The Lallantop
Advertisement

जब जिन्ना ने कहा, पाकिस्तान बनाकर गलती कर दी!

मुहम्मद अली जिन्ना ने बड़े शौक से मुंबई के मालाबार हिल्स में घर बनाया था. अपने अंतिम समय में वो लौटकर यहां रहना चाहते थे.

Advertisement
Nehru and Jinnah
मुहम्मद अली जिन्ना अपने आख़िरी दिनों में अपने मुम्बई वाले घर लौटने की बात करने लगे थे (तस्वीर: Getty)
font-size
Small
Medium
Large
3 अगस्त 2022 (Updated: 1 अगस्त 2022, 19:32 IST)
Updated: 1 अगस्त 2022 19:32 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

मुंबई से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर एक हिल स्टेशन पड़ता है, नाम है माथेरान. साल 1944. 18 अप्रैल की बात है. 27 साल की इंदिरा गांधी यहां अपने कमरे में बैठी किताब पड़ रही थी. जब अचानक पूरी बिल्डिंग तेज़ी से हिलने लगी. इंदिरा को पहले लगा कि भूकंप आया है. लेकिन फिर बाद में पता चला कि एक जोर का धमाका हुआ था.

दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था. लन्दन से एक जहाज बहुत सारा डायनामाइट लेकर भारत पहुंचा था. इसे मुंबई के विक्टोरिया डॉक्स पर खड़ा किया गया था. जहां अचानक जहाज में विस्फोट हुआ और पूरा इलाका दहल उठा. इस धमाके में आसपास की काफी बिल्डिंग्स का नुकसान हुआ था. इनमें से एक बिल्डिंग थी साउथ कोर्ट. मालाबार हिल में मौजूद इस घर के मालिक थे मुहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah). उन तक खबर पहुंची तो जिन्ना परेशां हो गए. घर बिकने में पहले ही दिक्कत आ रही थी, और अब ये नुक़सान की मुसीबत अलग.

जिन्ना जब पाकिस्तान गए तो उनका ये घर (Jinnah House) भारत में ही रह गया. तब से पाकिस्तान की ये मांग रही कि इस घर को दूतावास बनाने के लिए दे दिया जाए. वहीं जिन्ना की बेटी डीना वाडिया कहती रहीं कि ये घर उनका होना चाहिए. क्या है इस घर की कहानी? जानेंगे आज के एपिसोड में. साथ ही जानेंगे वो किस्सा जब जिन्ना ने प्रधानमंत्री नेहरू को सन्देश भिजवाया कि इस घर को मत बेचो, मैं जल्द ही वापिस आऊंगा.

एक बंगला बने न्यारा 

साल 1934, मुहम्मद अली जिन्ना इंग्लैंड से लौटे और मुस्लिम लीग की कमान अपने हाथ में ले ली. मुंबई के मालाबार हिल में उनका एक बंगला हुआ करता था. 1918 में अपनी दूसरी शादी के बाद जिन्ना लगातार यहीं रहे थे. लेकिन फिर 1929 में उनकी पत्नी की मौत हुई. और जिन्ना का इस घर से जी उचट गया. 1934 में इंग्लैंड से लौटने के बाद वो इस बंगले को गिराकर नया घर बनाने की सोचने लगे थे. 1936 में पुराने बंगले को गिराकर एक नए घर की नींव डाली गई. इसके डिज़ाइन की जिम्मेदारी दी गई क्लॉड बैटली को. बैटली मुम्बई के जाने-माने आर्किटेक्ट थे. बॉम्बे जिमखाना का डिज़ाइन भी उन्हीं का बनाया हुआ था.

Jinnah House
मुहम्मद अली जिन्ना का मुंबई के मालाबार हिल्स में बना बंगला (तस्वीर: रायटर्स)

बंगले को बनाने में 2 साल का वक्त लगा. इतालवी संगमरमर और अखरोट की लकड़ी से बने इस घर के लिए मिस्त्री खास इटली से बुलवाए गए थे. और एक-एक ईंट को जिन्ना ने अपनी देखरेख में लगवाया था. विदेश से मंगाकर एक लिफ्ट भी लगवाई थी. ढाई एकड़ के एरिया में बने इस बंगले को बनाने में तब दो लाख रूपये का खर्च आया था. दिसंबर 1939 में जिन्ना इस घर में दाखिल हुए. इसके ठीक चार महीने बाद मार्च 1940 में लाहौर डिक्लेरेशन की घोषणा हो गई. जिसके बाद अलग पाकिस्तान मुल्क की मांग जोर पकड़ती गई. इसके चलते जिन्ना की राजनीति का केंद्र मुम्बई से दिल्ली शिफ्ट होता गया. इसी चक्कर में 1938 में उन्होंने दिल्ली में एक दूसरा बंगला खरीद लिया था.

