सईद अनवर : ऑफ़ साइड का दूसरा भगवान जिसने इंडिया के ख़िलाफ़ वन-डे में 194 रन ठोंके
आज जन्मदिन है इस क्रिकेटर का.

चेन्नई की जनता शोर मचा रही थी. कुछ ही देर में विकेट गिरने से मचने वाला शोर शाबाशी के शोर में तब्दील हो गया. आउट हुआ बैट्समैन अब वापस पवेलियन की ओर चल रहा था. उसकी जर्सी हरे रंग की थी जिसपर साफ़ लिखा था - पाकिस्तान.
ये वो समय नहीं था जब मनमुताबिक बातें न कहने वाले को पाकिस्तान चले जाने की सलाह दी जाती थी. अभी तक वो समय भी नहीं आया था जब देश में पाकिस्तान का फ़ोबिया फैला था. न ही वो समय जब सरकारी शक्लों का विरोध पाकिस्तान का सपोर्ट कहलाता था. भारत ने तो अभी तक पोखरण में अपने न्यूक्लियर बमों को भी नहीं चखा था जिसके जवाब में पाकिस्तान ने ठीक पन्द्रहवें दिन अपनी ज़मीन पर भी ऐसा ही कुछ किया था. बुद्ध के दूसरी बार मुस्कुराने में अभी साल बाकी था.
सचिन तेंदुलकर ने अपनी सत्ता स्थापित नहीं की थी. उन्हें शारजाह में रेतीली आंधी के बीच ऑस्ट्रेलिया को धूल चटाने में भी वक़्त था. इस सब से बहुत पहले, चेन्नई के दर्शक एक पाकिस्तानी बल्लेबाज के लिए तालियां बजा रहे थे. उन 5 मिनटों के लिए पाकिस्तान और भारत नाम के देश पानी में नमक की तरह घुल गए थे. सौरव गांगुली अभी भी ज़मीन पर पड़े हुए थे. टीम के कुछ खिलाड़ी उन तक पहुंच चुके थे और कुछ पहुंच रहे थे. लेकिन सभी सईद अनवर को देख रहे थे. सईद अनवर जिसने दो गेंद पहले ही दुनिया का सबसे बड़ा वन-डे स्कोर बनाया था. 194 रन. विव रिचर्ड्स का 189 रनों का रिकॉर्ड 13 साल बाद टूटा था. वन-डे क्रिकेट में नया इतिहास बन चुका था.

पोखरण में टेस्ट के बाद टूट चुकी पिच.
फ़िल्मों में नायक हमेशा धड़कन के अक्षय कुमार की तरह राम नहीं होते. अक्सर वो सुहाग के अक्षय कुमार की तरह हमाम में झाग लगाए पड़ा रह सकता है और फिर 'इट्स माय लाइफ़' की तेज़ आवाज़ पर बिना किसी औपचारिकता साबुन रगड़ते हुए नाच-नहा सकता है. सईद अनवर सुहाग के अक्षय कुमार की तरह ही था. एकदम बेधड़क.सईद अनवर. लेफ़्ट हैंड बैट्समैन जिसकी डिक्शनरी में फ़ुटवर्क शब्द की जगह नहीं थी. वो हैंड-आय कोऑर्डिनेशन के दम पर बैटिंग करता था. आंख और हाथ के बीच ऐसा तालमेल कि हाथ थामे खड़े फील्डर्स के बीच से गेंद निकाल दे. ऑफ साइड पर ज़रा सी जगह मिलते ही कब सईद अनवर घुटने पर बैठ गेंद को स्लैश कर देता था और कब गेंद बाउंड्री पर जा गिरती थी, मालूम नहीं पड़ता था.
