कोरोना डायरीज: ‘जब कोरोना गांव आया तो अपने साथ अजीब इलाज भी लाया'
'मास्क और सैनिटाइज़र बहुत खोजने पर मिल रहा है.'


वन्दना की बेटी रिद्धि की तस्वीर
नाम- वंदना सिंह
काम- गृहणी
पता- उत्तर प्रदेश
वैसे तो हम इलाहाबाद रहते हैं. यहां गांव आए थे नवरात्र के लिए. इस टाइम सब लोग, पूरा परिवार आता है गांव. हर साल. लेकिन जब आए थे तब कोरोना ख़ाली टीवी पर दिखाई दे रहा था. आए तो थे हफ़्ते भर के लिए. लेकिन लॉक डाउन हो गया तो यहीं फंस गए. ससुर इलाहाबाद में फंसे हुए हैं. हार्ट पेशेंट हैं. हमेशा डर लगा रहता है. यहां सास भी हार्ट पेशेंट हैं. अगर कुछ गड़बड़ हुई तो ढंग के अस्पताल पहुंचने में घंटों लग जाएंगे. हसबेंड इन्हीं सब इंतज़ाम में लगे हैं. गांव हम लोग थोड़े दिनों के लिए ही आते हैं.

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इस बार कोरोना की वजह से ज़्यादा दिन रुक गए. और कब तक रुकेंगे पता नहीं. लेकिन मोबाइल पर सारी ख़बर पता चलती रहती है. यहां गांव में कोरोना का एकदम अलग सीन है. स्टार्टिंग में लोग नहीं समझ रहे थे. उन्हें ऐसा लग रहा था कि सब शहर का मामला है. गांव तक कहां आएगा कोरोना.
लेकिन जब आया तो कोरोना अपने साथ अजीब इलाज भी लाया. यहां पास में ही शिव जी का मंदिर है. एक दिन जल चढाने गई तो देखा कि मंदिर में इतने दिए जल रहे हैं जैसे दिवाली हो. मैं जल चढ़ाकर वापस आ गई. दूसरे दिन सुबह गांव से कुछ औरतें सड़क पर मिलीं. कहने लगीं तुमने सिंदूर, कपूर और घी का दिया नहीं जलाया क्यों?
मैंने पूछा क्यों जलाना था? उन्होंने कहा चारों तरफ़ बोल रहे हैं कि सिंदूर, कपूर और घी का दिया जलाने से कोरोना आपका घर छोड़ देता है. इसलिए हम लोग हर शाम जला रहे हैं. मेरी हंसी नहीं रुकी. मैंने कहा कि अगर इसी से सब ठीक हो रहा होता तो दुनिया भर में इतने लोग क्यों मर रहे हैं? क्या उनके पास सिंदूर, कपूर और घी नहीं है? कि उनकी कोरोना से कोई दुश्मनी है?

तब बुज़ुर्ग अम्मा ने मोर्चा संभाला. कहने लगीं ऐसे ही जला देने से नहीं चलेगा. मन से जलाना होगा पूरी आस्था से. मैं वापस घर आ गई. अगले दिन हसबेंड सब्ज़ी लेने बाज़ार गए थे तो बताने लगे कि गांव भर में दिए जल रहे हैं. सबके घर के आगे स्वास्तिक का निशान और जलता दिया दिख रहा है.
एक बच्चे ने कहा कि टीवी पर बोला है दिया जलाने को. मैंने सोचा इसको किसने सिखाया कि हेल्थ साइंस की इतनी बड़ी समस्या का इलाज कपूर का दिया जलाना है. बच्चे जो बचपन में सीख लेते हैं उनके मन पर काफ़ी समय तक उसकी छाप होती है.
यहां गांव में बीस रूपए में बना बनाया दिया बेच रहे हैं. मास्क और सैनिटाइज़र बहुत खोजने पर मिल रहा है. अब लोगों ने बाहर निकलना थोड़ा कम किया भी है लेकिन शुरू में तो सब कोरोना के नाम पर हंस पड़ते थे. अब हनुमान जी का भूरा बाल, सत्यनारायण की कथा जैसे इलाज गांव-गांव में घूम रहे हैं.
कोट-अगर सरकार ने ख़ूब सारे अस्पताल बनाए होते तो जनता सिंदूर, कपूर के भरोसे ना बैठी होती.
कोरोना डायरीज. अलग अलग लोगों की आपबीती. जगबीती. ताकि हम पढ़ें. संवेदनशील और समझदार हों. ये अकेले की लड़ाई नहीं है. इसलिए अनुभव साझा करना जरूरी है. आपका भी कोई खास एक्सपीरियंस है. तस्वीर या वीडियो है. तो हमें भेजें. corona.diaries.LT@gmail.com
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