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MP-महाराष्ट्र में 14 बच्चों की मौत की वजह एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम? क्या है ये बीमारी?

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी AES को बोलचाल में चमकी बुखार कहते हैं. ये शब्द उन कंडीशंस के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें दिमाग में सूजन आ जाती है.

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जब इन बच्चों को अस्पताल लाया गया, तो सभी को बहुत तेज़ बुखार था (सांकेतिक तस्वीर)

मध्य प्रदेश का छिंदवाड़ा और महाराष्ट्र का नागपुर ज़िला. यहां बीते एक-सवा महीने में 14 बच्चों की मौत हुई है. सटीक वजह अब तक पता नहीं चल पाई है. लेकिन डॉक्टर्स का अंदाज़ा है कि ऐसा एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी AES की वजह से हो सकता है. ये क्या है, बताएंगे आपको. पर पहले पूरी ख़बर जान लीजिए.

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिन 14 बच्चों की मौत हुई. उनमें से 1 नागपुर सिटी और बाकी 13 छिंदवाड़ा से थे. सभी बच्चे अस्पताल में भर्ती थे. सबकी उम्र 15 साल से कम थी.

डॉक्टर्स का कहना है कि जब इन बच्चों को अस्पताल लाया गया, तो सभी को बहुत तेज़ बुखार था. कुछ ही घंटों के अंदर, कई बच्चों की हालत बिगड़ गई. कुछ बच्चे भर्ती होने के 24 घंटों के अंदर बेहोश हो गए. ज़्यादातर बच्चों की किडनियों ने काम करना बंद कर दिया. इससे उनमें पेशाब बनना भी बंद हो गया. बच्चों की जान बचाने के लिए उन्हें डायलिसिस पर रखा गया. वेंटिलेटर सपोर्ट दिया गया. पर फिर भी उन्हें बचाया नहीं जा सका.

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मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जो 13 मौतें हुई हैं. उनमें से 6 परासिया ब्लॉक में हुई हैं. ये सभी बच्चे 3 से 10 साल के बीच थे. फिलहाल इस ब्लॉक को हाई-अलर्ट ज़ोन घोषित कर दिया गया है. अब तक जो टेस्ट हुए हैं. उनसे किसी जाने-पहचाने वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन का पता नहीं चल सका है.

पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल यानी NCDC की टीमें भी जांच के लिए भेजी गई हैं. नागपुर के कई अस्पतालों में अभी भी ऐसे लक्षणों के साथ बच्चे भर्ती हो रहे हैं. इसलिए आसपास के भी कई ज़िलों में निगरानी बढ़ा दी गई है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, हाल के कुछ मामलों को अब इंसेफेलाइटिस के बजाय एक्यूट एन्सेफैलोपैथी की कैटेगरी में रखा गया है. इंसेफेलाइटिस यानी दिमाग में सूजन आना. जो आमतौर पर वायरस, बैक्टीरिया, फंगस या ऑटोइम्यून रिएक्शंस की वजह से होता है. लेकिन एक्यूट एन्सेफैलोपैथी दिमाग पर असर करने वाले टॉक्सिंस यानी ज़हरीले तत्वों या वातावरण में मौजूद हानिकारक चीज़ों की वजह से भी हो सकती है.

अभी तक ये पक्के तौर पर पता नहीं चला है कि बच्चों की मौत का असली कारण क्या है. अभी सभी जांचों के नतीज़े आने का इंतज़ार हो रहा है. लेकिन एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की संभावना को नज़रअंदाज़ नहीं किया गया है.

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अब एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम क्या है. इसके बारे में हमने जाना मैरिंगो एशिया इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो एंड स्पाइन, गुरुग्राम के चेयरमैन डॉक्टर प्रवीण गुप्ता से.

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डॉ. प्रवीण गुप्ता, चेयरमैन, मैरिंगो एशिया इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो एंड स्पाइन, गुरुग्राम

डॉक्टर प्रवीण बताते हैं कि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी AES को बोलचाल में चमकी बुखार कहते हैं. ये शब्द उन कंडीशंस के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें दिमाग में सूजन आ जाती है. एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम होने पर कुछ खास लक्षण दिखाई देते हैं. जैसे अचानक तेज़ बुखार आना, सिरदर्द, उल्टी, कंफ्यूज़न यानी भ्रम होना, दौरे पड़ना, रोशनी से परेशानी होना, बेहोश हो जाना, सांस लेने में दिक्कत होना, गर्दन और पीठ में जकड़न होना और उंघाई आना.

