सियाचिन में भारतीय सैनिक अब 'पप टेंट' में रहेंगे! ऐसा क्या खास है इन टेंट्स में?
सैनिकों के लिए ठंड कितनी बड़ी चुनौती है, बेहद ठंडे इलाकों में सेना के जवान कैसे रहते हैं, यहां अभी तक किस तरह के टेंट इस्तेमाल होते आए हैं और पप टेंट, किन मामलों में इनसे बेहतर हैं, इन सब सवालों के जवाब जानेंगे.

देश के कई इलाकों में भीषण ठंड पड़ रही है. पहाड़ों में मैदानी इलाकों से भी ज्यादा. तापमान मायनस तक पहुंच रहा है. इसलिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तैनात भारतीय सैनिकों के लिए इंसुलेटेड पप टेंट (Pup Tent) तैयार किए जाने की योजना बन रही है. सियाचिन जैसे बर्फीली चोटियों वाले इलाके में भीषण ठंड होती है. तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है. 'पप टेंट' मिलने से ऐसे इलाकों में तैनात सेना के जवानों को बड़ी राहत मिलेगी. सैनिकों के लिए ठंड कितनी बड़ी चुनौती है, बेहद ठंडे इलाकों में सेना के जवान कैसे रहते हैं, यहां अभी तक किस तरह के टेंट इस्तेमाल होते आए हैं और पप टेंट, किन मामलों में इनसे बेहतर हैं, इन सब सवालों के जवाब जानेंगे.
ये भी पढ़ें: अक्साई चिन पर चीन ने कैसे कब्ज़ा किया?
देश के सबसे ठंडे इलाके?शहरों में पारा 6-7 डिग्री पहुंचते ही, हमारी ख़बरों से लेकर, आपके घर से बाहर न निकलने के तर्कों तक में 'हाड़ कंपाने वाली ठंड' मोस्ट विजिबल कोटेशन जाती है. वो भी तब, जब ज्यादातर मेट्रो सिटीज में ऐसी सर्दी सिर्फ एक से दो महीने पड़ती है. लेकिन 6 ऋतुओं वाले भारत में कई इलाके ऐसे हैं, जहां कई महीने पारा शून्य या उसके नीचे रहता है. इनमें सबसे ऊपर है- सियाचिन ग्लेशियर. समुद्र तल से ऊंचाई 5 हजार मीटर से भी ज्यादा और तापमान, शून्य से कई दहाई नीचे. स्नोफॉल यहां बड़ी आम बात है. सियाचिन ग्लेशियर के अलावा और भी कई बेहद ठंडे इलाके हैं. मसलन, अरुणाचल प्रदेश का सेला दर्रा, ये भारत और तिब्बत को जोड़ने वाला एक रास्ता है. इसके अलावा, सिक्किम की लाचेन और थांगू घाटियां, लेह और उत्तराखंड का मुंसियारी. इन सब जगहों पर तापमान शून्य से नीचे चला जाता है. और भारत का दुर्भाग्य है कि उसके दो पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान उससे खासी दुश्मनी रखते हैं. वो कड़ी ठंड का फायदा उठाकर हम पर हमला करने का मौक़ा नहीं चूकते. इसलिए इन ठंडे इलाकों में हमारे सैनिकों को अतिरिक्त सतर्कता के साथ तैनात रहना होता है. इन सब जगहों में सबसे खतरनाक है सियाचिन. मौसम से लड़ते हुए सैनिकों की शहादत की खबरें आती ही रहती हैं.
सैनिकों को शून्य से नीचे तापमान पर किन स्थितियों का सामना करना पड़ता है, ये सियाचिन से समझा जा सकता है.
सियाचिन के हालात-सियाचिन ग्लेशियर मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप को अलग करता है, और पाकिस्तान को चीन से. सियाचिन ग्लेशियर का साल्टोरो रिज इलाका, POK को चीन के साथ सीधे जुड़ने से रोकता है. सियाचिन से भारत के सैनिक, पाकिस्तान के गिलगित और बाल्टिस्तान इलाकों पर नजर रखते हैं.