1944 में उन्होंने फैसला किया कि वो अपना मुंबई वाला घर बेच देंगे. हैदराबाद के निजाम की तरफ से उन्हें इस बंगले के लिए साढ़े आठ लाख रूपये की पेशकश मिली. लेकिन जिन्ना तैयार नहीं हुए. उन्होंने निजाम को खत लिखकर कहा कि सिर्फ जमीन की ही कीमत 15 लाख है, और ये कहकर उन्होंने डील कैंसिल कर दी.

इस खत में उन्होंने ये भी लिखा कि उन्होंने खुद को पूरी तरह से भारत के मुसलमानों को सौंप दिया है. इसलिए अब उनका बॉम्बे में रहना मुश्किल है. 1947 में जब लगभग तय हो गया कि अलग पाकिस्तान मुल्क बनेगा. तो जिन्ना ने दिल्ली वाले बंगले को अपने दोस्त रामकृष्ण डालमिया को 3 लाख में बेच दिया. आगे चलकर डालमिया ने ये बंगला डच देश को बेच दिया और उन्होंने यहां अपना दूतावास बना लिया. 

जिन्ना भारत लौटना चाहते थे? 

दूसरी तरफ जिन्ना मुंबई वाले बंगले को भी बेच देना चाहते थे. लेकिन बात बन नहीं पाई. 1947 में जिन्ना को इस बंगले के लिए 18 लाख की पेशकश हुई, लेकिन जिन्ना 20 लाख से कम कीमत पर तैयार नहीं हुए. नतीजा हुआ कि जिन्ना इस्लामबाद पहुंच गए और उनका बांग्ला यहीं रह गया. इस बंगले के अधिग्रहण को लेकर भारत सरकार पशोपेश में थी. यहां पर एंट्री हुई श्री प्रकाश की. ये कौन थे?

श्री प्रकाश का जन्म आज ही के दिन यानी 3 अगस्त, 1880 को हुआ था. 1947 में जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो सवाल उठा कि पाकिस्तान और भारत के सम्बन्ध कैसे होंगे. बाकी देशों की तरह पाकिस्तान में भी दूतावास बनना था और एक उच्चायुक्त की नियुक्ति होनी थी. आम तौर पर इसके लिए सिविल सेवा यानी ICS के अफसरों को चुना जाता था. लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू ने इसके लिए एक राजनेता को चुना. श्री प्रकाश भारत की तरफ से पाकिस्तान में पहले उच्चायुक्त बनाए गए. श्री प्रकाश पाकिस्तान पहुंचे तो वहां कोई ऑफिस तो था नहीं. इसलिए वो एक होटल में रुके. 15 अगस्त 1947, जिस दिन देश आजाद हुआ. श्री प्रकाश पाकिस्तान के एक होटल में तिरंगा फहराकर राष्ट्रगान गा रहे थे.

Sri Praksha
पाकिस्तान में भारत के पहले उच्चायुक्त (तस्वीर: भारत सरकार)

बहरहाल भारत पाकिस्तान के बीच कश्मीर, रिफ्यूजी समस्या, और सम्पति के बंटवारे से लेकर तमाम पहलू थे जिन पर श्रीप्रकाश को काम करना था. लेकिन एक काम और था जो पाकिस्तान के रहनुमा मुहम्मद अली जिन्ना के लिए बहुत जरूरी था. और इसके लिए उन्होंने श्रीप्रकाश से मुलाक़ात की. ये काम था जिन्ना के बम्बई वाले घर का निर्णय. डॉक्टर अजीत जावेद ने जिन्ना के जिंदगी पर एक किताब लिखी है, नाम है सेक्यूलर एन्ड नेशनलिस्ट जिन्ना. इस किताब में वो इस बाबत एक किस्सा सुनाती हैं. अजीत जावेद लिखती हैं जिन्ना तक खबर पहुंची कि भारत सरकार मुम्बई वाले बंगले पर कब्ज़ा करने जा रही है. ये सुनकर जिन्ना श्री प्रकाश के पास पहुंचे. और लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोले, 

“नेहरू से कहना, इस तरह मेरा दिल न तोड़े. तुम जानते नहीं मैं मुम्बई से कितना प्यार करता हूं. मैं अपनी जिंदगी के आख़िरी दिन वहीं बिताना चाहता हूं”

श्री प्रकाश को अचम्भा हुआ. उन्होंने जिन्ना से पूछा, तो क्या मैं प्रधानमंत्री से कहूं कि आप वापिस आना चाहते हैं. जिन्ना ने जवाब दिया, हां, तुम ये कह सकते हो. एक और जगह जावेद जिन्ना को क्वोट करते हुए लिखती हैं ”पाकिस्तान बनाकर मैंने बड़ी गलती कर दी है. मैं दिल्ली जाकर नेहरू से कहना चाहता हूँ कि पुराने गिले -शिकवे भूलकर दोबारा दोस्त बन जाएं”

इसके अलावा अजीत जावेद किताब में जिन्ना के मुस्लिम लीग काउंसिल में दिए वक्तव्य का भी जिक्र करती हैं. काउंसिल में जिन्ना ने कहा, 

“मैं अभी भी भारतीय हूं. मैंने पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनना चुना लेकिन मैं वक्त आने पर मैं भारत लौट जाऊंगा”

