फ़िल्म: गुलाबो सिताबो । डायरेक्टर: शुजीत सरकार । कलाकार: अमिताभ बच्चन, आयुष्मान ख़ुराना, फारुख़ ज़फर, सृष्टि श्रीवास्तव, विजय राज, बृजेंद्र काला । अवधि: 2 घंटा 04 मिनट । प्लेटफॉर्मः एमेज़ॉन प्राइम वीडियो
फ़िल्म रिव्यूः गुलाबो सिताबो
विकी डोनर, अक्टूबर और पीकू की राइटर-डायरेक्टर टीम ये कॉमेडी फ़िल्म लेकर आई है.

मिर्ज़ा ज़रा लालची इंसान हैं. पैसे की किल्लत है तो कंजूसी आ ही जाती है. वो बांके से बार बार कहते हैं कि वो किराया बढ़ा दे या घर खाली कर दे. बांके कहता है - "जित्ता दे रहे हैं उत्ता ही ले लो वरना ये भी नहीं देंगे और मकान भी खाली नहीं करेंगे".

बाइक लेकर आटा चक्की जा रहे बांके का रास्ता रोकते मिर्ज़ा, किराए का तकादा करते हुए. (फोटोः Amazon Prime video)
मिर्ज़ा हवेली खाली कराने या किराया बढ़वाने के लिए तरह तरह की हरकतें करते हैं. बल्ब निकाल लेते हैं, साइकल की घंटियां निकाल लेते हैं, रात में बिजली काट देते है, लेट्रीन यानी पाख़ाने के ताला लगाकर आगे चारपाई डालकर सो जाते हैं. लेकिन बांके भी जिद्दी है, वो भिड़ा रहता है. मिर्ज़ा को 'तू', 'बुढ़ऊ', 'छछुंदर' कहकर ही संबोधित करता है. इनकी ये तकरार आगे क्या ग़ुल खिलाती है ये फिल्म में दिखता है.
'गुलाबो सिताबो' को शुजीत सरकार ने डायरेक्ट किया है. जिन्होंने विकी डोनर, पीकू, अक्टूबर जैसी फिल्में डायरेक्ट की हैं. वे ऋषिकेश मुखर्जी वाली धारा के फिल्ममेकर हैं. उनकी ये सब फिल्में लिखने वाली जूही चतुर्वेदी ने गुलाबो सिताबो भी लिखी है. स्टोरी, स्क्रीनप्ले, डायलॉग तीनों. जूही के लिखे कुछ डायलॉग अच्छे हैं. जैसे -
1. बांके का अपनी बहनों से कहना - "तुम लोग एक साल में चार साल कैसे बड़ी हो जाती हो, थोड़ा वक्त तो दो पैसा जमा करने के लिए". ये वो तब बोलता है जब उसे बहनें बताती हैं कि वे काफी आगे की कक्षाओं में आ चुकी हैं और दद्दा को पता भी नहीं होता.

बहनों से बात करता बांके. (फोटोः Amazon Prime video)
2. फत्तो बी का शहदभीगी आवाज़ में कहना - "अरे बल्ब नहीं चोरी हुआ, निगोड़ी जयदाद चोरी हो गई". वो ये तब बोलती हैं जब बांके शिकायत करता है कि रात को किसी ने यानी मिर्ज़ा ने बल्ब चुरा लिए.
3. बांके-मिर्ज़ा का संवाद. जब बांके उन्हें लालची कहता है तो मिर्ज़ा बोलते हैं - "अव्वल तो ये कि हमने आज तक सुना नहीं है कि कोई लालच से मरा हो. और दूसरा, ये कि हम लालची हैं ही नहीं. हवेली का लालच नहीं है, उल्फत है, मुहब्बत है, हवेली से. बेइंतहा."

