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अगर ये सोचकर खरीद रहे हैं 200 मेगापिक्सल कैमरे वाला फोन तो रुक जाइए!

क्या सच में ज्यादा मेगापिक्सल होने से ज्यादा अच्छी फोटो आती है या सच्चाई कुछ और है?

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मार्केट में 200 मेगापिक्सल कैमरे वाले फोन आने लगे हैं. (फोटो: कॉमन प्लेटफॉर्म)

‘चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो…’ पाकीजा फिल्म का ये गाना लिखते समय शायद कैफ भोपाली ने कल्पना नहीं की होगी कि कोई चांद के पार जा सकता है. लेकिन आज स्पेसशिप छोड़िए, सिर्फ स्मार्टफोन से ही चांद के पार तक पहुंचा जा सकता है! हम बात कर रहे हैं स्मार्टफोन में आ रहे 200 मेगापिक्सल कैमरे की. साल 2023 में आने वाले स्मार्टफोन्स का सबसे नॉर्मल फीचर.

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ऐसा होने की पूरी संभावना है. क्योंकि पिछले साल मोटोरोला के बाद अब सैमसंग फ्लैग्शिप S-23 अल्ट्रा (Samsung Galaxy S23 Ultra) में भी यही कैमरा लगा हुआ है. इतना ही नहीं, कुछ मिड-सेगमेंट के फोन्स में भी ऐसे ही कैमरे आने लगे हैं या आने वाले हैं. अब इतना तगड़ा कैमरा है, तो फ़ोटो तो एकदम झामफाड़ आना चाहिए. क्या वास्तव में ऐसा है या फिर ये सिर्फ मेगापिक्सल का झुनझुना है. हमने समझने की कोशिश की. 

मेगापिक्सल का गणित

वैसे इसके बारे में पहले भी कई बार बात हुई है और अब काफी कुछ आपको भी पता है. लेकिन थोड़ा फिर से समझते हैं. आज भी स्मार्टफोन मार्केट में सबसे अच्छी फोटो जिन स्मार्टफोन्स से मिलते हैं, उनमें कैमरे का मेगापिक्सल बहुत कम है. मतलब, साफ है कि मेगापिक्सल एक मात्र वजह नहीं है. कई तरीके के लेंस जैसे अल्ट्रावाइड लेंस, मैक्रो लेंस और टेलीफोटो की जरूरत होती है. 

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OIS मतलब ऑप्टिकल इमेज स्टेबलाइजेशन. जो एक हार्डवेयर पर आधारित फीचर है. और EIS, मतलब इलेक्ट्रॉनिक इमेज स्टेबलाइजेशन के बिना काम नहीं चलता. अगर अपर्चर मतलब कैमरे का दरवाजा, जो फोटो लेने के समय खुलता है और फिर तुरंत बंद हो जाता है. वो सही साइज का नहीं है, तो खेल खराब होने के पूरे चांस. मतलब अब जैसे दरवाजा बड़ा होगा तो रोशनी ज्यादा आएगी. ठीक उसी तरह अपर्चर बड़ा होगा, तो फोटो से जुड़ी जानकारी या फ्रेम के डिटेल कैमरे तक ज्यादा पहुंच पाएंगे. अपर्चर की रेटिंग आंकड़ों से हिसाब से जितनी कम होगी, उतना बेहतर.

अपर्चर मतलब दरवाजा

इसके साथ जूम भी तो चाहिए. ये भी तीन किस्म के हैं- ऑप्टिकल जूम, हाइब्रिड और डिजिटल जूम. आगे बढ़ें तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है पिक्सल डिवाइस. कैमरे का AI या सॉफ्टवेयर ये समझ लेता है कि आपने जो फोटो ली है वो कैसी है. फोटो लेते समय लाइट कैसी थी, फोटो खाने की है या फिर कोई नेचुरल लैंडस्केप की. एक बार AI ये समझ लेता है, तो अपना इनपुट डालकर आपके सामने नई फोटो पेश करता है.

रेजोल्यूशन और HDR भी बहुत जरूरी हैं. इसके बाद कहीं मेगापिक्सल का नंबर. जितने ज्यादा पिक्सल, मतलब उतने ज्यादा रंग. मेगापिक्सल, मिलियन पिक्सल का शॉर्ट फॉर्म समझ लीजिए. यानी एक मेगापिक्सल का कैमरा है, तो फोटो में दस लाख पिक्सल या रंगों का संयोजन होगा. पिक्सल एक सेंसर है, जो किसी भी कैमरा यूनिट में सबसे आखिर में लगा होता है और ये छोटे-छोटे डॉट्स अपने आप में सक्षम हैं किसी भी जानकारी को कैद करने में. जब भी किसी कैमरे से फोटो ली जाती है, तो ये पिक्सल सभी जानकारी जैसे लाइट, रंग या कॉन्ट्रास्ट को इकट्ठा करते हैं. तब जाकर एक फोटो बनती है. 

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यहां से तो एक बात समझ आती है कि जितने ज्यादा पिक्सल होंगे, उतनी बढ़िया फोटो आएगी. दरअसल ऐसा होता नहीं है. क्योंकि अच्छी फोटो के लिए ज्यादा पिक्सल अकेले जिम्मेदार नहीं हैं. हां, पिक्सल ज्यादा है तो जानकारी भी ज्यादा कैप्चर होगी. जब आप उस इमेज को जूम करके देखेगे तो सारे डिटेल बारिकी से नजर आएंगे. कहने का मतलब सिर्फ नंबर बढ़ जाने से सब बदलने वाला नहीं है. लेकिन अब सबसे जरूरी बात, जो आप खुद चेक कर सकते हैं. आप कहेंगे हम क्यों नहीं, करते तो जनाब ये अनुभव वाली बात है. आप खुद करेंगे तो आंखों के सामने दिखेगा.

रियल्टी चेक 

एक 12 मेगापिक्सल और 48 मेगापिक्सल वाला स्मार्टफोन लीजिए. इसके साथ 100 मेगापिक्सल और 200 मेगापिक्सल वाले भी ले आइए. अब सभी से फोटो लेकर उनकी साइज देखिए. आपको देखकर पता चल जाएगा कि 12 और 48 मेगापिक्सल वाले जहां 45 से 50 mb की साइज में फोटो लेते हैं वहीं 100 और 200 वाले 30 से 35 mb के बीच. ये है असल खेल. मेगापिक्सल भले कम, लेकिन दरवाजा बड़ा तो कैप्चर साइज ज्यादा. जाहिर है फोटो क्वालिटी अच्छी होगी. हमारा मकसद किसी भी ब्रांड को प्रमोट करना या किसी की बुराई करना नहीं है, इसलिए हमने नाम नहीं लिखे. लेकिन ये साइज का गेम असल है और आप खुद भी देख सकते हैं. इसलिए सिर्फ मेगापिक्सल देखकर फोन ना खरीदें. अपनी जरूरत और बजट के हिसाब से चुनें.    

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