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हो मेरे दम से यूं ही मेरे वतन की ज़ीनत

आज पढ़िए अल्लामा इक़बाल की 'बच्चों की दुआ'

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एक कविता रोज़ में आज इक़बाल की ये कविता

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बच्चों की दुआ

लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी,

ज़िन्दगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी.

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दूर दुनिया का मेरे दम से अंधेरा हो जाए

हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए.

हो मेरे दम से यूं ही मेरे वतन की ज़ीनत,

जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत.

ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब!

इल्म की शमा से हो मुझ को मुहब्बत या रब!

हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना,

दर्दमंदों से, ज़ईफ़ों से मुहब्बत करना.

मेरे अल्लाह, बुराई से बचाना मुझ को,

नेक जो राह हो, उस रह पे चलाना मुझ को.


कुछ और कविताएं यहां पढ़िए:

‘पूछो, मां-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं’

‘ठोकर दे कह युग – चलता चल, युग के सर चढ़ तू चलता चल’

मैं तुम्हारे ध्यान में हूं!'

जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख'

‘दबा रहूंगा किसी रजिस्टर में, अपने स्थायी पते के अक्षरों के नीचे’


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