दुश्मन की प्रॉपर्टी 

बहरहाल जिन्ना की मंशा जो भी रही हो, सच यही है कि जिन्ना पाकिस्तान में ही रहे. वो चाहते थे कि उनका बांग्ला किसी यूरोपियन परिवार को किराए पर दे दिया जाए. नेहरू इसके लिए तैयार भी हो गए थे और उन्होंने जिन्ना को 3 हजार रूपये किराया देने की बात भी मान ली थी. लेकिन ये डील हो पाती इससे पहले ही सितम्बर 1948 में जिन्ना की मौत हो गई. अब आगे क्या हुआ, ये देखिए. जिन्ना ने अपनी वसीयत में मुम्बई वाला घर अपनी बहन फातिमा के नाम कर दिया था. वहीं 1950 में भारत सरकार ने एक कानून पास किया, इवेक्वी प्रॉपर्टी एक्ट.

Fatima Jinnah
मुहम्मद अली जिन्ना की पत्नी फातिमा जिन्ना (तस्वीर: Getty)

विभाजन के समय जो लोग पाकिस्तान गए, उनकी संपत्ति यहीं छूट गई. ये बिल ऐसी सम्पत्तियों के निस्तारण के लिए लाया गया था. नए एक्ट के तहत जिन्ना का बंगला भारत सरकार की कस्टडी में आ गया. और 1955 में इसे ब्रिटिश हाई कमीशन को किराए पर दे दिया गया. 

1962 में फातिमा जिन्ना ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक अपील की. और खुद को इस सम्पति का जायज हकदार बताया. इसके बाद 1968 में भारत सरकार ने एक और एक्ट पास किया, एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट, जिसके तहत ऐसे देश जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया हो, उनकी किसी संपत्ति को सरकार कब्ज़े में ले सकती थी. साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया कि सरकार ऐसी सम्पत्तियों की सिर्फ कस्टोडियन है. और मालिकाना हक़ ओरिजिनल ओनर का ही रहेगा. 

बंगले पर मालिकाना हक़ की लड़ाई 

इसके बाद साल 2007 में डीना वाडिया ने संपत्ति पर हक़ जताया. डीना वाडिया मुहम्मद अली जिन्ना की इकलौती बेटी थीं. उन्होंने एक पारसी परिवार में शादी कर अपनी जिंदगी भारत में बिताई थी. उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि चूंकि उनके पिता खोजा शिया थे और उनके परदादा एक हिन्दू, इसके उन्हें हिन्दू लॉ के तहत पिता की सम्पति का हक़ मिलना चाहिए. सरकार ने इसके खिलाफ दलील दी कि जिन्ना की वसीयत के अनुसार फातिमा जिन्ना इसकी मालिक थी और इस पर डीना वाडिया का कोई हक़ नहीं. मामला कोर्ट में चलता रहा.

Dina wadia
मुहम्मद अली जिन्ना अपनी बेटी डीना वाडिया(दाएं) के साथ (तस्वीर: Getty)

साल 2016 में केंद्र सरकार ने एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट में संसोधन किया. नए एक्ट के तहत दुश्मन की सम्पत्ति पर सरकार कब्ज़ा कर सकती थी. इसके बाद लगा कि जिन्ना के घर वाला मामला सुलट जाएगा. लेकिन फिर 2018 में संसद में एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री ने जवाब दिया कि जिन्ना हाउस एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट के तहत नहीं आता, बल्कि ये 1950 एक्ट के तहत इवेक्वी प्रॉपर्टी है. साल 2017 में डीना वाडिया की मौत के बाद इस मामले में उनके बेटे नुसली वाडिया पक्षकार हैं. और मामला अभी भी कोर्ट में है.

जिन्ना हाउस पर पाकिस्तान भी लगातार हक़ जताता रहा है. और पाकिस्तान सरकार की तरफ से कई बार मांग हुई है कि जिन्ना हाउस को उन्हें वाणिज्य दूतावास बनाने के लिए दे दिया जाए. 1980 में जब पीवी नरसिम्हा राव विदेश मंत्री थे, तब इस मसले पर बात हुई थी लेकिन पूरी नहीं हुई. साल 2001 में परवेज़ मुशर्रफ ने भारत दौरे के दौरान फिर से ये मांग उठाई थी. लेकिन बात वहीं पहुंची, जहां तक दोनों देशों का रिश्ता.

जिन्ना ने दो बड़े सपने देखे थे. एक पाकिस्तान और दूसरा मालाबार हिल्स का बंगला. इनमें से एक 2022 में मुख्यमंत्री के बंगले के ठीक सामने खड़ा, जर्जर हालत में नजर आता है और दूसरा सपना पाकिस्तान. कहा जाए कि उसकी हालत भी कमोबेश ऐसी ही है तो कुछ गलत न होगा.

वीडियो देखें- तिहाड़ से फरार होने वाले पहले कैदी की कहानी

thumbnail

Advertisement

Advertisement