इस सीन में बांके मिर्ज़ा के पास आकर कहता है लालच छोड़ो और मुझे बेटा बनाकर गोद ले लो. (फोटोः Amazon Prime Video)
4. सबसे फनी डायलॉग और सीन वो लगता जब मिर्ज़ा अपनी बीवी के रिश्तेदार से मिलने जाते हैं और वो रिश्तेदार कहता है - "फत्तू बी अभी भी ज़िंदा है?" इस पर सपाट चेहरे और भोलेपन के साथ मिर्ज़ा कहते हैं - "मर ही नहीं रहीं."
कुछ बेदम डायलॉग भी हैं. जैसे, जब बांके आसिफुदौला की कहानी सुनाता है जिन्होंने फैज़ाबाद से आकर लखनऊ शहर को बनाया. वो तीन-चार लाइन का संवाद कोई असर नहीं छोड़ता.
विजय राज ने पुरातत्व विभाग में काम करने वाले शुक्ला का रोल किया है. बृजेंद्र काला ने वकील क्रिस्टोफर क्लार्क का, जो मकान खाली करवाता है किराएदारों से.

शुक्ला बने विजय राज और वकील के रोल में बृजेंद्र काला. (फोटोः Amazon Prime Video)
चार महिला किरदार और उन्हें करने वाली एक्ट्रेस ख़ास याद रहती हैं.
फत्तो बी का रोल करने वाली फारुख़ ज़फर. जिन्हें हम स्वदेश और पीपली लाइव में देख चुके हैं.
बांके की मां का रोल करने वाली एक्ट्रेस.
बांके की बहन गुड्डो का रोल करने वाली सृष्टि श्रीवास्तव.

तीन किरदार - फत्तो बी, बांके की मां, बहन गुड्डो.
और फातिमा महल में ही रहने वाली एक महिला जो पूरा झुककर चलती हैं, जिनका बोला समझ नहीं आता. ये पात्र मुझे पाथेर पांचाली की बुजुर्ग महिला इंदीर ठकुराइन की याद दिला गया जो रोल देखते हुए लगा था कि किसी नॉन एक्टर ने किया होगा लेकिन असल में वो पेशेवर एक्ट्रेस चुनीबाला देवी थीं.

शुजीत की फिल्म का किरदार, सत्यजीत राय की फिल्म में उस बुजुर्ग का किरदार.
गुलाबो सिताबो की सिनेमैटोग्राफी यानी कैमरे का काम अवीक मुखोपाध्याय ने किया है. उन्होंने बंगाली फिल्में ज्यादा की हैं और कुछ हिंदी - जैसे, पिंक, अक्टूबर, बदला, चोखेर बाली, अंतहीन, राजकाहिनी. एडिटिंग चंद्रशेखर प्रजापति की है. वे 2005 में आई फिल्म 'यहां' से लेकर गुलाबो सिताबो तक शुजीत की सब फिल्मों के एडिटर रहे हैं. बरेली की बर्फी, निल बटे सन्नाटा की एडिटिंग भी की.
प्रोस्थेटिक्स और मेकअप पिया कॉर्नीलियस का है. वे स्वीडन की हैं. इस फिल्म में मिर्ज़ा के किरदार के लिए बच्चन का प्रोस्थेटिक्स उन्होंने किया है. वे शूजीत की अक्टूबर और शूबाइट भी कर चुकी हैं. शूबाइट में अमिताभ का प्रोस्थेटिक्स भी ऐसा ही आकर्षक था. वो फिल्म बरसों से अटकी हुई है. गुलाबो सिताबो का प्रोडक्शन डिजाइन, आर्ट डायरेक्शन, कॉस्ट्यूम और मेकअप इसकी सबसे आकर्षक चीजों में है.
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बांके और मिर्ज़ा. लिखने वाले के हाथ की कठपुतलियां. (फोटोः Amazon Prime Video)
कहानी के इन दो दिशाओं में भागने की कोशिश, इसे देखने के पूरे प्रोसेस को एक तरह की अर्थहीनता या inconsequentiality में तब्दील कर देती है.
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