सईद अनवर की जो ताकत थी वही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थी - शरीर से दूर चलता बल्ला. क्रिकेट की कभी न लिखी किताबों में ये साफ़-साफ़ लिखा गया है कि बल्लेबाज गेंद को अपने शरीर से जितना पास मारे, उतना बेहतर. लेकिन सईद अनवर ने इन किताबों की ओर ध्यान ही नहीं दिया. और यही विद्रोह अनवर को पॉपुलर और सफ़ल बनाता चला गया. वो सईद अनवर जिसके बारे में लगातार ये कहा जाता रहा कि उनका ध्यान क्रिकेट पर ज़्यादा देर तक नहीं टिका रहता, एक वक़्त पर अपने अटैकिंग क्रिकेट को टेस्ट मैचों में लेकर गया और वहां भी सफ़ल रहा. ये क्रम ऐसा चला कि माजिद खान के बाद सबसे बेहतरीन ओपनिंग बैट्समैन बन गया. कट्टर फैन्स तो ये भी कहते हैं कि सईद अनवर ने पाकिस्तान के सबसे पहले स्टार क्रिकेटर हनीफ़ मोहम्मद को भी पीछे कर दिया था.
सईद अनवर को एक ही काम आता था. बैटिंग. फ़ील्डिंग के डिपार्टमेंट में वो सबसे पीछे खड़े मिलते थे. इंजरी होती रहती थीं. गेंद के पीछे भागने में भी पीछे ही रहा करते थे. इसके साथ ही जब उन्हें कप्तानी दी गई तो भी वो उस ज़िम्मेदारी को संभाल नहीं सके. 11 मैच की कप्तानी में 6 हारे.
1999 में एक वाकये ने उनकी बल्लेबाज़ी को बदल कर रख दिया. पाकिस्तान क्रिकेट 20वीं सदी को एक बड़ी उपलब्धि के साथ विदा करने से एक कदम दूर खड़ी थी. वर्ल्ड कप फाइनल. पाकिस्तान बैटिंग करने उतरा और पहला विकेट बहुत जल्दी गिर गया. सईद अनवर अभी भी टिके हुए थे. पांचवां ओवर ख़त्म होने को था और और सईद ने ड्रेसिंग रूम की ओर इशारा कर बल्ले की ग्रिप (हत्थे पर चढ़ने वाली रबर) मंगवाई. ओवर के बीच ग्रिप बदली और अगली ही गेंद पर बोल्ड हो गए. ये बहुत बड़ा झटका था. इसके बाद पूरी टीम मात्र 111 रन और बना सकी और 132 पर ऑल आउट हो गई.
सवाल उठे. क्या सईद को ग्रिप बदलनी ज़रूरी थी? गेंद से ज़्यादा उनका ध्यान बल्ले की ग्रिप में था? मात्र 5 ओवर के खेल में ग्रिप कैसे ख़राब हो सकती है? अगर हुई तो क्या वो पूरी तैयारी के साथ नहीं आए थे? क्या सईद का पूरा ध्यान उनके खेल में ही था? ये सवाल सईद के मन में उठे और उन्हें खुद पर उतना विश्वास नहीं रह गया. एक खिलाड़ी के लिए इससे बड़ी चोट और कोई नहीं हो सकती. यहां से पाकिस्तान के शानदार ओपनर बल्लेबाज का बुरा दौर शुरू हुआ जो कि चार साल बाद अगले वर्ल्ड कप में आख़िरी बार पाकिस्तान की जर्सी पहने दिखा. आखिरी मैच के ठीक एक मैच पहले ही उसने भारत के ख़िलाफ़ शानदार सेंचुरी बनाई थी. हांलाकि उस सेंचुरी को सचिन की ऐतिहासिक इनिंग्स ने बौना साबित कर दिया था.

सईद अनवर का 1999 में बोल्ड और 2003 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सचिन.
