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दुनियाभर में बढ़ रहा 'सुपर फ्लू', बचने के लिए क्या करें?

वैसे सर्दियों में हर साल ही फ्लू के मामले बढ़ते हैं. लेकिन इस बार बहुत कम समय में मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है. इसी वजह से इसे सुपर फ्लू कहा जा रहा है.

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अगर किसी को फ्लू है तो वो खुद को आइसोलेट कर लें (फोटो: Freepik)

ब्रिटेन के बाद अमेरिका, कनाडा और पाकिस्तान में भी 'सुपर फ्लू' के मामले बढ़ने लगे हैं. वैसे सर्दियों में हर साल ही फ्लू के मामले बढ़ते हैं. लेकिन इस बार बहुत कम समय में मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है. इसी वजह से इसे सुपर फ्लू कहा जा रहा है.

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ब्रिटेन में 18 दिसंबर को जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले हफ्ते के आखिर तक हर दिन औसतन 3,140 लोग फ्लू की वजह से अस्पताल में भर्ती थे. ये नंबर इससे पहले वाले हफ्ते के मुकाबले 18 परसेंट ज़्यादा है. वहीं, पिछले साल 2024 में इसी वक्त अस्पताल में फ्लू के औसतन 2,629 मरीज़ भर्ती थे. 

हालांकि ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में फ्लू के मामले कम हुए हैं. लेकिन पूरी तरह कंट्रोल में नहीं आए हैं. वहीं कुछ हिस्सों में मामले अभी भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं. 

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अमेरिका की बात करें, तो सेंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन यानी CDC ने 19 दिसंबर को कुछ आंकड़े जारी किए थे. इसके मुताबिक, वहां अब तक करीब 10 हज़ार लोग फ्लू के चलते अस्पताल में भर्ती हो चुके हैं. 

इसी तरह कनाडा और पाकिस्तान में भी सुपर फ्लू के मामलों में तेज़ी आई है. 

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फ्लू एक वायरल इंफेक्शन है, जो इन्फ्लुएंज़ा वायरस की वजह से होता है (फोटो: Freepik)

फ्लू एक वायरल इंफेक्शन है. जो इन्फ्लुएंज़ा वायरस की वजह से होता है. ये सांस से जुड़े अंगों यानी हमारी नाक, गले और फेफड़ों पर असर डालता है. 

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अभी H3N2 के सबक्लैड K की वजह से फ्लू के मामले बढ़ रहे हैं. 

देखिए, इंफ्लूएंज़ा वायरस 4 तरह का होता है. इंफ्लूएंज़ा A, B, C और D. जो H3N2 है, वो इंफ्लूएंज़ा A वायरस का सबटाइप है. और, सबक्लैड K इसी H3N2 वायरस का थोड़ा बदला हुआ वर्ज़न है. यानी ये कोई नया वायरस नहीं है. बल्कि पुराने फ्लू का अपडेटेड रूप है. जिसमें कुछ जेनेटिक बदलाव आ गए हैं. 

H3N2 के इसी सबक्लैड K को सुपर फ्लू कहा जा रहा है. लेकिन ये कोई मेडिकल टर्म नहीं है. 

सुपर फ्लू तेज़ी से क्यों फैल रहा है? इसके लक्षण और बचने का तरीका क्या है? ये सब हमने पूछा मेदांता हॉस्पिटल, नोएडा में इंटरनल मेडिसिन के एसोसिएट कंसल्टेंट, डॉ. सौरदीप चौधरी से. 

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डॉ. सौरदीप चौधरी, एसोसिएट कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसिन, मेदांता हॉस्पिटल, नोएडा

डॉक्टर सौरदीप कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में लोग H3N2 के सबक्लैड K के संपर्क में ज़्यादा नहीं आए हैं. इसलिए लोगों में इसके खिलाफ इम्यूनिटी भी कम है. इस वजह से ज़्यादा लोग एक साथ बीमार पड़ रहे हैं. 

अभी क्रिसमस आएगा. फिर न्यू ईयर. इस दौरान लोग एक-दूसरे से मिलेंगे. पार्टी करेंगे. इससे वायरस को तेज़ी से फैलने का मौका मिलेगा. 

सर्दियों में वैसे भी लोग ज़्यादातर घर के अंदर रहते हैं. एक सीमित एरिया में ज़्यादा समय बिताते हैं. खिड़की-दरवाज़े बंद होने से हवा का बहाव कम होता है. इससे वायरस एक से दूसरे इंसान में जल्दी ट्रांसफर होता है.

