कोरोना और लॉकडाउन प्रभावितों की मदद के लिए 1.7 लाख करोड़ की योजना लाई मोदी सरकार
जिस टेस्ट ने साउथ कोरिया में कोरोना की चेन तोड़ी, वो अब भारत आ रहा है
पांच लाख किट मंगाई गई हैं.

साउथ कोरिया ने देश में कोरोना के केस आते ही स्क्रीनिंग टेस्ट को अपना लिया था. ये आसानी से होता है और जल्दी रिज़ल्ट देता है.
अभी हफ्ते-दस दिन पहले की बात है. साउथ कोरिया में कोरोना वायरस के सात से आठ हज़ार केस आ चुके थे. इसे कोरोना से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए देशों में गिना जा रहा था. लेकिन इसके बाद के कुछ दिनों में साउथ कोरिया में नए केसेज़ की संख्या तेज़ी से कम हुई है. कुल केस अभी करीब साढ़े नौ हज़ार के आस-पास हैं. साउथ कोरिया ने जिस टेस्ट के दम पर कोरोना इंफेक्शन की चेन को कमज़ोर किया, वही टेस्ट अब भारत आ रहा है. नाम है- सेरोलॉजिकल टेस्ट. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी ICMR. भारत में बायोमेडिकल रिसर्च की सबसे बड़ी संस्था. ICMR अब कोरोना वायरस के टेस्ट में मदद करने वाली पांच लाख किट मंगा रही है. ये किट अब तक इस्तेमाल हो रही टेस्टिंग किट से अलग होगी. वर्किंग भी अलग होगी और इस्तेमाल भी. इसकी मदद से सेरोलॉजिकल टेस्ट किया जा सकेगा. सेरोलॉजिकल टेस्ट होता क्या है? कोरोना का स्क्रीनिंग टेस्ट है सेरोलॉजिकल टेस्ट कुछ-कुछ ब्लड टेस्ट जैसा. खून लिया जाएगा. उसका टेस्ट किया जाएगा. कुछ घंटों में ही रिपोर्ट भी आ जाएगी. लेकिन एक पेंच है. इस टेस्ट से ये नहीं पता चलता कि फलां इंसान कोरोना पॉजिटिव है या नहीं. बल्कि टेस्ट ये ये दो बातें पता चलेंगी.. पहली बात जो पता चलेगी- क्या वो व्यक्ति हाल-फिलहाल किसी इंसान या अन्य माध्यम से कोरोना वायरस के संपर्क में आया है? दूसरी बात- अगर नहीं, तो कोई बात नहीं. अगर हां, तो क्या इस व्यक्ति को भी कोरोना टेस्ट की ज़रूरत है? अगर ज़रूरत है, तो टेस्ट के लिए भेज दिया जाएगा. अगर ज़रूरत नहीं है तो भी उसे क्वारंटीन किया जाएगा. ऐहतियात के तौर पर. यानी सेरोलॉजिकल टेस्ट एक तरह की छन्नी है, जो हर उस व्यक्ति को छानकर अलग कर देती है, जो हाल-फिलहाल जाने-अनजाने में कोरोना वायरस के इंफेक्शन में भले ना सही, लेकिन इन्फ्लूएंस में आया हो. इसीलिए इसे स्क्रीनिंग टेस्ट कहा जाता है. कोरिया ने इसका कैसे इस्तेमाल किया? कोरिया ने सेरोलॉजिकल टेस्ट के ज़रिये लोगों को दो हिस्सों में बांटा. जिन्हें कोरोना टेस्ट की ज़रूरत है और नहीं है. इस तरह से काम कुछ आसान हुआ. फिर जिन्हें टेस्ट की ज़रूरत नहीं थी, उन्हें कहा गया कि घर में लॉक हो जाइए. जिन्हें टेस्ट की ज़रूरत थी, उनके टेस्ट हुए. जो पॉजिटिव निकले, उनका इलाज़. जो नेगेटिव निकले, उन्हें क्वारंटीन. इससे ज़्यादा से ज़्यादा मामले तो सामने आए, लेकिन जल्दी जल्दी पहचान हो जाने से इंफेक्शन और नहीं फैला. इस तरीके से टेस्ट में आई तेजी का ही नतीजा रहा कि साउथ कोरिया ने औसतन हर हफ्ते करीब 20 से 25 हजार टेस्ट किए. अब तक भारत में टेस्ट कैसे हो रहा है? RT-PCR मैथड से. यानी रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमर्स चेन रिएक्शन. इसको बोलचाल में PCR टेस्ट ही कहते हैं. ये शरीर की जेनेटिक्स से जुड़ा टेस्ट है. PCR टेस्ट एक तो महंगा है, सबकी पहुंच में नहीं है और सबका PCR टेस्ट करने का अब समय भी नहीं बचा है क्योंकि इसके रिज़ल्ट आने में वक्त लगता है. इसके लिए अच्छा है कि ज़रा सा भी शक होने पर एक बार सेरोलॉजिकल टेस्ट से जल्दी-जल्दी उन लोगों की पहचान कर ली जाए, जिनके PCR टेस्ट करने की ज़रूरत है. फिर इनके टेस्ट किए जाएं, रिज़ल्ट के मुताबिक आगे काम हो. फिलहाल ICMR ने किट बनाने वाली कंपनियों से कहा है कि सेरोलॉजिकल टेस्ट किट के लिए सैंपल भेजें. इसके लिए 24 घंटे का ही समय दिया गया है. ताकि जल्द से जल्द किट फाइनल कर स्क्रीनिंग टेस्ट शुरू हो सकें.
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