The Lallantop

कफ सिरप 'जहर' कैसे बन जाता है ? बच्चों की खांसी बिना सिरप कैसे ठीक करें?

मध्य प्रदेश में Coldrif कफ सिरप पीने के बाद कई बच्चों की मौत हो गई थी. सैंपल की जांच रिपोर्ट से पता चला कि Coldrif में डाइएथलीन ग्लाइकॉल यानी DEG मौजूद है. इसकी मात्रा 48.6% थी, जिससे शरीर को बहुत गंभीर नुकसान पहुंच सकता है. बच्चों की किडनी फेल हो सकती है. उनकी मौत भी हो सकती है.

Advertisement
post-main-image
कई राज्यों ने Coldrif कफ सिरप पर बैन लगा दिया है

मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीते एक महीने में अब तक 18 बच्चों की मौत हो चुकी है. इनमें से 16 मौतें मध्य प्रदेश और 2 राजस्थान में हुई हैं. इन मौतों की वजह कफ सिरप को माना जा रहा है. कफ सिरफ यानी वो सिरप, जो खांसी आने पर पिलाया जाता है. मध्य प्रदेश में जिन बच्चों की मौत हुई, उनमें से कइयों को Coldrif कफ सिरप दिया गया था. सिरप पीने के बाद बच्चों की किडनी फेल हुई और उनकी मौत हो गई. ज़िला प्रशासन ने सिरप पर बैन लगा दिया और जांच शुरू हुई.

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement

3 अक्टूबर 2025 को ऐसी ही एक जांच के नतीजे आए. ये जांच तमिल नाडु के फूड सेफ्टी एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने की थी. डिपार्टमेंट ने Coldrif के सैंपल सीधे इसे बनाने वाली कंपनी श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट से लिए. ये प्लांट तमिल नाडु के कांचीपुरम ज़िले में है. सैंपल की जांच रिपोर्ट से पता चला कि Coldrif कफ सिरप में डाइएथलीन ग्लाइकॉल यानी DEG मौजूद है. इसकी मात्रा 48.6 परसेंट थी. जिससे शरीर को बहुत गंभीर नुकसान पहुंच सकता है. बच्चों की किडनी फेल हो सकती है. उनकी मौत भी हो सकती है.

रिपोर्ट आने के बाद कई राज्यों ने Coldrif कफ सिरप पर बैन लगा दिया. जैसे मध्य प्रदेश, तमिल नाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान.

Advertisement

साथ ही, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज़ यानी DGHS ने सभी राज्यों और Union Territories के लिए सलाह जारी की है. सलाह ये कि, 5 साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप यानी खांसी का सिरप देते समय सावधानी बरतें. और, 2 साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप न दें.

वैसे ऐसा कई डॉक्टर्स भी मानते हैं कि आम खांसी-जुकाम से बच्चों को कोई गंभीर दिक्कत नहीं होती. इसलिए उन्हें कफ सिरप देने की ज़रूरत नहीं है. कई बच्चे खुद से ही ठीक हो जाते हैं. इसलिए कफ सिरप देना अवॉइड करना चाहिए.

हमने केवीआर हास्पिटल, उत्तराखंड में डिपार्टमेंट ऑफ नियोनेटोलॉजी एंड पीडियाट्रिक्स के हेड, डॉक्टर कुशल अग्रवाल से पूछा कि अगर बच्चे को खांसी है, तो किन घरेलू उपायों से उसे आराम पहुंच सकता है. ये भी जाना कि कफ सिरफ कैसे बनता है, ये ज़हर क्यों बन जाता है और इसमें DEG की मिलावट क्यों की जाती है.

Advertisement
dr kushal agrawal
डॉ. कुशल अग्रवाल, हेड, डिपार्टमेंट ऑफ नियोनेटोलॉजी एंड पीडियाट्रिक्स, केवीआर हॉस्पिटल, उत्तराखंड

डॉक्टर कुशल बताते हैं कि कफ सिरप बनाने के लिए सबसे पहले उसका फॉर्मूला तय किया जाता है. यानी कौन-सी खांसी की दवा कितनी मात्रा में डाली जाएगी. सिरप का एक मीठा बेस भी तैयाार किया जाता है, ताकि वो पीने में कड़वा न लगे. इस मीठे सिरप बेस में पानी, चीनी, फ्लेवरिंग एजेंट और रंग मिलाए जाते हैं. ग्लिसरीन, प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल या सॉरबिटॉल जैसी चीज़ें भी डाली जाती हैं. ये उस दवा के एक्टिव इनग्रीडिएंट को घुलने में मदद करती हैं. ये सिरप को गाढ़ापन और मिठास देती हैं. उसमें नमी भी बनाए रखती हैं. ये टॉक्सिक नहीं होतीं. यानी इनसे शरीर को नुकसान नहीं पहुंचता.

