साल 2021 इनकम टैक्स और जीएसटी के मोर्चे पर कई खट्टे-मीठे बदलाव करके जा रहा है. इकॉनमी के लिए तो यह रिकवरी का साल रहा ही, सरकारी खजाना भी खूब भरा. लेकिन हम यहां टैक्सपेयर्स के नजरिए से ऐसे 21 बदलावों की जानकारी दे रहे हैं, जो पूरे साल चर्चा में रहे. इनमें से कई आए तो थे आपको राहत देने, लेकिन टेंशन दे गए. टैक्स ढांचे और दरों में बदलाव के कुछ ऐसे फैसले भी हैं, जिनका असर अगले साल से दिखेगा. यह साल आम आदमी से लेकर ट्रेड-इंडस्ट्री को कई नए खर्चों के बोझ तले भी छोड़कर जा रहा है.
1. पुराना केस नहीं खुलेगा
फाइनेंस एक्ट 2021 के तहत टैक्स चोरी के कुछ गंभीर मामलों को छोड़कर इनकम टैक्स असेसमेंट के पुराने मामले खोलने की समयसीमा घटा दी गई. पहले अधिकारी छह साल पुराने असेसमेंट भी खोल सकते थे, लेकिन अब 3 साल से पुराना केस खोलने से पहले प्रिंसिपल कमिश्नर की मंजूरी लेनी होगी. वह भी तब, जब टैक्स चोरी का दायरा 50 लाख रुपये से ज्यादा हो. ऐसे बड़े मामलों में 10 साल पुराना असेसमेंट भी खोला जा सकता है. मकसद यह था कि आज की गलती को पुरानी खामियों से जोड़कर टैक्सपेयर्स को परेशान करने का खेल कम होगा.
2. बुजुर्गों को रिटर्न से छूट
पिछले बजट में 75 साल से अधिक उम्र के लोगों को इनकम टैक्स रिटर्न भरने से छूट की घोषणा हुई थी. लेकिन इसके साथ कुछ शर्तें भी रखी गई हैं. एक तो उस व्यक्ति की पेंशन और ब्याज के अलावा कोई अन्य इनकम न हो. पेंशन और ब्याज एक ही बैंक में हो. इसके लिए एक फॉर्म 12BBA भरकर बैंक में जमा करना होता है. पेंशन और ब्याज की जानकारी देनी होगी. इस फॉर्म को ही रिटर्न मान लिया जाएगा. इसी के आधार पर सेक्शन-80सी के डिडक्शंस भी मिल जाया करेंगे.

3. फेसलेस पेनल्टी सिस्टम
साल की शुरुआत इनकम टैक्स की इस नई पहल से हुई थी. फेसलेस असेसमेंट का नाम तो आप पहले ही सुन चुके थे. फेसलेस पेनल्टी ने टैक्सपेयर्स को यह सहूलियत दी कि बिना सरकारी दफ्तर गए या किसी टैक्स अधिकारी से मिले ही अपनी पेनल्टी भर सकते हैं. अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं और उससे जुड़े विवादों को सुलझा सकते हैं. यानी सबकुछ ऑनलाइन होगा. कोई मानवीय दखल नहीं. टैक्सपेयर और असेसिंग ऑफिसर एक दूसरे को नहीं जानते होंगे. कहा गया कि इससे शोषण या करप्शन में कमी आएगी.
4. रिटर्न नहीं भरना महंगा
21 जुलाई से लागू एक नए प्रावधान के तहत जो लोग इनकम टैक्स रिटर्न रेगुलर नहीं भरेंगे, उनका टीडीएस ज्यादा कटेगा. मान लीजिए आपने दो साल के इनकम टैक्स रिटर्न नहीं भरे हैं और कहीं से ऐसा भुगतान मिलना है, जिस पर टीडीएस कटता है, तो टीडीएस समान्य से दोगुना कटेगा. पिछले दो साल का टीडीएस अगर 50,000 रुपये से अधिक रहा है तो टीडीएस का बोझ बढ़ना तय है. इसके लिए इनकम टैक्स एक्ट में एक नया सेक्शन 206CCA जोड़ा गया है.
5. पीएफ ब्याज भी टैक्सेबल
एक सीमा से अधिक प्रॉविडेंट फंड (PF) ब्याज को भी इनकम टैक्स के दायरे में ला दिया गया. हालांकि यह लाइबिलिटी उन्हीं अकाउंट्स पर आएगी, जिनमें सालाना 2.5 लाख रुपये से ज्यादा योगदान होता है. ऐसे पीएफ अकाउंट जिनमें केवल कर्मचारी की ओर से योगदान होता है, ना कि एम्प्लॉयर्स की ओर से, वहां 5 लाख रुपये से ज्यादा सालाना योगदान के बाद ही ब्याज टैक्सेबल होगा. पीएफ अकाउंट में पैसे डालने की कोई अधिकतम सीमा नहीं है. ऐसे में ज्यादा ब्याज और निवेश सुरक्षा के लिए कई लोग अपनी बचत का बड़ा हिस्सा इसमें डालते जाते हैं.

6. रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स खत्म
इनकम टैक्स में इस साल का एक बड़ा बदलाव रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का खत्म किया जाना था. रेट्रोस्पेक्टिव को इस तरह समझिए कि कोई टैक्स कानून आज बने, लेकिन उसे लागू किसी पिछली तारीख से किया जाए. इसके चलते ही सरकार ने करीब एक दशक पहले वोडाफोन और केयर्न एनर्जी जैसी बड़ी कंपनियों के खिलाफ हजारों करोड़ रुपये का डिमांड नोटिस निकाल दिया था. बाद में ये कंपनियां कोर्ट और इंटरनेशनल ट्राइब्यूनल्स में गईं. वहां सरकार को मुंह की खानी पड़ी। सरकार को इन कंपनियों को पैसे भी लौटाने पड़े.
7. ऑडिट छूट की सीमा बढ़ी
पहले सालाना 5 करोड़ रुपये से ज्यादा इनकम या रिसीट पर अकाउंट ऑडिट (tax Audit u/s 44AB)कराने की जरूरत होती थी. लेकिन इस साल यह रकम सीमा बढ़ाकर 10 करोड़ कर दी गई. हालांकि शर्त यह भी है कि कुल रिसीट का 5 पर्सेंट से ज्यादा कैश में नहीं आया हो. यानी 95 पर्सेंट रकम कैशलेस या डिजिटल मोड में आई हो. वरना ऑडिट छूट की सीमा उस पर लागू नहीं होगी.
8. अनुमानित आय पर सख्ती
फाइनेंस एक्ट 2021 के तहत लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप (LLPs) और हिंदू अनडिवाइडेड फैमिलीज (HUF) को प्रिजम्टिव टैक्सेशन स्कीम से बाहर कर दिया गया. यह स्कीम मोटे तौर पर अपनी आय का अनुमान कर रियायती दरों पर टैक्स भरने की छूट देती है. मसलन, ऐसे प्रोफेशनल जिनकी सालाना इनकम 50 लाख रुपये से ज्यादा है, अपनी 50 पर्सेंट ग्रॉस इनकम को टैक्सेबल मानकर तय दरों पर टैक्स जमा करा सकते हैं. ऐसा करके वे दूसरी तमाम औपचारिकताओं और जांच से मुक्त हो जाएंगे.

9. ऑटोमेटेड फाइलिंग सिस्टम
इसी साल सरकार ने इनकम टैक्स पोर्टल में भी कई बड़े बदलाव किए थे. टैक्सपेयर्स और फाइलर्स की आसानी के लिए पोर्टल पर एक एनुअल इन्फॉरमेशन स्टेटमेंट (AIS) शुरू किया गया. यह एक तरह से ऑटोमेटेड रिटर्न फाइलिंग या प्री-फाइलिंग में मदद करता है. यह स्टेटमेंट आपके पैन की मदद से निवेश के सभी स्रोतों से ब्याज, डिविडेंड, सिक्योरिटीज, म्यूचुअल फंड और विदेशों में धन भेजने से संबंधित जानकारियां एकत्र कर यहां उपलब्ध कराएगा. हालांकि सिस्टम में अभी भी बहुत कुछ किया जाना है.
10. पोर्टल नया, दिक्कतें पुरानी
इस साल इनकम टैक्स का नया पोर्टल 7 जून को लॉन्च किया गया. इसे पहले से ज्यादा सक्षम बनाने के साथ ही कई अतिरिक्त सहूलियतों से लैस किया गया है. लेकिन पहले ही दिन से इसमें पुरानी दिक्कतों की शिकायतें आने लगीं. टैक्स प्रोफेशनल्स की ओर से लगातार शिकायतें मिली की फाइलिंग में देरी हो रही है. इस मसले पर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 अगस्त को इन्फोसिस के CEO सलिल पारेख को तलब किया था. फिलहाल सरकार का दावा है कि नए पोर्टल की ज्यादातर दिक्कतें दूर कर ली गई हैं.
