कोच गौतम गंभीर (Gautam Gambhir) की यंग ब्रिगेड ने इंग्लैंड में कमाल कर दिया. ओवल टेस्ट (Oval Test) जीतकर टीम ने सीरीज ड्रॉ करा ली. ये यंग इंडियन टीम के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. कोच गंभीर की ये यंग टीम अंत तक लड़ी और हार नहीं मानी. जाहिर है गंभीर सहित पूरी टीम इस पर खुश है. और होना भी चाहिए. लेकिन इस सीरीज ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं. इन सवालों का जवाब गौतम गंभीर को अगली टेस्ट सीरीज से पहले ढूंढना होगा.
गंभीर की नौकरी बच गई, अच्छी बात! मगर इन कमियों को वो छिपा नहीं सकते
Coach Gautam Gambhir की यंग ब्रिगेड ने इंग्लैंड में कमाल कर दिया. लेकिन Anderson-Tendulkar Trophy ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं. अब इन सवालों का जवाब कोच गंभीर को अगली टेस्ट सीरीज से पहले ढूंढना होगा.

पांचों टेस्ट मैच में अगर टीम इंडिया के प्रदर्शन पर गौर करेंगे तो सबसे अच्छी बात ये रही कि टीम ने बैटिंग में कई रिकॉर्ड्स बना दिए. चाहे कप्तान शुभमन गिल (Shubman Gill) की बात करें या ओवरऑल टीम की. लेकिन, बॉलिंग डिपार्टमेंट में अब भी टीम में कई कमियां साफ तौर पर नज़र आ रही हैं. वैसे अगर हम टीम के सामने मौजूद चुनौतियों पर गौर करेंगे तो सिर्फ बॉलिंग की चुनौतियां नहीं हैं.
सबसे बड़ी समस्या टीम कॉम्बिनेशन की है. साथ ही बैटिंग में स्पिन के खिलाफ टीम का संघर्ष जो हमने पिछली डोमेस्टिक सीरीज में देखी उस पर भी टीम को काम करने की जरूरत होगी. वैसे तो चुनौतियां कई हैं, लेकिन अगर मूल रूप से देखें तो 5 चीज़ों पर काम करने की जरूरत होगी.

टीम इंडिया के पेसर मोहम्मद सिराज ने एंडरसन-तेंदुलकर टेस्ट सीरीज में शानदार प्रदर्शन किया. लेकिन, क्या टीम के सभी बॉलर्स पर भरोसा है कि हर मैच में वो 20 विकेट ले सकते हैं? जवाब है नहीं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण लीड्स टेस्ट है. जहां टीम चौथी इनिंग में 371 रन भी डिफेंड नहीं कर सकी थी. ओवल में टीम ने जीत दर्ज जरूर कर ली, लेकिन 373 रन को डिफेंड करते हुए टीम सिर्फ 6 रन से मुकाबला जीत सकी. 301 के स्कोर तक तो इंग्लिश टीम ने महज 3 विकेट गंवाए थे. लेकिन, इसके बाद अचानक वो पैनिक कर गए. इसका मतलब ये नहीं कि बॉलर्स को क्रेेेडिट नहीं जाता, पर फिर भी अंत तक ये डर लग रहा था कि ये मैच टीम इंडिया हार सकती है. मैनचेस्टर में भी टीम की बॉलिंग बुरी तरह एक्सपोज हो गई थी.
टीम इंडिया को अब टेस्ट क्रिकेट में आने वाली दोनों सीरीज घर पर ही खेलनी है. ऐसे में स्पिनर्स बहुत अहम होने वाले हैं. लेकिन, अगर आप टीम इंडिया पर गौर करेंगे तो वॉशिंगटन सुंदर और रवींद्र जडेजा ही कोच गंभीर के फर्स्ट चॉइस बॉलर हैं. जबकि टीम में रिस्ट स्पिनर कुलदीप को टीम में जगह भी नहीं मिल पा रही है. पेसर में भी बुमराह के वर्कलोड मैनेजमेंट ने चिंता बढ़ाई है, पर सवाल फिर वही है कि उन्हें रिप्लेस करेगा कौन? क्योंकि सिराज को छोड़ दें तो कोई भी बॉलर इतना कंसिस्टेंट नहीं है कि सीरीज में सारे मैच खेल सके.