अब अगर प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल या ग्लिसरीन, फार्मास्युटिकल ग्रेड के बजाय इंडस्ट्रियल ग्रेड का है, तो उसमें डाइएथलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल की मिलावट हो सकती है. ये सस्ते होते हैं और इंसानों के इस्तेमाल के लिए सेफ नहीं हैं.

कभी-कभी दवा का कच्चा माल सप्लाई करने वाले सस्ती क्वालिटी का माल बेच देते हैं. वो इंडस्ट्रियल ग्रेड सॉलवेंट्स, जैसे प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल या ग्लिसरीन पर फार्मास्युटिकल ग्रेड का लेबल लगाकर बेच देते हैं. इससे भी कफ सिरप में मिलावट हो सकती है.

डाइएथलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल बहुत टॉक्सिक होते हैं. इनकी थोड़ी मात्रा भी शरीर को काफी नुकसान पहुंचाती है. ये दिखने और स्वाद में ग्लिसरीन जैसे होते हैं. यानी इनका भी न तो कोई रंग होता है. न ही कोई गंध. ये स्वाद में ये हल्के मीठे होते हैं.

अब अगर दवा कंपनी सही से टेस्ट न करे, तो ये DEG मिली ग्लिसरीन कफ सिरप में पहुंच जाती है. वहां से होते हुए इंसानों के शरीर में. जबकि इनकी ज़रूरत हमारे शरीर को नहीं, बल्कि इंडस्ट्री को है.

डाइएथलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल, असल में इंडस्ट्रियल केमिकल हैं. कारों के कूलेंट, ब्रेक फ्लूइड, पेंट, प्लास्टिक और कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में इनका इस्तेमाल होता है. ये खाने या फिर दवा में डालने के लिए नहीं होते. अगर ये शरीर में पहुंच जाएं, तो किडनी को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं. जिससे किडनी फेल हो सकती है. छोटे बच्चों में इसकी ज़रा-सी मात्रा भी बहुत ख़तरनाक है. अगर कोई बच्चा ऐसा मिलावटी कफ सिरप पिए. तो उसे उल्टी आना शुरू हो सकती है. कमज़ोरी लगती है. चक्कर आते हैं. सांसें तेज़ हो सकती हैं या बेहोशी हो सकती है. बच्चे की पेशाब रुक सकती है. ये सारे लक्षण इशारा हैं कि किडनी फे़ल हो रही है. कई बार बच्चा कोमा में जा सकता है. उसकी मौत भी हो सकती है.  

अभी जो हमने आपको लक्षण बताए, उनमें से कई मध्य प्रदेश में जान गंवाने वाले बच्चों में देखे गए थे. इसलिए कोशिश करें कि छोटे बच्चों को कफ सिरप न दें. पहले पहल उन्हें घरेलू उपायों से ठीक करने की कोशिश करें.

डॉक्टर कुशल आगे बताते हैं कि अगर बच्चे को किसी एलर्जी की वजह से खांसी हो रही है, तो डॉक्टर के कहने पर उसे नेबुलाइज़र दिया जा सकता है. नेबुलाइज़र एक मशीन है. जो दवा को महीन धुंध में बदलकर सांस के ज़रिए फेफड़ों तक पहुंचाती है. 6 महीने से ऊपर के बच्चों को एंटी-हिस्टामिन दवाएं दी जा सकती हैं. लेकिन सिर्फ डॉक्टर की सलाह पर ही. एंटी-हिस्टामिन एलर्जी के लक्षणों को कम करने वाली दवाएं होती हैं.

इसके अलावा, बच्चे को खूब पानी पिलाएं. उसे आराम करने दें. बच्चे की नाक में नमक वाला गुनगुना पानी भी धीरे-धीरे डाला जा सकता है. ये नाक और बलगम को साफ करने में मदद करता है. इससे खांसी या ज़ुकाम में बच्चों के लिए सांस लेना आसान हो जाता है. साथ ही, जिस कमरे में बच्चा रहता है, वहां की नमी बनाए रखने के लिए एयर ह्यूमिडिफायर का इस्तेमाल किया जा सकता है. कमरे की हवा साफ रखने के लिए एयर प्यूरिफायर भी लगा सकते हैं.

अगर फिर भी बच्चे को आराम न मिले, तो उसे डॉक्टर के पास लेकर जाएं.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

वीडियो: सेहत: प्रोस्टेट की सर्जरी के बाद सेक्स लाइफ खत्म हो जाती है?

Advertisement