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मटर के दाने जितनी पिट्यूटरी ग्लैंड में ट्यूमर पूरे शरीर का सिस्टम कैसे बिगाड़ देता है?

पिट्यूटरी ग्लैंड हमारे दिमाग में होती है. ये शरीर के कई ज़रूरी कामों को कंट्रोल करती है. कई बार इसी ग्लैंड में ट्यूमर बन जाता है. वैसे तो पिट्यूटरी ग्लैंड में बनने वाले ज़्यादातर ट्यूमर कैंसर नहीं फैलाते. पर ये पूरे शरीर पर अपना असर ज़रूर छोड़ते हैं.

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पिट्यूटरी ग्रंथि हमारे दिमाग में पाई जाने वाली एक ज़रूरी ग्रंथि है

हमारे दिमाग में मटर के दाने जितनी एक ग्लैंड होती है. इसका नाम है पिट्यूटरी ग्लैंड. ग्लैंड यानी ग्रंथि. शरीर में जितने भी ग्लैंड्स होते हैं. वो खास केमिकल तत्व बनाते हैं और उन्हें शरीर में छोड़ते हैं. फिर ये तत्व शरीर के कई ज़रूरी कामों को कंट्रोल करते हैं. जैसे हाइट बढ़ाना, मूड अच्छा रखना, हमें एनर्जी देना वगैरह वगैरह.

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अब ये जो पिट्यूटरी ग्लैंड है, इसे कहते हैं मास्टर ग्लैंड. क्यों? क्योंकि ये बाकी ग्लैंड्स को भी कंट्रोल करती है. अगर पिट्यूटरी ग्लैंड ठीक से काम न करे, तो शरीर में हॉर्मोन्स का बैलेंस बिगड़ सकता है. यानी ये ग्लैंड है बड़ी ज़रूरी.

लेकिन कई बार इसी ग्लैंड में ट्यूमर बन जाता है. वैसे तो पिट्यूटरी ग्लैंड में बनने वाले ज़्यादातर ट्यूमर नॉन-कैंसरस होते हैं, यानी ये कैंसर नहीं फैलाते. पर ये पूरे शरीर पर अपना असर ज़रूर छोड़ते हैं. इसलिए आज बात होगी पिट्यूटरी ग्लैंड में बनने वाले ट्यूमर की.

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पिट्यूटरी ग्रंथि क्या है और इसका शरीर में क्या काम होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर राजेश छाबड़ा ने. 

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डॉ. राजेश छाबड़ा, प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोसर्जरी, पीजीआई चंडीगढ़

पिट्यूटरी ग्रंथि हमारे दिमाग में पाई जाने वाली एक ज़रूरी ग्रंथि है. इसे मास्टर ग्लैंड (ग्रंथि) भी कहते हैं. ये दिमाग के नीचे वाले हिस्से में होती है. इसके चारों तरफ हड्डी का एक खोल होता है. पिट्यूटरी ग्रंथि इसी हड्डी के खोल के अंदर सुरक्षित रहती है. इस ग्रंथि का मुख्य काम हॉर्मोन्स को कंट्रोल करना है. हमारे शरीर में जितने भी हॉर्मोन्स हैं. जैसे थायरॉइड, ओवरी, टेस्टिस और ग्रोथ से जुड़े हॉर्मोन्स. यहां तक कि कोर्टिसॉल जैसे ज़रूरी हॉर्मोन को भी ये कंट्रोल करती है. पिट्यूटरी ग्रंथि के एक हिस्से को पोस्टीरियर पार्ट कहा जाता है. इस हिस्से में ये खुद प्रोलेक्टिन हॉर्मोन और यूरिन से जुड़े हॉर्मोन्स बनाती है.

पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर क्यों बन जाते हैं?

पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर बनने का कोई एक तय कारण नहीं है. कई बार ये जीन्स में बदलाव यानी म्यूटेशन की वजह से हो सकता है. कभी इसमें इनवायरमेंटल फैक्टर्स भूमिका निभाते हैं. कुछ लोगों में जन्म से ही जेनेटिक बदलाव होते हैं, जिन्हें कंजेनिटल बदलाव कहा जाता है. जैसे MEN सिंड्रोम (मल्टीपल एंडोक्राइन नियोप्लासिया), ऐसी कंडिशंस में ट्यूमर बनने की संभावना होती है. इसके अलावा, पिट्यूटरी ट्यूमर के पीछे कोई एक खास कारण नहीं है.

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पिट्यूटरी ग्रंथि में होने वाले सारे ट्यूमर कैंसर के होते हैं?

पिट्यूटरी ट्यूमर के लिए कैंसर शब्द इस्तेमाल करना ठीक नहीं होगा. इसके लिए रसोली शब्द ज़्यादा सही है. यानी ऐसी गांठ या ग्रोथ, जो कैंसर फैलाने वाली न हो. इस रसोली का असर एक तो इसके साइज़ की वजह से होता है. दूसरा, अगर फंक्शनल ट्यूमर हो (ऐसा ट्यूमर जो हॉर्मोन बनाता है), तो ये ज़रूरत से ज़्यादा हॉर्मोन बनाने लगता है. 

