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ये लड़का था असली मोगली!

1867 में बुलंदशहर के जंगल से शिकारियों को भेड़िए की मांद से एक 6 साल का बच्चा मिला जिसका नाम दीना शनिचर रखा गया.

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Dina Shanichar
दीना शनिचर की कहानी बहुत हद तक मोगली से मिलाती है जिसे असल में भेड़ियों ने पाला था (तस्वीर: flickr)
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26 अक्तूबर 2022 (Updated: 21 अक्तूबर 2022, 15:05 IST)
Updated: 21 अक्तूबर 2022 15:05 IST
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बात तब की है जब दूरदर्शन पर पहली बार मोगली (Mowgli) आया. मोगली तो जितना फेमस हुआ, हुआ ही, लेकिन उससे भी ज्यादा हिट हुआ मोगली का गाना.

‘जंगल-जंगल बात चली है, पता चला है. चड्डी पहन के फूल खिला है’. 

इस गीत को लिखा था गुलज़ार साहब ने. तो किस्सा यूं है कि गुलज़ार ने गाना लिखकर दिया और शो के क्रिएटर्स अगले ही रोज़ एक दरख्वास्त लेकर गुलज़ार के पास पहुंच गए. 

‘सर बस ये चड्डी हटा दो गाने से. बच्चों का गाना है, अच्छा नहीं लगता.’

उस दौर में सेल्फ सेंसरशिप का ये अच्छा उदाहरण था. गुलज़ार (Gulzar) से कहा गया, चड्डी के बदले लुंगी कर दो, कुछ भी कर दो, बस चड्डी हटा दो. गुलज़ार तैयार नहीं हुए. आखिर में जब बात अड़ गई तो गुलज़ार ने आख़िरी अल्टीमेटम देते हुए कहा, चड्डी तो मैं नहीं हटाऊंगा. आप ऐसा कीजिए अपनी फिल्म अपने पास रखिए, मैं अपनी चड्डी रख लेता हूं. अंत में तय हुआ कि गाना ज्यों का त्यों रहेगा. मोगली आया और ये गाना इस कदर हिट हुआ कि आज की जनरेशन ने भी चाहे मोगली न देखा हो लेकिन चड्डी में फूल सबने खिलाया है.

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मोगली की कहानी लिखने वाले थे रुडयार्ड किपलिंग(Rudyard Kipling). जिन्होंने द जंगल बुक (The Jungle Book) नाम की एक किताब लिखी थी. कहा जाता है कि रुडयार्ड किपलिंग को मोगली की प्रेरणा एक असली लड़के से मिली थी, जो सच में 20 साल भेड़ियों के साथ रहा और फलस्वरूप उन्हीं की तरह चलने और बोलने लगा था. कौन था ये लड़का?
क्या थी असली मोगली की कहानी?

रुडयार्ड किपलिंग और बॉम्बे 

अपनी एक कविता में रुडयार्ड किपलिंग लिखते हैं, 

ये शहरों की मां है 
कि जिसके दरवाजे पर मैं पैदा हुआ 
ताड़ के पेड़ों और समंदर के बीच 
जहां दुनिया ख़त्म होती है और इंतज़ार करती हैं कश्तियां

ये कविता किपलिंग ने बॉम्बे के लिए लिखी थी. दिसंबर 1865 में उनकी पैदाइश इसी शहर में हुई थी. अपनी आत्मकथा में वो लिखते हैं कि बॉम्बे के घर में मेरी आया ने मुझे जो कहानियां सुनाई वो मैं कभी नहीं भूला. ये कहानियां थीं, पंचतंत्र और जातक कथाएं. इन कहानियों में जानवरों को बात करते हुए और इंसानों की तरह बर्ताव करते हुए दिखाया गया है. इन कहानियों का ही असर था कि किपलिंग ने जंगल बुक में बोलने वाले बाघ, भेड़िये और हाथी के किरदार बनाए.

Mowgli
द जंगल बुक में मोगली और बलु के किरदार (तस्वीर: IMDB)

किपलिंग के बचपन के शुरुआती पांच साल मुम्बई में गुजरे. जिसके बाद उन्हें लन्दन भेज दिया गया. लंदन में उन्हें एक बोर्डिंग होम में रहना पड़ा. इस घर में किपलिंग का अनुभव बहुत कड़वा रहा और 1877 में उनकी केयरटेकर ने उन्हें घर से निकाल दिया. जंगल बुक में एक जगह मोगली को भेड़िया गुट से बाहर निकाल दिया जाता है. और इंसानों का कबीला भी उसे स्वीकार नहीं करता. यहां मोगली की कहानी में किपलिंग का अपना जीवन अनुभव दिखता है. जहां न वो अपने मां बाप के साथ रह पाए और जहां रहे वहां से भी उन्हें निकाल दिया गया. 
किपलिंग 1882 में दोबारा भारत आए और कई साल यहां पत्रकार की तरह रहकर काम किया. 