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जसप्रीत बुमराह के वर्कलोड मैनेजमेंट और पूरी टेस्ट सीरीज़ के लिए उनकी उपलब्धता एक ऐसी समस्या है, जिसका समाधान टीम मैनेजमेंट को जल्दी करना होगा. बुमराह एक मैच विनर हैं और वर्कलोड मैनेजमेंट या चोट के कारण उनकी गैर-मौज़ूदगी, बॉलिंग अटैक में एक बड़ा अंतर पैदा करती है. अगर बुमराह टेस्ट क्रिकेट में लंबा खेलना चाहते हैं तो उन्हें अपना वर्कलोड तो मैनेज करना ही होगा.
यानी ये तय है कि आप उन्हें सिर्फ अहम मुकाबलों में ही खेलते देखेंगे. और यही कारण है कि टीम को यह तय करना होगा कि उन्हें हर मैच में खिलाने का जोखिम उठाया जाए या उनकी जगह किसी ऐसे प्लेयर को तैयार किया जाए जो हर मैच खेलने के लिए उपलब्ध हो. उसकी फिटनेस बेहतर हो और विकेट लेने की क्षमता हो. फिलहाल, अगर आप टीम को देखेंगे तो कई सारे पेसर्स हैं जिनमें ये क्षमता है कि वो रेड बॉल क्रिकेट में सिराज का साथ लंबे समय तक दे सकते हैं, लेकिन उन पर काफी मेहनत करने की जरूरत होगी. इनमें प्रसिद्ध कृष्णा, आकाश दीप, अर्शदीप समेत कई नाम हैं.

टीम इंडिया की अगली सबसे बड़ी समस्या ये है कि टीम के पास वो बॉलर्स ही नहीं हैं, जो हर मैच में खेलने के लिए उपलब्ध हों. मोहम्मद सिराज एकमात्र बॉलर हैं, जिन्होंने एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के सारे मैच खेले. बुमराह ने तो पहले ही बता दिया था कि वो तीन मैच ही खेल सकेंगे. मैनचेस्टर में बुमराह अंतिम मैच खेले, लेकिन इसके बावजूद अचानक से अंशुल कंबोज को मैच खेलने के लिए इंग्लैंड बुलाना पड़ा. अंशुल ने इस मैच में 4.9 की इकॉनमी से बॉलिंग की. ये साफ दर्शाता है कि टीम के पास बेंच पर भी सारे मैच खेल सकने वाले बॉलर नहीं थे. अर्शदीप और आकाश दीप दोनों इस मैच से पहले चोटिल हो गए थे. प्रसिद्ध बेंंच पर थे, पर उन पर टीम को भरोसा ही नहीं था.
अर्शदीप ने टी-20 में अपना जलवा दिखाया है, लेेकिन रेड बॉल क्रिकेट की बात अलग है. उन्होंने अब तक डेब्यू नहीं किया है. उनके पास अब ये मौका होगा कि वो अपनी बॉलिंग पर काम करें. साथ ही हर्षित राणा को भी हमने बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में बॉलिंग करते देखा है. लेकिन, लॉन्गेस्ट फॉर्मेट में वो अब तक बहुत प्रभावित नहीं कर सके हैं. इनके अलावा बतौर ऑलराउंडर नीतीश रेड्डी और शार्दुल ठाकुर को भी खिलाकर मैनेजमेंट ने देखा, लेकिन शार्दुल जहां बिल्कुल बेअसर दिख रहे थे. नीतीश रेड्डी को देखकर भी यही लगा कि अभी उनकी बॉलिंग में वो धार नहीं है.