21 मई 1997. भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट सीरीज़ आम बात थी. ये ऐसी ही पेप्सी इंडिपेंडेंस कप सीरीज़ का छठा मैच था. इंडिपेंडेंस कप इसलिए क्यूंकि साउथ एशिया के देशों (भारत, पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान जो कि आगे चलकर बांग्लादेश कहलाया) को ब्रिटिश ताकतों से आज़ादी मिले 50 साल पूरे हो रहे थे. पाकिस्तान ने टॉस जीता और पहले बैटिंग की. शाहिद अफ्रीदी को अबे कुरूविला ने अपने पहले और मैच के दूसरे ओवर में गांगुली के हाथों कैच करवाया. ये वो भारतीय टीम थी जब पेस बॉलर लम्बे कद के हुआ करते थे और उन्हें अच्छा उछाल मिलता था. एक छोर से वेंकटेश प्रसाद और दूसरे से देबाशीष मोहंती या कुरूविला. 6 फ़ुट 6 इंच के कुरूविला भारतीय टीम के लिए खेलने वाले सबसे लम्बे खिलाड़ी हैं. टीम के 97 रन के स्कोर पर कप्तान रमीज़ राजा का विकेट गिरा और कुछ देर बाद ही सईद अनवर ने रनर मांग लिया. अब ईजाज़ अहमद और अनवर के अलावा शाहिद अफ्रीदी भी मैदान के बीचों-बीच मौजूद थे.
यहां से बाज़ी ने पलटी मारना शुरू किया. अगले विकेट 116 रनों के बाद गिरा जिसमें ईजाज़ ने मात्र 39 रन बनाये. सईद अनवर ने खूंटा गाद दिया था. कुरूविला के साथ रॉबिन सिंह भी उछाल पा रहे थे लेकिन सईद के सामने किसी की नहीं चल रही थी. सचिन ने हर ऑप्शन ट्राई किया. वन-डे में शानदार बॉलिंग कर रहे अनिल कुंबले को अटैक पर लाए. सईद अनवर ने उन्हें 41वें ओवर में लगातार तीन छक्के मारे. उस ओवर में रन कुछ इस तरह आए - 2,0,6,6,6,4. कमेंट्री बॉक्स में हिंदी कमेंटेटर ने कहा कि ओवर में आए रनों को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे किसी का फ़ोन नंबर हो. (10 डिजिट इसलिए नहीं क्यूंकि देश में आम आदमी ने अपनी जेब में मोबाइल फ़ोन होने का सपना भी देखना नहीं शुरू किया था.)

चेन्नई की गर्मी लगातार सईद के शरीर में मौजूद नमक को निचोड़ रही थी और सईद अपने बल्ले से भारतीय गेंदबाज़ों को. ईजाज़ अहमद के साथ हुई 116 रनों की पार्टनरशिप के बाद इंज़माम-उल-हक़ के साथ मिलकर 84 रन बनाए. अनवर ने क्रैम्प्स आने के बाद स्वीप शॉट्स घटाए और दिमाग लगाते हुए खेलना शुरू किया. ऐसा मालूम दे रहा था जैसे उन्हें फील्डर्स नहीं दो फील्डर्स के बीच की जगह ही दिखाई पड़ रही थी. शाहिद अफ़्रीदी को ज़्यादा दौड़ना नहीं पड़ा. 194 रनों की इनिंग्स के दौरान 118 रन बाउंड्री से आए.