1892 में किपलिंग अमेरिका गए और दिसंबर 1892 में उन्होंने मोगली की पहली कहानी लिखी. 1892 से 1895 के बीच उनकी लिखी कहानियों को जंगल बुक और सेकेण्ड जंगल बुक नाम से संकलित किया गया. ये कहानियां बच्चों के बीच खूब फेमस हुई. किपलिंग रातों-रात दुनिया भर में फेमस हो गए. जंगल बुक की कहानी किपलिंग के दिल के काफी नजदीक थी. उन्होंने इसे अपनी बेटी के लिए लिखा था. जो उस दौरान निमोनिया से बीमार थी और 6 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई थी. कहानियों के बाद 26 अक्टूबर, 1897 को किपलिंग ने जंगल बुक पर आधारित एक नाटक भी लिखा लेकिन इसका प्रदर्शन नहीं हो पाया.

मोगली नाम कहां से आया?

जंगल बुक में किपलिंग बताते हैं कि मोगली का मतलब है मेंढक, यानी जिसकी खाल पर बाल नहीं होते. लेकिन असल में ये नाम पूरी तरह मनगणंत था. दुनिया की किसी भाषा में मेंढक को मोगली नहीं कहा जाता. एक और रोचक बात ये है कि जिसे हम मोगली कहते हैं असल में किपलिंग उसे मऊगली लिखना चाहते थे. उनके अनुसार मोगली की स्पेलिंग में एम ओ डब्ल्यू (mow) को सी ओ डब्ल्यू (cow) की तरह बोला जाना चाहिए.

Rudyard Kipling
रुडयार्ड किपलिंग को 1907 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था (तस्वीर: Wikimedia Commons)

मोगली की कहानी एक ऐसे लड़के की कहानी थी जिसे भेड़ियों ने पाला. इंसान और जानवरों के संबंधों को दिखाती ये कहानी इतनी हिट हुई कि जंगल बुक पर दसियों फ़िल्में बनी, कार्टून बने. और बना वो गाना, ‘जंगल जंगल पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है’. सब एक से एक हिट हुए. हाल ही में साल 2016 और साल 2018 में लगातार जंगल बुक पर बेस्ड दो फ़िल्में रिलीज़ हुई. जंगल बुक ने रुडयार्ड किपलिंग को अमर कर दिया. ये तो हुई काल्पनिक किरदार की बात. अब सुनिए उस लड़के की कहानी जिसके बारे में कहा जाता है कि उसकी कहानी के आधार पर रुडयार्ड किपलिंग ने मोगली की रचना की थी. 

बच्चे जिन्हें भेड़ियों ने पाला था 

19 वीं सदी में भारत में ठग एक्टिव थे. वो खतरनाक लुटेरे जो रुमाल से गला घोंट के कारवां लूट लेते थे. इन ठगों पर लगाम लगाने वाले ब्रिटिश अफसर का नाम था हेनरी स्लीमैन. स्लीमैन ने अपने अवध प्रवास के दौरान ऐसे बच्चों का जिक्र किया है, जिन्हें जंगल से पकड़ कर लाया गया था. स्लीमैन के अनुसार तब भेड़ियों की बच्चों को पकड़कर ले जाने की घटनाएं आम थीं. आज के मध्य प्रदेश में सिओनी का इलाका ऐसी घटनाओं के लिए मशहूर था. जहां जंगली भेड़िये गांव में आकर बच्चों को उठाकर ले जाते थे. इसमें में अधिकतर को मारकर खा लिया जाता था, लेकिन चंद ऐसे भी थे जो बच जाते थे.

Jungle book
बंदरों के राज में मोगली (तस्वीर: Wikimedia Commons)

 स्लीमैन ने अपने लिखे में ऐसे 6 बच्चों का जिक्र किया है. ये सभी जंगल में भेड़ियों की मांद में पाए गए थे. और सभी भेड़ियों की तरह हाथ और पैर जमीन पर रख कर चलते थे. और भेड़ियों की तरह ही आवाज भी निकालते थे. स्लीमैन ने एक बच्चे का जिक्र किया है जिसे पकड़कर लखनऊ में एक शॉल व्यापारी को दे दिया गया था. भेड़िये वहां भी उससे मिलने आते थे. व्यापारी का नौकर, जो बच्चे के बगल में सोता था, बतलाता था कि रात को भेड़िये बाड़े के अंदर घुस आते थे और उस बच्चे के साथ खेलते थे. इस घटना के तीन महीने बाद बच्चा एक दिन आबादी के भागकर दुबारा जंगल की ओर चला गया और फिर कभी उसे देखा नहीं गया. 

हालांकि सभी बच्चों की किस्मत ऐसी नहीं थी. ऐसे बच्चों को इंसानी तौर-तरीके सिखाने की कोशिश की जाती लेकिन कोई भी पूरी तरह इंसानी परिवेश में नहीं ढल पाता था. स्लीमैन के लिखे में चंदौर छावनी के पास जंगल से मिले एक लड़के का जिक्र है, जो इंसानों को अपने नजदीक नहीं आने देता था. कुत्तों से उसकी अच्छी बनती थी और उनके साथ वो अपना खाना भी शेयर करता था. इस बच्चे की मौत 3 साल के अंदर हो गई थी. चूंकि ये सभी बच्चे भेड़ियों की तरह हाथ-पांव टेक कर चलते हैं, इसलिए इनकी कोहनियां और घुटने एकदम सख्त हो गए थे. स्लीमैन लिखते हैं कि इनमें से सभी भेड़ियों की तरह गुर्राते थे और केवल कच्चा मांस खाते थे. जंगल से बाहर लाने के कुछ ही समय में इनमें से अधिकतर की मौत हो गयी. सिवाए एक के, दीना शनिचर. 