जब फ्लू से कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता या बात करता है. तो थूक और बलगम की बारीक बूंदों के साथ वायरस हवा में फैल जाता है. अगर किसी सतह पर ये वायरस मौजूद हो और कोई दूसरा उस सतह को छूकर अपनी नाक, मुंह या आंखों को छू ले. तो इससे भी वायरस दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाता है. ऐसे में फ्लू तेज़ी से फैलता है. 

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 H3N2 से संक्रमित होने पर तेज़ बुखार, सूखी खांसी और छीकें आएंगी (फोटो: Freepik)

जब कोई व्यक्ति H3N2 से संक्रमित होता है. तब उसे कंपकंपी लगकर तेज़ बुखार आता है. सूखी खांसी आती है. छीकें आती हैं. गले में खराश रहती है. गले में दर्द होता है. नाक बहती है या नाक जाम हो जाती है. बदन दर्द होता है. सिर में तेज़ दर्द होता है. बहुत थकान लगती है. बच्चों को उल्टी आ सकती है, डायरिया भी हो सकता है. ये लक्षण आमतौर पर 5 से 7 दिन तक रहते हैं. बुखार लगभग 3 दिन में उतर जाता है. लेकिन खांसी कई हफ़्तों तक बनी रह सकती है.

वैसे तो फ्लू या सुपर फ्लू से कोई भी संक्रमित हो सकता है. पर बच्चों, बुज़ुर्गों, प्रेग्नेंट महिलाओं और पहले से किसी बीमारी से जूझ रहे लोगों को इसका रिस्क ज़्यादा होता है.

देखिए, अभी भारत में तो सुपर फ्लू के मामले नहीं आए हैं. लेकिन कोविड महामारी ने बता दिया कि किसी वायरस के फैलने के लिए दूरी मायने नहीं रखती. वैसे भी इंफ्लुएंज़ा कोई नया वायरस नहीं है. और अभी सितंबर में ही दिल्ली-NCR में फ्लू के मामले तेज़ी से बढ़े थे. इसलिए हमारे लिए सतर्कता बरतना बहुत ज़रूरी है. 

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इंफ्लूएंज़ा वायरस से बचना है, तो फ्लू की वैक्सीन लगवाएं (फोटो: Freepik)

सुपर फ्लू से बचना है तो फ्लू की वैक्सीन लगवाएं. किसी भी वैक्सीन का मकसद आपको उस बीमारी से बचाना होता है. ये वैक्सीन शरीर में एंटीबॉडीज़ बनाने में मदद करती हैं. लगभग दो हफ्ते में शरीर में एंटीबॉडीज़ बनना शुरू हो जाती हैं. ये एंटीबॉडीज़ आपको फ्लू वायरस से बचाती हैं. फ्लू की वैक्सीन 70 से 90 परसेंट तक असरदार होती है. यानी वैक्सीन लगने के बाद आपको 'गंभीर' फ्लू नहीं होगा. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि फ्लू बिल्कुल ही नहीं होगा. बस वैक्सीन से फ्लू होने का चांस घट जाता है. अगर फ्लू होता भी है तो लक्षण गंभीर नहीं होते. पर कोई भी वैक्सीन 100% सुरक्षा नहीं देती. इसलिए खुद को बचाना ज़रूरी है. कैसे होगा ये?

अगर किसी को फ्लू है तो वो खुद को आइसोलेट कर लें. अपने दोस्तों, परिवार, कलीग्स से थोड़ी दूरी बनाकर रखें. पानी, नारियल पानी और जूस वगैरह पीते रहें. बुखार उतारने के लिए पैरासिटामॉल ले सकते हैं. जुकाम, खांसी के लिए भी दवाई ले सकते हैं. लेकिन ये तभी करें जब आपको कोई दूसरी बीमारी न हो.

अगर आपको बीपी की दिक्कत है. डायबिटीज़ है. दिल, फेफड़ों या किडनी की कोई बीमारी है. या फिर उम्र 65 से ज़्यादा है. तो डॉक्टर की सलाह पर ओसेल्टामिविर नाम की दवाई ले सकते हैं. जितनी जल्दी ये दवा शुरू करेंगे, उतना अच्छा असर होगा. इस दवा का कोर्स 5 दिनों का होता है. इसलिए, जब भी आपको फ्लू जैसे लक्षण हों, तो तुरंत डॉक्टर से मिलकर इलाज शुरू कराएं.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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