आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते बाजार में कई बड़े देशों ने बाजी लगाई है. चीन के AI प्लेफॉर्म DeepSeek ने ChatGPT और मेटा एआई जैसे प्लेटफॉर्म की चिंता बढ़ा दी है. इस बीच भारत के संदर्भ में भी AI की चर्चा होने लगी है. बहस छिड़ गई है कि AI के मामले में चीन और अमेरिका आगे निकल गए हैं, लेकिन भारत में इस तकनीक को लेकर क्या हो रहा है. बात करेंगे कि AI तकनीक को विकसित करने के लिए देश की क्या तैयारी है. ये भी बताएंगे कि भारत में AI की बात आते ही इंफोसिस कंपनी और उसके पूर्व CEO विशाल सिक्का की चर्चा क्यों हो रही है.
चीन और अमेरिका ने अपना AI बना लिया, लेकिन इस पर भारत की तैयारी कहां पहुंची है?
अमेरिका में ChatGPT और MetaAI जैसे AI प्लेटफॉर्म्स बने. चीन में बना DeepSeek. भारत की तैयारी भी मजबूत है. बस इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने हैं और अपने डेटा सेंटर्स बनाने हैं. पावरफुल GPUs की व्यवस्था करनी है. फिर LLM तैयार करना है. जानिए भारत अपना AI प्लेटफॉर्म बनाने से अभी कितनी दूर है?

लेटेस्ट अपडेट तो यही है कि भारत सरकार अगले कुछ महीनों में ताकतवर और सस्ते AI मॉडल लॉन्च करने की तैयारी में है. पिछले दिनों इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने बताया कि केंद्र सरकार इसकी तैयारी पिछले साल से ही कर रही है. मार्च 2024 में 10,372 करोड़ रुपये के बजट के साथ 'IndiaAI Mission' को मंजूरी मिली थी. 2024-25 में इस मिशन को 551.75 करोड़ रुपये दिए गए.
बजट पेश होने से पहले 31 जनवरी को जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद को संबोधित किया, तब भी उन्होंने भारत के एआई मिशन की चर्चा की. इस मिशन का उद्देश्य है- AI से संबंधित तकनीकों को मजबूत करना. आईटी मंत्री ने कहा कि ‘इंडिया एआई मिशन’ भारतीय भाषाओं में देश को एआई समाधान देने के करीब पहुंच गया है.
ऐसा देखने को मिला है कि जो AI प्लेटफॉर्म जिस देश में बना है, वो उस देश के बारे में ज्यादा सटीक और विश्वसनीय जानकारी देता है. कुछ विवादास्पद विषयों पर ये प्लेटफॉर्म उन देशों को ज्यादा तरजीह देते हैं, जहां उनका विकास हुआ. मसलन कि कई मामलों में देखा गया है कि DeepSeek चीन से जुड़े विवादों का गोलमोल जवाब देता है. या जवाब देता ही नहीं. ChatGPT को लेकर भी शुरू में ऐसे ही सवाल उठे थे.
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भारत की डायवर्सिटी और यहां की भाषाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया AI मॉडल, स्थानीयता के मामले में ज्यादा मददगार साबित हो सकता है. हालांकि, इसके लिए बेहतर तकनीक को विकसित करने की जरूरत है.
AI के बाजार में उतरने के फिलहाल दो तरीके हैं. एक कि देश में AI का फाउंडेशन तैयार हो. यानी एक AI मॉडल बनाया जाए जिससे दूसरे AI प्रोडक्ट्स बनाए जाएंगे. जैसे- चैटबोट, इमेज जेनरेटर, वीडियो जेनरेटर, हेल्थ ट्रैकर्स… भारत के संदर्भ में जानकार इस पर बंटी हुई राय रखते हैं. एक पक्ष कहता है कि हमें AI का बेस तैयार करने में और पैसा नहीं लगाना चाहिए. इसकी जगह दूसरे देशों में पहले से तैयार किए गए AI मॉडल का इस्तेमाल करना चाहिए. और उसी मॉडल से दूसरे प्रोडक्ट्स बनाने चाहिए.
जबकि कुछ लोग इस बात पर जोर देते हैं कि भारत के बारे में निष्पक्ष और सटीक जानकारी के लिए देश में ही AI मॉडल बनाए जाने चाहिए. इसी को और आसान करें तो ये कहा जाता है कि भारत में AI मॉडल तैयार हो और उसका सर्वर भी भारत में ही हो. यानी AI को जो जानकारी दी जाए उसका डेटा सेंटर हमारे ही देश में हो.
भारत कहां खर्च करने वाला है हजारों करोड़ रुपये?अश्विनी वैष्णव ने बताया कि ‘इंडिया एआई मिशन’ के 10,372 करोड़ रुपये के बजट का बड़ा हिस्सा देश में LLM मॉडल को विकसित करने में खर्च किया जाएगा. LLM का मतलब ‘लार्ज लैंग्वेज मॉडल’. आसान भाषा में कहे तो किसी AI को अपनी भाषा सीखने के लिए सबसे जरूरी चीज LLM है. इसके तहत AI को एक साथ बहुत सारा डेटा दिया जाता है. उस डेटा के सहारे AI इंसानों की भाषा की ट्रेनिंग लेता है. उसी आधार पर यूजर्स के इनपुट को समझता है और फिर कॉन्टेंट बनाता है.
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फिलहाल भारत में AI की ट्रेनिंग के लिए ये चुनौतियां हैं-
- इंफ्रास्ट्रक्चर.