200 रनों का फ़िगर दिखाई देने लगा था. 47वें ओवर की पहली गेंद पर सईद ने स्क्वायर लेग पर बाउंड्री पहुंचाई. गेंद उनके बल्ले से निकली ही थी कि सईद को भविष्य दिख चुका था. उन्हें मालूम था कि गेंद बाउंड्री से पहले नहीं रुकेगी. टोपी पहन कर खेल रहे सईद ने अभी-अभी विव रिचर्ड्स का रिकॉर्ड तोड़ा था. इंज़माम ने उन्हें गले से लगाया और माथे पर एक पप्पी धरी. खचाखच भरा चेन्नई का स्टेडियम तालियों के शोर से भर गया था. सचिन की सीम बॉलिंग को अनवर धो रहे थे. दो गेंदों बाद एक बार फिर ऑफ साइड पर बाउंड्री मिली. स्कोर हुआ 194 रन. वन-डे इतिहास में पहले दोहरे शतक से मात्र एक शॉट दूर. और फिर गांगुली के कैच ने इस अध्याय को वहीं ख़त्म कर दिया. गेंदबाज़ सचिन ने 13 साल बाद इस रिकॉर्ड को तोड़ा और दुनिया ने वन-डे मैचों में पहला दोहरा शतक देखा. इससे पहले ज़िम्बाब्वे के चार्ल्स कोवेंट्री ने बांग्लादेस के ख़िलाफ़ 2009 में बिना आउट हुए 194 रन बनाए जिसकी वजह से टॉप पर्सनल स्कोर की लिस्ट में उनका नाम सईद से ऊपर आने लगा. कोवेंट्री ने 124.35 और सईद ने 132.87 के स्ट्राइक रेट से रन बनाए. ग्वालियर में सचिन ने दोहरा शतक 136.05 के स्ट्राइक रेट से बनाए थे.
पाकिस्तान का फाइनल स्कोर बना 327 रनों का और उसने भारत को 35 रनों से हराया. बैटिंग ट्रैक पर कुल 619 रन बने. उस वक़्त ऐसा होना कतई आम नहीं था. कालांतर में एक वन-डे इंटरनेशनल में कुल 872 रन बनते भी देखे गए. (ऑस्ट्रेलिया वर्सेज़ साउथ अफ़्रीका. 12 मार्च 2006)

2003 वर्ल्ड कप में भारत के ख़िलाफ़ सईद अनवर
अनवर ने कुल 274 वन-डे मैच खेले जिसमें उन्होंने 39.21 के एवरेज से 8824 रन बनाए. उनके नाम के आगे 20 वन-डे शतक और 43 पचासे लिखे गए हैं. पाकिस्तान के ख़िलाफ़ आज तक किसी भी ओपेनर ने सईद अनवर से ज़्यादा रन नहीं बनाए हैं. सभी फॉर्मेट को मिला कर देखें तो उनके खाते में 12,113 रन लिखे हुए हैं.
साल 2001 में अपनी साढ़े तीन साल की बेटी की मौत के बाद सईद टूट गए. वो धर्म की शरण में चले गए और उनकी दाढ़ी बढ़ती गई मगर क्रिकेट खात्मे की ओर बढ़ता गया. 2003 वर्ल्ड कप में भारत के ही ख़िलाफ़ उन्होंने शानदार सेंचुरी मारी और कम से कम इनिंग्स ब्रेक तक मैच पाकिस्तान के पाले में ही रहा. इस मैच के साढ़े चार महीने बाद ही अनवर की रिटायरमेंट की खबर मिली. उन्होंने जो कहा वो बताता है कि वो क्रिकेट से विरक्त हो शिथिल पड़ चुके थे. उन्होंने कहा, "कई बार आप अपने बहुत बुरे दौर में भी शानदार सेंचुरी मार सकते हो. कई बार ऐसा होता है कि आप शानदार फॉर्म में हैं लेकिन एक किनारा आपको आउट करवा देता है. पहले मुझे बहुत झुंझलाहट होती थी लेकिन अब उझे समझ में आ गया है कि सब कुछ उसके हाथ में है जो हम सभी के ऊपर रहता है."
सईद को बल्लेबाज़ी और उसमें भी ऑफ़ साइड से प्यार था. सईद अनवर का नाम आते ही मुझे हमेशा पाकिस्तानी क्रिकेट राइटर हसन चीमा की 'द डॉन' में लिखी एक बात याद आती है. वो कहते हैं, "भारतीय फैन्स कहते हैं कि ऑफ साइड पर पहले भगवान है और फिर सौरव गांगुली. मगर पाकिस्तानी फैन्स को ये कभी समझ में नहीं आया कि ये भगवान कौन है और आखिर सईद अनवर से बेहतर कैसे खेल सकता है?"
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