11. दो बार बढ़ी रिटर्न की डेट
कोविड संबंधी देरी का हवाला देकर सरकार ने इस साल इनकम टैक्स रिटर्न भरने की डेडलाइंस कई बार बढ़ाईं. हालांकि इस एक्सटेंशन के पीछे इनकम टैक्स पोर्टल में दिक्कतों को भी वजह बताया जा रहा है. असेसमेंट ईयर 2021-2022 के लिए रिटर्न की लास्ट डेट 31 जुलाई थी. पहले इसे 30 सितंबर तक बढ़ाया गया. फिर 31 दिसंबर 2021 कर दिया गया. देरी से रिटर्न पर पिछले साल लागू पेनल्टी के प्रावधान के चलते भी टैक्सपेयर्स की ओर से एक्सटेंशन का लगातार दबाव था.
Goods and Services Tax
(नीचे दिए जा रहे बदलाव जीएसटी से संबंधित हैं)
12. कपड़े, जूते पर बढ़ा टैक्स
काउंसिल की इसी बैठक में क्लॉथ फैब्रिक्स और फुटवियर पर जीएसटी की दर 5 पर्सेंट से बढ़ाकर 12 पर्सेंट करने का फैसला किया गया. इसका मकसद इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर (ISD) को खत्म करना था. इनमें से कई उत्पादों के कच्चे माल पर 12 पर्सेंट जीएसटी है. इससे कारोबारियों को भारी रिफंड क्लेम करना पड़ता था. सरकार ने संतुलन बिठाने के मकसद से बिक्री पर टैक्स, उनकी लागत पर टैक्स के बराबर कर दिया. लेकिन इसका अब फैब्रिक ट्रेडर्स की ओर से खूब विरोध हो रहा है. कपड़ों के दाम भी बढ़ने तय हैं.
13. रिफंड के लिए भी आधार
पैन को आधार से जोड़ने की कवायद तो लंबे समय से चली आ रही है. अब इसका शिकंजा सीधे टैक्स रिफंड और इनपुट क्रेडिट पर कसने जा रहा है. जीएसटी काउंसिल ने फैसला किया था कि रिफंड क्लेम के लिए जरूरी होगा कि रजिस्ट्रेशन नंबर आधार से जुड़ा हो. साथ ही अगर कोई व्यक्ति या फर्म अपना रजिस्ट्रेशन कैंसल कराना चाहता है तो भी पहले उसे आधार से जोड़ना होगा. सरकार ने यह कदम बड़े पैमाने पर फर्जी रिफंड क्लेम के मद्देनजर उठाया है. यह प्रावधान भी 1 जनवरी से लागू होगा.
14. फूड एग्रीगेटर्स पर टैक्स
जीएसटी काउंसिल की पिछली बैठक में जोमैटो (Zomato) और स्विगी (Swiggy) जैसे फूड एग्रीगेटर्स को भी जीएसटी के दायरे में लाते हुए 5 पर्सेंट टैक्स चार्ज करने का फैसला किया गया. साथ ही कहा गया कि इसका असर कंज्यूमर पर नहीं पड़ेगा. यह कोई नया टैक्स नहीं है. पहले रेस्टोरेंट चार्ज करते थे और जमा कराते थे. अब यही काम एग्रीगेटर्स करेंगे. कंज्यूमर का बिल पहले जितना ही आएगा. लेकिन इसमें कई पेच हैं. रेस्टोरेंट्स ने पहले की तरह (टैक्स जोड़कर) कीमतें कायम रखीं. आशंका है कि एग्रीगेटर्स अपनी सर्विस और डिलिवरी चार्जेज जोड़कर ऊपर से टैक्स चार्ज करेंगे. CBIC की सफाई का इंतजार है.

15. डेटा मिसमैचिंग पर छापे
एक अन्य जीएसटी अमेंडमेंट के तहत व्यवस्था हुई है कि टैक्स चोरी की आशंका पर अधिकारी टैक्सपेयर्स के परिसर में रेड डाल सकेंगे. प्रावधान किया गया है कि अगर किसी कारोबारी की बिक्री के आंकड़ों और टैक्स लाइबिलिटीज में मिसमैच पाई गई, तो विभाग उसके घर या परिसर में रिकवरी अधिकारियों को भेज सकता है. बिक्री के आंकड़े जीएसटी रिटर्न फॉर्म जीएसटीआर-1 में फाइल होते हैं. जैसे ही खरीदार अपना रिटर्न भरता है, दोनों के डेटा ऑनलाइन मैच होने चाहिए.