हिमालय में पूर्वी काराकोरम इलाके में सबसे लंबा ग्लेशियर (करीब 76 किलोमीटर) सियाचिन है. इस इलाके से भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा (LOC) गुजरती है. सर्दियों में यहां औसतन 1000 सेंटीमीटर (करीब 35 फीट) से ज्यादा बर्फबारी होती है. इस दौरान तापमान शून्य से 58 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है. 70 और 80 के दशक में पाकिस्तान ने पहले मानचित्रों में और फिर सियाचिन की बर्फीली जमीन पर एक सीमा रेखा खींचने की कोशिश की थी. भारत के लिहाज से ये शिमला समझौते का उल्लंघन था. 1984 में भारत ने यहां ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया. इसके तहत भारत ने पूरी सियाचिन सहित इलाके की सहायक नदियों पर नियंत्रण पा लिया. तबसे ही भारतीय सेना को यहां बनाए पोस्ट्स की सुरक्षा करनी होती है.
यहां तैनाती के लिए जाने वाले सैनिकों को सख्त ट्रेनिंग से गुजरना होता है. दीवार पर चढ़ना, बर्फ की मोटी चादर ढहने पर बनने वाली दरारों से निपटना, शरीर को ठंड से बचाते हुए हथियार चलाना. ये सब सियाचिन भेजे जाने से पहले ही सिखा दिया जाता है. वो सैनिक जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतों की ज़रा भी आशंका है, उन्हें सियाचिन नहीं भेजा जाता. जो सैनिक स्वस्थ हैं, ट्रेनिंग पूरे कर चुके हैं उन्हें भी कई दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं. तापमान इतना कम होता है कि फ्रॉस्टबाइट का खतरा बना रहता है. यानी बंदूक की धातु की बनी नाल या ट्रिगर को उंगली से कुछ सेकंड्स तक के लिए भी छूना बेहद खतरनाक होता है, उंगली तक काटनी पड़ती है. सियाचिन जैसी जगहें समुद्र तल से बहुत ऊंचाई पर हैं. इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन लेवल बहुत कम होता है. इसके चलते सांस लेने में दिक्कत होती है, शरीर में ऑक्सीजन की कमी से कई बार सैनिकों की जान तक चली जाती है.
और भी कई दिक्कतें हैं- मसलन बहुत दुर्गम जगहों पर खाना और बाकी रसद पहुंचाना भी बहुत आसान नहीं होता. खाना पकाने, पीने के पानी के लिए बर्फ पिघलाने, चाय, कॉफ़ी वगैरह बनाने और टेंट को गर्म रखने के लिए मिट्टी के तेल जैसे ईंधन की जरूरत होती है. इस ईंधन को रसद की अगली खेप आने तक बचाए रखना होता है. आप इफरात में इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते. ऐसे दुर्गम इलाकों में रहना, इसलिए भी मुश्किल होता है क्योंकि अकेलेपन और जिंदगी से संघर्ष के दौरान, सैनिकों के पास ज्यादा और कुछ करने के लिए नहीं होता. इसका सीधा असर उनके मानसिक स्वाथ्य पर पड़ता है.
हालांकि साल 2020 से भारत, पूर्वी लद्दाख और उत्तर-पूर्व के दूसरे सीमाई इलाकों में सैनिकों के रहने और बाकी जरूरतों के लिए भारी निवेश कर रहा है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक खबर के मुताबिक, इन इलाकों में भारत के करीब 55 हजार सैनिक तैनात हैं. इनके लिए पानी, बिजली और बेहतर रहने के ठिकानों की जरूरत है. साल 2020 में भारत ने एक लॉजिस्टिक्स एक्स्चेंज पैक्ट के तहत अमेरिका से ऊंचाई पर तैनात सैनिकों के लिए सर्दियों के कपड़े खरीदे थे. फॉरवर्ड लोकेशंस यानी सीमा से सटे हुए इलाकों पर, सैनिकों के लिए बड़े गर्म टेंट, सोलर टेंट्स और इंसुलेटेड लद्दाखी शेल्टर पहले से हैं. लेकिन अब सेना ने छोटे और आरामदेह इंसुलेटेड टेंट्स की खरीदने की योजना बनाई है. इन्हें ‘पप टेंट’ भी कहा जाता है.
