शॉर्ट फिल्म रिव्यू: यात्री कृपया ध्यान दें
फिल्म अपने नाम को जस्टिफाई करती है, आप भी इस पर ध्यान दे सकते हैं

''यात्रीगण कृपया ध्यान दें''.. नहीं, आप किसी स्टेशन पर नहीं खड़े हैं बल्कि आप पढ़ रहे हैं दी लल्लनटॉप. आज बात अमेज़न मिनी टीवी पर आई शॉर्ट फिल्म यात्री कृपया ध्यान दें की. ट्रेलर देखने के बाद फिल्म को देखने की एक्साइटमेंट बढ़ गई थी. ट्रेलर काफी प्रॉमिसिंग लगा था. मिस्ट्री और सस्पेंस से भरा ट्रेलर काफी कैची था. ये शॉर्ट फिल्म है, इसलिए इसका रिव्यू भी शॉर्ट में ही होगा. शाहिर शेख और श्वेता बासू की शॉर्ट फिल्म में क्या खास है, देखना चाहिए या नहीं और क्या चीज़ें मिसिंग लगीं, इन सभी पर बात करेंगे. # कहानी फिल्म चाहे शॉर्ट हो या लॉन्ग, उसका सबसे अहम हिस्सा होता है कहानी. कहानी दिलचस्प हो, तो बाकी चीज़ों में थोड़ा सा कॉम्प्रोमाइज़ किया जा सकता है. इस फिल्म के साथ भी ऐसा ही है. कहानी है मेडिकल कोडर सुमित की, जो होमस्टे भी चलाते हैं. जो एक साइलेंट हिल स्टेशन के सुनसान रास्ते पर नंदिता से मिलता है. नंदिता, जिसकी गाड़ी खराब हो गई है. वो सुमित से लिफ्ट मांगती है. सारे ट्विट्स एंड टर्न तब शुरू होते हैं, जब कार में बैठे ये दोनों प्राणी, भूत-प्रेत, आत्माओं, बैड स्पिरिट्स और एक पुरानी अनसॉल्व्ड डेथ मिस्ट्री की बातें करने लगते हैं. बतौर राइटर अभिनव सिंह का हाथ बहुत कसा हुआ है. कम समय में कट टू द प्वॉइंट बात. अपनी राइटिंग में वो एक भी लाइन एक्स्ट्रा नहीं लिखते. फिल्म की लेंथ बढ़ाने या स्टोरी को खींचने का काम नहीं होता. हिल स्टेशन पर रोड ट्रिप की ये छोटी सी कहानी, सीट बेल्ट की तरह आपको पूरे टाइम बांधे रखती है. और एंड होता है बिल्कुल अनएक्सपेक्टेड.
''क्यों लड़कियों को कार में दिलचस्पी नहीं हो सकती क्या?''राइटर का लिखा एक सटायर कमाल लगता है. जिसमें सुमित की कार देखकर नंदिता कार की हिस्ट्री-जॉग्रफी बताने लगती है. और जैसा कि इंडिया के बाकी आदमियों को लगता है कि लड़कियां कार और क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं जानतीं, ऐसा ही रिएक्शन सुमित का भी आता है. इसी पर नंदिता तपाक से कहती हैं, नंदिता की ये लाइन पूरी कहानी का सार भी है. जिसे देखने के लिए आपको अपने 16 मिनट देने पड़ेंगे. हॉरर नोट पर शुरू हुई इस फिल्म का अंत देखने के बाद 'वक्त बदल गए, जज़्बात बदल गए' वाला मीम ज़रूर याद आ जाएगा. #डायरेक्शन अभिनव सिंह ने ही यात्री कृपया ध्यान दें का डायरेक्शन भी किया है. सीन की फ्रेमिंग सटीक है. आगे क्या होने वाला है, इसकी तैयारी पहले के फ्रेम्स में कर दी जाती है. स्क्रीन प्ले पर अच्छा काम किया गया है. छोटी-छोटी डीटेलिंग्स पर ध्यान दिया गया है. जैसे प्यासी आत्मा की बात करने के बाद नंदिता का पानी पीना या सुमित की कार में लगा हुआ मनी हाइस्ट का स्टैच्यू. हर फ्रेम का अपना अलग महत्व है. लाइट्स और कैमरा एंगल से हॉरर क्रिएट करने की कोशिश की गई है. कार में ही फोर एंगल कैमरा सेटअप से पूरी कहानी दिखाई जाती है. छोटे बजट के हिसाब से फिल्म की सिनेमैट्रोग्राफी काफी अच्छी है. स्टार्टिंग में ही एरियल शॉट और लॉन्ग शॉट से केरल के सुंदर हिल स्टेशन को दिखाया जाता है. जो एक साइलेंट हिल और सुनसान रास्ते वाला इफेक्ट क्रिएट कर देता है. #एक्टिंग सबसे पहले बात सुमित की. जिसे निभाया है शाहिर शेख ने. जाने-माने एक्टर हैं. टीवी के कई सीरियल्स में नज़र आ चुके हैं. सुमित की खास बात ये है कि वो खुद को प्रो समझता है. उसे लगता है वो बिल्कुल परफेक्ट है और सारे काम उसी की मर्ज़ी से होने चाहिए. फोन पर होमस्टे के सेक्रेटरी से बहस करते हुए भी उसमें फ्रस्ट्रेशन साफ झलकती है.

भूतों और आत्माओं पर बात करते हुए श्वेता का एक्सप्रेशन देखने लायक होता है. #क्या छूट गया? फिल्म की लेंथ इतनी छोटी है कि कम समय में सबकुछ मैनेज करना टफ है. सबकुछ ठीक होने के बाद भी यात्री कृपया ध्यान दें में कुछ मिसिंग लगता है. सुमित की बिल्डअप की हुई कहानी ऐसे ही छोड़ दी जाती है. फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर कुछ खास नहीं है. जिससे कहीं ना कहीं कहानी कमज़ोर पड़ जाती है. फिल्म का फर्स्ट और लास्ट पॉइंट हाई नोट पर है, मगर बीच के कुछ हिस्सों में फिल्म अपनी एक्साइटमेंट बनाए नहीं रख पाती. और यही इसकी कमज़ोर कड़ी है. ओवरऑल यात्री कृपया ध्यान दें अपने नाम को जस्टिफाई करती है. आप भी इस पर ध्यान दे सकते हैं और 16 मिनट निकालकर फिल्म देख सकते हैं. वैसे नहीं देखना चाहते हैं, तो भी आप कोई बहुत बड़ी चीज़ नहीं मिस करेंगे.