16. सीए पर भी होगा एक्शन
जीएसटी एक्ट के सेक्शन-83 के तहत जांच और जब्ती के प्रावधानों को और सख्त किया गया है. इसके तहत जीएसटी कमिश्नर को यह अधिकार दिया गया है कि वह गंभीर टैक्स चोरी के मामलों में प्रॉपर्टी और बैंक अकाउंट सीज कर सकता है. यही नहीं, टैक्स चोरी करने वालों के फाइनेंशल एडवाइजर्स के खिलाफ भी कार्रवाई का अधिकार कमिश्नर को दिया गया है. ऐसा कई मामलों में आरोपियों के कोर्ट चले जाने और कानूनी लुपहोल्स का सहारा लेकर जांच प्रभावित करने की शिकायतों के बाद किया गया.
17. अपील करना भी महंगा
अगर सरकार ने किसी जीएसटी पेयर्स के खिलाफ डिमांड या पेनल्टी नोटिस निकाल रखा है. वह टैक्सपेयर सरकारी एक्शन के खिलाफ विभाग में या अपीलेट ट्राइब्यूनल में अपील करना चाहता है, तो सबसे पहले उसे कुल विवादित रकम का 25 पर्सेंट जमा कराना होगा. उसके बाद ही उसकी अपील सुनी जाएगी. ऐसा बड़े पैमाने पर बोगस अपीलों से निजात पाने के लिए किया गया. आम तौर पर नोटिस पाने वालों की कोशिश यही रहती है कि अपील दाखिल करके मामले को टरकाते रहें।
18. टैक्स स्लैब में बदलाव
जीएसटी कानून के तहत इसके लागू होने के अगले पांच साल तक यानी 2022 तक राज्यों के टैक्स घाटे की भरपाई केंद्र को करनी थी. इस गारंटी की मियाद अगले साल खत्म हो रही है. लेकिन राज्यों के जीएसटी कलेक्शन में बहुत सुधार नहीं हुआ है. ऐसे में केंद्र ने राज्यों के साथ मिलकर जीएसटी कर ढांचे में बदलाव की कवायद शुरू कर दी है. जीएसटी में फिलहाल चार रेट हैं – 5,12,18 और 28 पर्सेंट. कई कमिटियों ने सरकार से सिफारिश की है कि 12 और 18 को मर्ज कर एक स्लैब 15 पर्सेंट का कर दिया जाए।
19. ई-बिलिंग का दायरा बढ़ा
बिक्री के साथ ही पेपरलेस रियल टाइम इलेक्ट्रॉनिक बिलिंग यानी ई-इनवॉइसिंग जीएसटी की एक बड़ी खूबी है. हालांकि जीएसटी लागू होने के चार साल बाद भी पूरी तरह इसका अनुपालन नहीं हो रहा है. हाल तक यह 100 करोड़ रुपये सालाना टर्नओवर वालों पर ही लागू था. लेकिन इस साल से 50 करोड़ रुपये से ऊपर टर्नओवर वालों को भी इसके दायरे में ला दिया गया है. ई-इनवॉइसिंग का खूबी है कि जैसे-जैसे सिस्टम में एंट्री होती जाती है, यह सीधे जीएसटी पोर्टल पर टैक्सपेयर के प्रोफाइल में अपडेट होते चलती है.

20. इनपुट टैक्स क्रेडिट फंसेगा
बिक्री करने वाला व्यापारी अगर अपने जीएसटी रिटर्न (GSTR-1)में इनवॉयस यानी बिल की डिटेल्स नहीं भरता तो उससे सामान खरीदने वाले व्यापारी को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा. यह इस साल के सबसे कड़े जीएसटी प्रावधानों में से एक माना जा रहा है, जिसका असर नए साल में दिखेगा. आसान भाषा में समझिए कि किसी ट्रेडर का ईमानदारी से जीएसटी भरना ही काफी नहीं है. जरूरी है कि वह जिससे माल खरीद रहा है, वह भी पूरा कर अनुपालन करे. मकसद फर्जी बिलों के दम पर क्रेडिट और रिफंड लेने वालों को काबू करना है.
21. जीएसटी ऑडिट से मुक्ति
पांच करोड़ रुपये से ज्यादा टर्नओवर वाले ट्रेडर्स या फर्मों के लिए जीएसटी ऑडिट की अनिवार्यता खत्म कर दी गई. पहले सभी जीएसटी रजिस्टर्ड व्यक्तियों या कंपनियों के लिए 2 करोड़ से ज्यादा टर्नओवर के बाद एनुअल रिटर्न भरना होता था. 5 करोड़ से ज्यादा टर्नओवर वालों को एक रिकॉन्सिलिएशन स्टेटमेंट या साल भर की खरीद का लेखाजोखा (GSTR-9C) दाखिल करना होता था. इस स्टेटमेंट को एक सर्टिफाइड सीए से ऑडिट कराना होता था. इस साल सरकार ने इसकी जगह एक सेल्फ-सर्टिफाइड स्टेटमेंट लगाने की छूट दे दी.
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