साल 1992. आर्मी के अस्पताल में एक ऑपरेशन चल रहा था. डॉक्टर परेशान थे. चिरे हुए पेट के अंदर वो सब कुछ था जो बायोलॉजी की किताब में पढ़ाया गया था. लेकिन वहीं और भी कुछ था. पेट में थे चम्मच, चाकू और टूथब्रश.
इंडियन सेना में एक कुक थे. नाम गणपति पेठे. गणपति माने गणेश जी. गणेश जी का एक और नाम था. लम्बोदर. यानी लम्बा है जिनका उदर. उदर यानी पेट. गणपति पेठे भी कुछ-कुछ इसी श्रेणी में आते दिख रहे हैं. उदर तो उतना लम्बा नहीं है लेकिन उदर में कुछ न कुछ गड़बड़ ज़रूर है.
मामला ये हुआ कि ये हज़रत चम्मच खाने के शौकीन थे. बात है साल 1992 की. गणपति खुद ही कहते थे, “जिन चम्मचों को मैं आसानी से निगल नहीं पाता उन्हें तोड़ लेता हूं”. मुंबई के जे. जे. हॉस्पिटल के डॉ. गुस्ताद बी. डावर ने अप्रैल 1992 में इनका ऑपरेशन किया था. तब वो 50 साल के थे. ऑपरेशन करके डॉक्टर ने उनकी छोटी वाली आंत से 11 बिना टूटे चम्मच, 5 टूटे हुए चम्मच और टूथ ब्रश का टुकड़ा मिला था.
इंडिया टुडे ने इस घटना को मई, 1992 में रिपोर्ट किया था. अप्रैल, 1992 में गणपति पेठे ने आठवां ऑपरेशन किया गया था.
गणपति पेठे ऐसा इसलिए करता था क्योंकि उसको स्ट्रेस हो जाता था. ये उसका कहना है. कहता था कि जब भी परेशान होता था और और उससे झेला नहीं जाता था तो वो चम्मच और न जाने क्या-क्या खा लेता था. बड़ा अजीब-ओ-ग़रीब स्ट्रेस बस्टर इलाज था गणपति का. ऐसा नहीं है कि एक-दो बार ही उसने ऐसा काम किया हो. ये बाकायदा उसकी आदत में शुमार हो चुका था. कुल आठ ऑपरेशन के बाद उसका पेट ‘खाली’ किया जा सका. एक ऑपरेशन में तो मोड़ा जा सकने वाला चाकू भी निकला.
स्पेशलिस्ट डॉक्टर कहते हैं कि अक्सर ये सुनने में आता है कि प्रेग्नेंट औरतें और बच्चे अक्सर ऐसी ऊटपटांग चीजें निगल लेते हैं. पर कोई ऐसा केस नहींं सुनने में आता जब उनके पेट में ये सारी चीजें चार महीनें तक पड़ी रही हों.
गणपति का ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर डाबर पूरी कोशिश कर रहे हैं कि पेठे की आदत छूट जाए. पर प्रॉब्लम ये थी कि पेठे ने जिंदगी भर रसोइये का काम ही किया था. उन्हें और कोई काम आता ही नहीं था. इसलिए उन्हें कोई और नौकरी दिलवाना मुश्किल हो रहा था. और अगर उनको कहीं भी रसोइए की नौकरी करने दी जाती तो उन्हें चम्मच से दूर रखा जा सकना मुश्किल था.