प्रैक्टिस कराते-कराते बालू की भी प्रैक्टिस हो रही थी. लाइन और लेंथ दुरुस्त होती चली गयी. अब हुआ ये कि उनकी बातें और भी ज़्यादा इधर-उधर होने लगीं. गेंद में उछाल और धारदार स्पिन वाला बॉलर. इस नाम से जाने जाने लगे बालू. पूना में ही एक हिंदू क्लब था. बालू चूंकि जाति से 'चमार' थे, हिंदू क्लब में उन्हें शामिल किया जाना मुश्किल में था. क्लब के लोग इस बात पर दो गुटों में बंट गए. कुछ उन्हें शामिल करना चाहते थे, कुछ नहीं. वजह - उनकी जाति. इस लड़ाई में अहम रोल निभाया कप्तान ग्रेग ने. वैसा ही रोल जैसा कचरा के लिए लगान मूवी में भुवन ने निभाया था. उन्होंने कहा कि हिंदू क्लब अगर बालू को शामिल नहीं करेगा तो अपनी मूर्खता का परिचय देगा. ग्रेग का ये मास्टर स्ट्रोक था. दरअसल उन्हें बालू के जीवन से कुछ ख़ास लगाव नहीं था. वो बस मैच में उन्हें फ़ेस करना चाहते थे. ग्रेग को चैलेन्ज पसंद था. अंत में बालू को हिंदू क्लब में शामिल कर लिया गया. अब तस्वीर पलट चुकी थी. वो हो रहा था जो कभी नहीं हुआ था. लगान याद है? आमिर खान वाली. कचरा को टीम में लाने के लिए भुवन ने गदर काट दिया था. "फिर काहे पूजते हो राम जी को? जिनने सबरी के जूठे बेर खाए. जो भगवान सबकी नइय्या पार करावत हैं, ऊकी नइय्या एक छोटी जाती के नाविक ने पार लगाई. ई सब जानने के बाद भी छूत-अछूत की बात करे हौ?" अब मैच के दौरान होता ये था कि बालू की छुई हुई गेंद को पूना हिंदूज़ के 'ऊंची जाति' के लोग छू रहे थे. मगर एक समस्या अब भी दिख रही थी. लंच ब्रेक या नाश्ते के दौरान बालू को पत्तल में खाना और कुल्हड़ में चाय मिलती. बाकी सभी को चीनी-मिट्टी के बर्तनों में परोसा जाता. लेकिन इसका बदला बालू मैदान में लेते थे. मैदान पर आते ही बालू सबके ऊपर पहुंच जाते थे. उनके विकेट सभी से ज़्यादा रहते थे. पूना हिंदूज़ की सफ़लता में पालवंकर बालू का एक बहुत बड़ा योगदान था.
बालू की बातें होने लगीं. ये कोई छोटी बात नहीं थी. सचिन तेंदुलकर जब न्यूज़ीलैंड टूर पे गए थे तो अपने साथ एक लड़का ले गए थे. न्यूज़ीलैंड की तेज़ पिच पर खेलने की प्रैक्टिस के लिए वो लड़का उन्हें एक जगह खड़े होकर गेंद फेंकता था. सहवाग भी एक मेटल के फट्टे पर गेंदें फिंकवाते थे. इससे गेंद स्किड होकर बल्ले पर तेज़ आती थी. पेस अडजस्ट करने का यही तरीका था. इसलिए प्लेयर्स किसकी गेंदों पर प्रैक्टिस कर रहे हैं, ये हमेशा से मायने रखता आया है. बालू का आलम ये हो गया था कि बड़े-बड़े नाम उनकी गेंदों को खेलना चाहते थे. इसी क्रम में पूना के अंग्रेज क्रिकेट कैप्टन जे जे ग्रेग भी अब प्रैक्टिस में बालू की गेंदें खेलते. कभी अगर बालू उन्हें आउट कर लेते तो उन्हें आठ आने मिलते. इस लिहाज़ से अगर वो एक हफ़्ते में एक बार उन्हें आउट कर ले जाते तो उनकी तनख्वाह दोगुनी हो जाती थी.
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