कौन था दीना शनिचर? 

साल 1867 की बात है. बुलंदशहर जिले में एक रात शिकारियों का एक गुट जंगल में निकला था जब अचानक उन्हें एक गुफा का मुंह दिखाई दिया. ये भेड़िये की मांद थी और अंदर से गुर्राने की आवाज आ रही थी. शिकारियों को लगा, आज का शिकार मिल गया, वो निशाना लगाने ही वाले थे कि तभी उन्होंने देखा कि गुर्राने वाला जीव एक इंसान का बच्चा है. बच्चे की उम्र कुछ 6 साल के आसपास रही होगी. वो लोग बच्चे को उठाकर शहर ले आए और आगरा के सिकंदरा अनाथालय में भर्ती करा दिया गया. 

Dina Shanichar
29 साल की उम्र में दीना शनिचर की टीबी से मृत्यु हो गई (तस्वीर : Wikimedia Commons) 

अनाथालय तब ईसाई मिशनरी चलाया करते थे. चूंकि बच्चा शनिवार के दिन मिला था. इसलिए उसका नाम रखा गया दीना शनिचर. दीना शनिचर की कहानी इसलिए भी खास है क्योंकि दीना का केस अच्छे से डॉक्युमेंटेड है. उसकी तस्वीरें भी उपलब्ध हैं.

अनाथलाय के निदेशक एरहार्ट एक पत्र में लिखते हैं, 

“जिस तरह वह चार हाथ-पांवों के बल चलता है, अचरज की बात है. कुछ खाने से पहले वो खाने को सूंघता है और अगर उसे किसी चीज की गंध अच्छी न लगे तो उसे फेंक देता है”

अनाथालय में दीना को इंसानी बच्चे की तरह पालने की कोशिश की गई. लेकिन एक लम्बे समय तक वो हाथ-पांव के बल ही चलता रहा. जंगल से मिले बाकी बच्चों की तरह वो भी कच्चा मांस खाता था. कई सालों की कोशिशों के बाद दीना ने कपड़े पहनना और पका भोजन खाना सीखा. हालांकि बात करना वो कभी नहीं सीख पाया, और खाना सूंघने की उसकी आदत बनी रही. एक और आदत जो दीना ने इंसानों से सीखी वो थी धूम्रपान की. ताउम्र उसने किसी आम इंसान से रिश्ता नहीं बनाया और उसकी एकमात्र दोस्ती अनाथालाय में जंगल से लाए गए उसके जैसे ही एक दूसरे लड़के से हुई थी. दीना 29 साल तक जिन्दा रहा, जिसके बाद उसकी टीबी से मौत हो गई.

हालांकि किपलिंग ने कभी सीधे तौर पर नहीं कहा कि मोगली की रचना उन्होंने दीना से की थी. लेकिन स्लीमैन के समकालीन होने के चलते माना जाता है कि उन्होंने स्लीमैन की किताब से कई चीजें ली थी. मसलन अवध में प्रवास के दौरान जंगल का जैसा विवरण स्लीमैन ने किया है, वो जंगल बुक के जंगल से काफी कुछ मिलता है. 1895 में लिखे एक पत्र में किपलिंग लिखते हैं कि उन्होंने इतने सोर्सेस से मोगली की कहानी उधार ली थी कि याद रखना मुश्किल है. चलते चलते गुलजार और बच्चों के गानों से जुड़ा एक और किस्सा देखिए.  

“बच्चों के गानों पर गुलजार से पंगा मत लेना”

. बात तब की है जब शेखर गुप्ता मासूम बना रहे थे. फिल्म के गीत गुलज़ार लिख रहे थे. जिनमें से एक गाना ‘लकड़ी की काठी, काठी में घोड़ा’ भी था. गुलजार ने गीत लिखकर शेखर कपूर को दिखाया लेकिन उन्हें ये पसंद नहीं आया. शेखर कपूर चाहते थे कि गाने में एक लाइन जोड़ी जाए. ये लाइन थी बीबीजी टी पी के आई. गुलजार यहां भी अड़ गए. और फिल्म बीच में छोड़ दी. फिल्म में शबाना आज़मी का रोल भी था. जब उन्हें पता चला तो उन्होंने शेखर कपूर को हड़काते हुए कहा, ‘बच्चों के गानों पर गुलजार से पंगा मत लेना’. गुलज़ार वापिस आए. गाना जैसे का तैसा रहा. और हुआ वही जो मोगली गाने के साथ हुआ था. मासूम देखी हो या ना देखी हो, लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा, हम सभी ने कभी न कभी गाया है. 

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