गंभीर मामलों में याद्दाश्त जा सकती है. मरीज़ कोमा में जा सकता है. उसे लकवा मार सकता है. देखने, बोलने, सुनने में परेशानी हो सकती है. यहां तक कि जान भी जा सकती है.

15 साल से कम उम्र के बच्चे एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की चपेट में सबसे ज़्यादा आते हैं. इसके अलावा, जिन लोगों की इम्यूनिटी कमज़ोर है, जैसे HIV, AIDS के मरीज़ या जो इम्यून-सप्रेसिंग दवाइयां खाते हैं. उन्हें भी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम होने का ख़तरा है.

भारत में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम होने का सबसे बड़ा कारण Japanese Encephalitis Virus है. इसके अलावा, ये इंफ्लूएंज़ा A वायरस, हर्पीज़ सिम्प्लेक्स वायरस, पारवो वायरस B19, डेंगू और एप्स-टाइन बार्र वायरस की वजह से भी हो सकता है. कभी-कभी ये  बैक्टीरिया की वजह से भी हो सकता है, लेकिन आमतौर पर इसका कारण वायरस ही होता है.

जब एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के लक्षणों वाला कोई मरीज़ डॉक्टर के पास जाता है. तो वो कुछ टेस्ट करते हैं. जैसे दिमाग का सीटी स्कैन या MRI. इससे पता चलता है कि दिमाग में सूजन है या नहीं. अगर है, तो दिमाग के किस हिस्से पर असर पड़ता है.

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एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम शब्द उन कंडीशंस के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें दिमाग में सूजन आ जाती है (फोटो: Getty)

स्पाइनल टैप यानी लंबर पंचर नाम का टेस्ट भी किया जाता है. इसमें हमारे दिमाग के आसपास मौजूद फ्लूइड CSF यानी सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड को जांचा जाता है. ये पता लगाने के लिए, कि कहीं इसमें कोई वायरस या फिर इंफेक्शन करने वाला कोई एजेंट तो नहीं है. जो दिमाग और उसके आसपास सूजन या इंफेक्शन कर सकता है.

इलेक्ट्रोएन्सेफैलोग्राम यानी EEG टेस्ट भी होता है. इसमें मरीज़ के दिमाग की एक्टिविटी रिकॉर्ड की जाती है. ये चेक करने के लिए कि दिमाग में कोई एब्नॉर्मल यानी असामान्य पैटर्न तो नहीं है.

दिमाग की बायोप्सी भी की जा सकती है. ऐसा तब किया जाता है, जब नॉर्मल इलाज से मरीज़ की हालत न सुधरे और कंडीशन बिगड़ती जाए.

इसके साथ ही, मरीज़ के ब्लड टेस्ट वगैरह भी किए जाते हैं.

अब बात इलाज की. एक बार एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का कारण पता चल जाए. तो उस हिसाब से एंटीवायरल या एंटीबैक्टीरियल दवाएं दी जाती हैं. साथ ही, सूजन कम करने वाली दवाएं भी दी जाती हैं. मरीज़ को खूब आराम करने और फ्लूइड पीने को कहा जाता है

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से बचाने वाली कोई वैक्सीन तो अब तक नहीं बनी है. पर जिस वजह से ये सबसे ज़्यादा फैलता है. यानी Japanese Encephalitis Virus, उससे बचाने वाली वैक्सीन ज़रूर है. इस वैक्सीन की दो खुराकें बच्चों को दी जाती हैं. एक 9 महीने की उम्र में, खसरे के टीके के साथ. दूसरी, 16 से 24 महीने की उम्र में डीपीटी बूस्टर के साथ.

देखिए, अगर समय रहते एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का पता चल जाए. तो मरीज़ को पूरी तरह ठीक हो सकता है. लेकिन, अगर इलाज में देर हो. दिमाग में सूजन बहुत ज़्यादा बढ़ जाए. या मरीज़ पहले से कुपोषित हो. तब उसकी जान जाने का रिस्क रहता है. कई बार मरीज़ बच तो जाते हैं, लेकिन दिमाग पर असर रह जाता है. इससे मानसिक विकास धीमा हो जाता है. चीज़ें सीखने में दिक्कत होती है. बोलने-चलने में भी परेशानी होती है. इसलिए सतर्कता बहुत ज़रूरी है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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