पिट्यूटरी ग्रंथि के चारों तरफ हड्डी का एक खोल (कैविटी) होता है. जब रसोली बढ़ती है, तो वो पहले उसी सीमित कैविटी में फैलती है. अगर ट्यूमर छोटा है और हॉर्मोन्स पर असर नहीं डाल रहा, तो लक्षण नहीं दिखते. लेकिन अगर ट्यूमर छोटा है, पर वो हॉर्मोन्स ज़्यादा बना रहा है, तब लक्षण दिख सकते हैं. 

अगर ट्यूमर हॉर्मोन्स नहीं बना रहा, तो उसका साइज़ बोन कैविटी के साइज़ तक बढ़ेगा. फिर वो कैविटी पर दबाव डालेगा. इससे मरीज़ को सिरदर्द की शिकायत रहेगी. कैविटी कहां कमज़ोर है, उस हिसाब से ट्यूमर अपने बढ़ने का पैटर्न तय करता है. ज़्यादातर मामलों में ट्यूमर ऊपर की तरफ बढ़ता है. ऊपर डायाफ्राम सेले होता है, जो आंखों की नसों के पास होता है. ये एक पतली झिल्ली होती है, जो पिट्यूटरी ग्रंथि को ढक कर रखती है. जब ट्यूमर वहां दबाव बनाता है, तो सबसे पहले साइड विज़न पर असर होता है. धीरे-धीरे ये पिट्यूटरी ग्रंथि को भी दबा सकता है. इससे ग्रंथि की हॉर्मोन बनाने की क्षमता कम हो जाती है यानी हाइपोफंक्शन होने लगता है. जब मरीज़ को लक्षण परेशान करने लगते हैं, तब वो डॉक्टर के पास जाता है और ट्यूमर का पता चलता है. कई बार लोग देर करते रहते हैं, और तब तक ट्यूमर का साइज़ बड़ा हो चुका होता है.

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अगर ट्यूमर आंखों की नसों पर दबाव डालता है, तो सबसे पहले साइड विज़न यानी किनारे की चीज़ें देखने पर असर पड़ता है
पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर होने पर क्या लक्षण महसूस होते हैं?

अगर ट्यूमर आंखों की नसों पर दबाव डालता है, तो सबसे पहले साइड विज़न यानी किनारे की चीज़ें देखने पर असर पड़ता है. अगर ट्यूमर हॉर्मोन बना रहा है, तो उस हॉर्मोन से जुड़े लक्षण दिखते हैं. जैसे अगर ग्रोथ हॉर्मोन ज़्यादा बन रहा हो, तो हाथ-पैर बड़े दिखने लगते हैं. होंठ बड़े हो जाते हैं. नाक, चमड़ी, हाथ-पैर मोटे हो जाते हैं. इन लक्षणों को आप आसानी से पहचान सकते हैं. 

अगर ट्यूमर कोर्टिसोल हॉर्मोन ज़्यादा बनाने लगे, तो कुशिंग सिंड्रोम जैसे लक्षण दिख सकते हैं. जैसे हाइपरपिगमेंटेशन (स्किन पर गहरे दाग), हाइपरटेंशन, गर्दन के पीछे चर्बी जमा होना जिसे बफैलो हंप कहते हैं. अगर थायरॉइड हॉर्मोन ज़्यादा बने, तो दिल की धड़कन तेज़ होना (पल्पिटेशन), दिल के काम पर असर जैसे लक्षण दिखते हैं. लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि कौन-सा हॉर्मोन ज़्यादा बन रहा है. 

अगर ट्यूमर छोटा हो लेकिन हॉर्मोन ज़्यादा बना रहा हो. तब वो जल्दी पकड़ में आ जाता है, क्योंकि शरीर में वैसे बदलाव आने शुरू हो जाते हैं. अगर ट्यूमर हॉर्मोन्स नहीं बना रहा है, जिसे नॉन-फंक्शनल ट्यूमर कहते हैं. तब शरीर के हॉर्मोन धीरे-धीरे कम होने लगते हैं. इससे ट्यूमर बढ़ता रहेगा, पर लक्षण बहुत ज़्यादा नहीं दिखेंगे.

पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर का इलाज

पिट्यूटरी ग्रंथि का कोई भी ट्यूमर हो, उसका पहला इलाज ऑपरेशन ही है. ऐसा कोई तरीका नहीं है, जो ऑपरेशन से ज़्यादा असरदार हो. कुछ मरीज़ों में गामा नाइफ सर्जरी की जाती है. कुछ में रेडियोथेरेपी की जाती है. कुछ मरीज़ों में दवाइयों का इस्तेमाल भी होता है. पर ये किसी सहायक की तरह हैं. एक खास ट्यूमर प्रोलैक्टिनोमा, जिसमें शरीर में प्रोलैक्टिन हॉर्मोन बहुत ज़्यादा बनता है. उसमें अक्सर दवाओं से ही इलाज संभव होता है, इसलिए पहले दवाएं दी जाती हैं.

बाकी सभी ट्यूमर में ऑपरेशन ही पहली पसंद होती है. अगर सर्जरी के बाद ट्यूमर पूरी तरह नहीं निकलता या हॉर्मोन्स का स्तर नॉर्मल नहीं होता. तब फिर एडजुवेंट थेरेपी दी जाती है. लेकिन अगर ट्यूमर पूरा निकल जाए और हॉर्मोन्स सामान्य हो जाएं. तो मरीज को सिर्फ नियमित फॉलोअप की ज़रूरत होती है. ज़्यादातर मामलों में ट्यूमर जल्दी दोबारा नहीं आता.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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