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# ऑलराउंडर जडेजा-सुंदर की स्पिन बॉलिंगरवींद्र जडेजा के लिए बॉल से भले ही एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी बहुत खास नहीं रही हो, वैसे उन विकेटों में स्पिनर्स के लिए कुछ खास था भी नहीं, लेकिन बैट से उन्होंने कमाल कर दिया. सीरीज में 500 से ज्यादा रन बनाने वाले 4 बैटरों में वो भी शामिल थे. जडेजा ने सीरीज में 516 रन बनाए, जबकि वो 7 विकेट ही ले सके. सीरीज में रनों के मामले में शुभमन गिल, जो रूट और केएल राहुल ही जडेजा से आगे निकले. सुंदर के लिए भी ये सीरीज बैट से अच्छी रही. उन्होंने इस सीरीज में 4 मैचों में 284 रन बनाए, जबकि उनके नाम भी 7 विकेट रहे. इन दोनों खिलाड़ियों के सेलेक्शन से एक बात साफ जाहिर है कि गंभीर की पहली चॉइस बैटिंग ऑलराउंडर हैं. ऐसे में कुलदीप यादव जैसे स्ट्राइक बॉलर को कभी देश के बाहर मौका मिलेगा? वो भी तब जब बुमराह के वर्कलोड की चुनौती के बावजूद बैटिंग को गंभीर तरजीह देते रहे हैं.
न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी हमने देखा कि वॉशिंगटन सुंदर और रवींद्र जडेजा ही टीम की पहली पसंद थे. भले ही बैट से उनका योगदान शानदार रहा हो, लेकिन बॉल से पिछले कुछ समय से जडेजा का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है. ऐसे में इन दोनों ऑलराउंडर्स को गेंद से मैच बदलने का दारोमदार उठाना होगा. क्योंकि कई बार हमने देखा है कि हमारे पेसर्स अहम मुकाबलों में बहुत संघर्ष करते हैं. 2021 और 2023 के डब्ल्यूटीसी फाइनल में यह कमजोरी साफ झलकी. हालिया सीरीज में भी लीड्स में दूसरी इनिंग में जब पेसर्स फ्लॉप हुए तो सबको ये लगा कि कुलदीप को टीम में खिलाना चाहिए. सौरव गांगुली समेत कई स्टार्स इस तर्क से सहमत थे, लेकिन गंभीर का ऑलराउंडर प्रेम कुलदीप को एक मैच में भी जगह नहीं दिला सका.

टीम इंडिया का रिकॉर्ड अमूमन स्पिन बॉलिंग के खिलाफ काफी अच्छा रहता है. लेकिन, पिछले कुछ सालों से हमने इंडियन बैटर्स को स्पिन के खिलाफ काफी संघर्ष करते देखा है. हाल ही में न्यूजीलैंड के खिलाफ होम सीरीज में हमने पहले पुणे में मिचेल सैंटनर के सामने ये होते देखा, फिर मुंबई में एजाज पटेल हमारे बैटर्स के लिए अनप्लेयबल रहे. दोनों ही न्यूजीलैंड की रेड बॉल टीम का हिस्सा अमूमन नहीं होते हैं. लेकिन, फिर भी जब इंडियन कंडीशंस का उन्हें फायदा मिला तो वो काफी खतरनाक दिखे.
वैसे अगर इंडियन टीम की बात करें तो, यशस्वी जायसवाल, कप्तान शुभमन गिल, केएल राहुल और ऋषभ पंत स्पिन को काफी अच्छी तरह से खेलते हैं. पर न्यूजीलैंड के सामने ये सारे बैटर्स बहुत साधारण लग रहे थे. अब टीम इंडिया को अगली दो सीरीज वेस्टइंडीज और साउथ अफ्रीका के खिलाफ घर पर ही खेलना है. ऐसे में ये तय है कि अगर टीम इंडिया के बैटर्स को इन दोनों टीमों के खिलाफ सफल होना है तो स्पिन की समस्या को दूर करना होगा.
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