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हेमंत सोरेन अमित शाह को पटखनी दे पाए, उसकी वजह ये रही

हेमंत सोरेन ने साबित किया कि झारखंड के चाणक्य वो हैं, कोई और नहीं.

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लोहरदगा से पहले गिरिडीह में भी CAA समर्थक रैली पर भी पथराव हुआ था. लेकिन हेमंत सरकार लोहरदगा में इस घटना का दोहराव नहीं रोक पाई. (फोटोः इंडिया टुडे)
झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे हमारे सामने हैं. हेमंत सोरेन अब महागठबंधन के सीएम होंगे. भाजपा की रघुबर दास सरकार गिर गई है. नतीजे ये रहे – महागठबंधन (झामुमो+कांग्रेस+राजद) – 47 भाजपा – 25 झारखंड विकास मोर्चा – 3 आजसू – 2 अन्य – 3 ये हैं वो तीन वजहें कि झारखंड मुक्ति मोर्च, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के महागठबंधन को जीत मिली – 1. जो जीता वो सिकंदर - हेमंत सोरेन झारखंड के लिए हेमंत सोरेन दिशोम गुरू शिबू सोरेन के वारिस हैं. लेकिन हेमंत इस विरासत को लेकर बैठे नहीं रहे. उन्होंने लगातार सूबे के दौरे किए. मार्च 2018 के बाद उन्होंने दो यात्राएं निकालीं - बदलाव यात्र और संघर्ष यात्रा. वो हर विधानसभा सीट पर कम से कम दो बार खुद पहुंचे. 182 सभाएं कीं. ऐसे में वो जनता की नज़र में भी सीएम फेस हो गए. जैसे ही भाजपा रघुबर दास को लेकर असहज होने लगी, मुकाबल हेमंत के पक्ष में झुकने लगा. सवाल हो गया - हमारा चेहरा हेमंत, तुम्हारा कौन? भाजपा के पास मोदी नाम का अंगद का पांव है. लेकिन वो तो दिल्ली में जमा है. और दिल्ली से रांची थोड़ा दूर रह गया. 2. बलिदान देना होगा - झामुमो का गठबंधन धर्म महागठबंधन में तीन पार्टियां हैं. लेकिन झामुमो ने दिल बड़ा रखा. झामुमो जब भाजपा के साथ थी तो बराबरी पर थी. बावजूद इसके महागठबंधन बनाने के लिए कांग्रेस-राजद को सीटें देने में ना नुकुर नहीं किया. ऐसा भी नहीं था कि अपना ध्यान नहीं रखा. जब बाबूलाल मरांडी की महत्वाकांक्षा गठबंधन पर भारी लगने लगी, तो उनसे किनारे किया. जो काम का था, उसे साथ लिया, जो नहीं था, उसे नमस्ते किया. दुरुस्त टिकट वितरण भी रहा. फिर तीनों पार्टियों और ज़मीन में कार्यक्ताओं ने अच्छे संयोजन के साथ चुनाव लड़ा - एक ऐसी चीज़ जो विपक्ष यूपी में नहीं कर पाया था. 3. बाहरी नहीं चलेगा - लोकल मुद्दों पर फोकस महागठबंधन ने इस बात को याद किया कि झारखंड में जितने सीएम हुए, सब आदिवासी थे. सो बिना रिस्क लिए दिशोम गुरू के बेटे को आगे कर दिया. फिर चुनाव को स्थानीय बनाए रहे. अमित शाह राम मंदिर की बात करते थे. मोदी रैली में कपड़ों से पहचान पूछते थे. लेकिन महागठबंधन सीटवार अभियान चलाता रहा. नरेंद्र मोदी या भाजपा के किसी स्टार प्रचारक को सीधे निशाने पर नहीं लिया. झामुमो ने खुलकर आदिवासी कार्ड भी खेला. और उस खेल को बेहतर भी किया. उसे संथालों की पार्टी माना जाता था. हेमंत ने दूसरी बड़ी जातियों जैसे ओराओं को साथ लिया. नतीजा, हम सबके सामने है.
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