‘पप टेंट’'पप टेंट' अपेक्षाकृत हल्के होते हैं. इन टेंट्स को एक जगह लगाना और जरूरत पड़ने पर एक जगह से दूसरी जगह लाना-ले जाना आसान होता है. सबसे ख़ास बात ये है कि इनका इन्सुलेशन बढ़िया है. इन्सुलेशन माने यूं समझिए कि इनकी चादर, ऊष्मा (heat) के लिए कुचालक का काम करती है. इसलिए न तो टेंट के अंदर की गर्मी बाहर जाएगी और न ही बाहर की भयंकर ठंडी, टेंट के अंदर का वातावरण ठंडा कर पाएगी. पप टेंट को, पूर्वी लद्दाख, सिक्किम और सियाचिन ग्लेशियर जैसे बहुत ठंडे मौसम में तैनात सैनिकों के लिए ही मंगाए जाने का प्लान है. इनकी इन्सुलेशन की क्षमता के चलते, इन्हें ठंडी जगहों के अलावा, बेहद गर्म मौसम में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. फ़िलहाल पप टेंट को, पूर्वी लद्दाख, सिक्किम और सियाचिन ग्लेशियर जैसे बहुत ठंडे मौसम में तैनात सैनिकों के लिए ही मंगाए जाने का प्लान है.
गर्मी के दौरान, ये टेंट, सैनिकों को बाहर की गर्मी से बचाएंगे. पप टेंट्स में अधिकतम 4 लोग रह सकते हैं. अभी तक सेना 'आर्कटिक स्मॉल MK-II' नाम के छोटे टेंट्स का इस्तेमाल करती है. इन टेंट्स में सिर्फ 2 से 3 सैनिक आराम से रह सकते हैं. इनकी तुलना में पप टेंट ज्यादा सुरक्षित और आरामदेह हैं. बता दें कि साल 2021 में मशहूर इंजीनियर सोनम वांगचुक (जिन पर 3 इडियट्स मूवी बेस्ड है) ने आर्मी के लिए हीटेड टेंट बनाए थे. इनके अंदर का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस रहता है. भले ही बाहर कितनी भी ठंड क्यों न हो. इस टेंट में हीटर है जो सोलर एनर्जी से गर्म होगा. इसमें सोलर एनर्जी को स्टोर करने की क्षमता भी है. इस हीटेड टेंट में 10 जवान एक साथ रह सकते हैं. जबकि इसका कुल वजन 30 किलो से भी कम है.
सेना को कैसे पप टेंट चाहिए?सेना को कोई नया सामान, उपकरण या हथियार चाहिए होता है तो वो अपनी जरूरत बताकर, मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों से जानकारी मांगती है. इसे आर्मी रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन यानी RFI कहते हैं. पप टेंट के लिए आर्मी ने सेना के उपकरण बनाने वाली कंपनियों और डीलरों से अपग्रेडेशन प्रॉसेस में हिस्सा लेने को कहा है. सेना ने अपनी जरूरतों में ये भी कहा है कि उसे टेंट्स में मजबूत स्ट्रक्चर वाली डिजाइन चाहिए, ताकि टेंट, तेज हवा और भारी बर्फबारी झेल सके. सेना ने अपने क्राइटेरिया में अच्छे वेंटिलेशन और ठंड से बचाने के लिए जरूरी कंपोनेंट्स जैसे ज़िपर, अच्छा कपड़ा और इंसुलेशन शीट वगैरह की मांग की है. कम रोशनी और ख़राब मौसम के दौरान, कलर कोडेड टेंट्स की जरूरत है. सेना ने जो जरूरत बताई है उसके मुताबिक, ये टेंट इतने छोटे और हलके होने चाहिए कि सैनिक अपने खुद के साजोसामान के अलावा, इन्हें भी आसानी से उठा सकें, साथ ही इनमें सैनिकों के हथियार वगैरह रखने की भी पर्याप्त जगह होनी चाहिए. सेना के अधिकारियों के मुताबिक, टेंट का साइज़ छोटा रहने से, सैनिकों के लिए इन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाना और इन टेंट्स को इंन्स्टॉल कर पाना आसान होगा.
एक अधिकारी ने कहा,
"ऐसे टेंट उन संतरियों और मेन पोस्ट से दूर बनी ऑब्जर्वेशन पोस्ट्स के लिए ठीक रहेंगे, जहां सैनिक जोड़े में काम करते हैं."
सेना आगे आने वाले दिनों में टेंट के लिए जरूरी क्राइटेरिया पर कंपनियों से बातचीत करेगी. डील में रुचि लेने वाली कंपनियों को यूजर ट्रायल के लिए दो सैम्पल टेंट देने होंगे. इसके बाद अगले महीने से यूजर ट्रायल शुरू होगा.
वीडियो: तारीख: इंडियन आर्मी ने कैसे जीती सियाचिन की सबसे ऊंची चोटी?