The Lallantop

अंतिम सांस के साथ ही बंद हुआ लिखना, विनोद कुमार शुक्ल नहीं रहे

प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया. वह 88 साल के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एम्स में उन्होंने आखिरी सांस ली.

Advertisement
post-main-image
विनोद शुक्ल का 88 साल की उम्र में निधन (india today)

प्रख्यात हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) का निधन हो गया है. वह 88 साल के थे और पिछले कुछ दिनों से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे. उन्हें सांस की समस्या के चलते AIIMS, रायपुर के क्रिटिकल केयर यूनिट (CCU) में भर्ती कराया गया था. मंगलवार, 23 दिसंबर की शाम को AIIMS प्रशासन ने उनके निधन की जानकारी दी.

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement

1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद शुक्ल समकालीन हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में गिने जाते थे. हाल ही में उनकी एक तस्वीर सामने आई थी. इसमें वह अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद कुछ लिखते हुए दिखे. सोशल मीडिया पर उनकी ये तस्वीर उन्हीं की एक प्रसिद्ध पंक्ति के साथ खूब शेयर की गई. इसमें वह कहते हैं, “लिखना मेरे लिए सांस लेने की तरह है.”

विनोद शुक्ल पहले से ही इंटरस्टिशियल लंग डिजीज के मरीज थे. बीते दिनों सांस से संबंधित समस्या होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 1 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब छत्तीसगढ़ गए थे, तब उन्होंने फोन करके विनोद शुक्ल का हालचाल जाना था.

Advertisement

विनोद शुक्ल के बेटे शाश्वत ने बताया था कि पीएम मोदी ने डेढ़ मिनट तक उनके पिता से बातचीत की थी. इस बातचीत में पीएम मोदी ने पूछा कि वे क्या चाहते हैं. इस पर विनोद शुक्ल ने जवाब दिया था, 

बस घर जाना चाहता हूं. लिखना चाहता हूं. क्योंकि लिखना मेरे लिए सांस की तरह है.

v
विनोद कुमार शुक्ल की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी

विनोद कुमार शुक्ल के निधन (23 दिसंबर 2025) के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके सम्मान में रायपुर में होने वाले अपने सभी आधिकारिक कार्यक्रमों को रद्द (निरस्त) कर दिया है. बताया गया कि यह फैसला उनकी साहित्यिक विरासत और प्रदेश के लिए उनके योगदान को श्रद्धांजलि देने का एक महत्वपूर्ण कदम है. 

Advertisement

विनोद शुक्ल ने जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की थी. ‘लगभग जयहिन्द’, ‘वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘कविता से लम्बी कविता’, ‘कभी के बाद अभी’, ‘प्रतिनिधि कविताएं’ नाम से उनकी कविता की किताबें प्रकाशित थीं. इसके अलावा, ‘पेड़ पर कमरा’. ‘महाविद्यालय’ , ‘नौकर की क़मीज़’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’ जैसी किताबें भी उन्होंने लिखीं. 

विनोद शुक्ल को साल 2024 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. वो ये सम्मान वाले छत्तीसगढ़ के पहले साहित्यकार हैं. इसके अलावा वह साहित्य अकादमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार और मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवॉर्ड से भी सम्मानित किए जा चुके हैं. उन्हें अमेरिका का प्रसिद्ध पेन नाबोकॉव अवॉर्ड भी दिया गया था.

उनकी किताब ‘नौकर की कमीज’ पर निर्देशक मणि कौल ने 1999 में एक फिल्म बनाई थी. इसके अलावा उनकी ‘आदमी की औरत’ और ‘पेड़ पर कमरा’ समेत कई कहानियों पर अमित दत्ता के निर्देशन में फिल्म ‘आदमी की औरत’ बनी थी, जिसे साल 2009 में वेनिस फिल्म फेस्टिवल में स्पेशल इवेंट पुरस्कार दिया गया था.

विनोद शुक्ल हाल ही में हिंदी के किताबों की सबसे बड़ी रॉयल्टी पाकर भी चर्चा में आए थे. प्रकाशक की ओर से दावा किया गया था कि उनकी 'किताब दीवार में एक खिड़की रहती थी' की 87 हजार प्रतियां बिकी थीं, जिस पर उन्हें 30 लाख की रॉयल्टी मिली.

इससे पहले शुक्ल ने एक प्रसिद्ध प्रकाशन समूह पर उनकी ‘किताबों को बंधक बनाने’ का आरोप लगाया था, जिस पर काफी विवाद हुआ था.  

वीडियो: कर्नाटक में एक गर्भवती महिला की हत्या हो गई, 'इंटरकास्ट शादी' को लेकर था विवाद

Advertisement