- अपना डेटा सेंटर्स.
- डोमेस्टिक LLM.
- ग्राफिक्स प्रोसेसर यूनिट (GPU).
LLM में एक साथ इतने सारे डेटा को प्रोसेस करने के लिए पावरफुल प्रोसेसर की जरूरत पड़ती है. यानी LLM के विकास में ग्राफिक्स प्रोसेसर यूनिट (GPU) का अहम योगदान होता है.
भारत में कौन-सा GPU?सरकार ने 10 कंपनियों का चुनाव किया है जो 18,693 GPUs की सप्लाई करने वाली हैं. ये कंपनियां हैं-
- हीरानंदानी समूह की योटा (Yotta).
- जियो प्लेटफॉर्म्स.
- टाटा कम्युनिकेशंस.
- E2E Networks.
- सीएमएस कंप्यूटर्स.
- Ctrls Datacenters.
- लोकुज एंटरप्राइज सॉल्यूशंस.
- नेक्स्टजेन डेटासेंटर.
- ओरिएंट टेक्नोलॉजीज.
- वेन्सिस्को टेक्नोलॉजीज.
GPUs की संख्या का लगभग आधा सिर्फ Yotta कंपनी से आ सकता है. कंपनी ने 9,216 यूनिट GPUs की सप्लाई करने की इच्छा जताई है. आम तौर पर बड़ी कंपनियों को करीब 16 हजार GPU चिप्स की जरूरत पड़ी थी, जबकि DeepSeek का दावा है कि उन्होंने ये काम सिर्फ 2 हजार चिप्स में पूरा किया है.
बड़ी AI कंपनियों ने NVIDIA H100 का इस्तेमाल किया है, जो कि एक मजबूत GPU है. हालांकि, DeepSeek ने दावा किया है कि उन्होंने पुराने H800 (GPU) का इस्तेमाल किया है. और इसी कारण से उनकी लागत कम आई है. हालांकि, कई लोगों ने DeepSeek के इस दावे पर संशय जाहिर किया है.
ये कंपनियां जिन GPUs को उपलब्ध कराने वाली है, उसमें NVIDIA H100 भी है. इसके अलावा कई और GPUs भी हैं. इनके नाम हैं-
Intel Gaudi 2, AMD MI300X, MI325 X, NVIDIA H100, NVIDIA H200, NVIDIA A100, NVIDIA, L40S, NVIDIA L4, AWS Inferentia2 and Aws Tranium.
फिलहाल इन तैयारियों को लेकर अश्विनी वैष्णव का जो वादा है, वो इस प्रकार है,
भारत का अपना AI फाउंडेशन मॉडल बनाने के लिए सरकार कम से कम 6 डेवलपर्स के संपर्क में है. अगले 4 से 8 महीनों में भारत के पास अपना AI फाउंडेशन मॉडल होगा.
हालांकि, उन्होंने ये स्पष्ट नहीं बताया कि सरकार किन कंपनियों के संपर्क में है और फाउंडेशन तैयार करने का कितना खर्चा आएगा. डीपसीक का दावा है कि उसने महज 51 करोड़ रुपये खर्च करके इस चैटबोट को तैयार किया है, जो META AI की लागत से 10 गुना कम है.
Vishal Sikka ने OpenAI में भविष्य देखा थाकुल मिलाकर प्रोसेस कुछ इस तरह है- पहले आएंगे GPUs, फिर तैयार होगा LLM. इस बीच भारत को जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और अपने डेटा सेंटर्स बनाने होंगे. लेकिन क्या इस तैयारी में देरी हुई? इसी सवाल पर इंफोसिस के पूर्व CEO विशाल सिक्का की चर्चा शुरू हो जाती है.
साल 2015 में विशाल जब इंफोसिस के CEO थे, तब उन्होंने ChatGPT बनाने वाली कंपनी OpenAI में भविष्य देखा था. उनका अनुमान था कि OpenAI जो फाउंडेशन तैयार करेगा, उससे इंफोसिस को फायदा होगा. इसलिए जब दुनिया के बड़े उद्योगपतियों ने इस कंपनी की मदद करने का फैसला किया तो उसमें सिक्का भी शामिल थे. इन लोगों ने OpenAI को 1 बिलियन डॉलर का डोनेशन देने का वायदा किया था. ये लोग या कंपनियां इस प्रकार थे-
- विशाल सिक्का.
- एलन मस्क - टेस्ला.
- अमेजन वेब सर्विसेज.
- पीटर थील - पेपल.
- सैम ऑल्टमैन - ओपेन एआई.
- जेसिका लिविंगस्टन - वाई कॉम्बिनेटर.
- रीड हॉफमैन - लिंक्डइन.
- ग्रेग ब्रॉकमैन - (एक्स) स्ट्राइप.
इसका तो पता नहीं कि इंफोसिस की ओर से उनके हिस्से का पैसा OpenAI को मिला या नहीं, लेकिन सिक्का ने इस कंपनी और इस तकनीक की खूब चर्चा की थी. मसलन 2017 में जब उन्होंने इस्तीफा दिया, तब भी इसका जिक्र किया था. उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा था कि OpenAI के बनाए एक बोट ने बिल्कुल शुरू से (स्क्रैच से) एक ऑनलाइन गेम की ट्रेनिंग ली और दुनिया के अच्छे खिलाड़ियों को हरा दिया. उन्होंने उसी समय AI को भविष्य की बड़ी ताकत बता दिया था.
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