरीर के हर पहलू से जुड़ा है. ये सिर्फ दिल ही नहीं, बल्कि दिमाग, किडनी और लिवर समेत पूरे शरीर पर असर डालता है. अगर हम स्ट्रेस को मैनेज कर पाते हैं, तो ये तीनों हॉर्मोन्स बैलेंस में रहते हैं. जब ये हॉर्मोन्स बैलेंस में रहेंगे, तब पूरा शरीर बैलेंस में रहेगा और आप एक अच्छा जीवन बिता पाएंगे.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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