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रमन लाम्बा, वो इंडियन क्रिकेटर जिसने हेल्मेट न पहनने की कीमत जान देकर चुकाई

जो ख़ुद को ढाका का डॉन कहता था.

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फोटो - thelallantop
रमन लाम्बा. 4 टेस्ट और 32 वन डे मैच खेलने वाला इंडियन क्रिकेटर. मेरठ में 2 जनवरी, 1960 को पैदा हुआ. राइट हैण्ड बैट्समैन. और एक फील्डर, जिसके बारे में मशहूर था कि बल्लेबाज के आस-पास खड़े फील्डिंग करते हुए भी वो हेल्मेट नहीं पहनता था. और यही मशहूरियत एक दिन इसे ले डूबी.

ढाका प्रीमियर लीग. 20 फरवरी 1998. बंगबंधु स्टेडियम. प्रीमियर डिवीज़न का फाइनल मैच. अबहानी क्रीड़ा चक्र का मैच था मोहम्मदन स्पोर्टिंग क्लब के खिलाफ़.

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रमन लाम्बा मज़ाक में कहता था, 'मैं ढाका का डॉन हूं.' मैच के दिन बांग्लादेशी लेफ़्ट आर्म स्पिनर सैफ़ुल्ला खान बॉलिंग कर रहा था. ओवर की तीन गेंदें बची थीं. मेहराब हुसैन स्ट्राइक पर. कप्तान ने रमन लाम्बा को फॉरवर्ड शॉर्ट लेग पर बुलाया. यानी बैट्समैन से एक कदम दूर. मोहम्मद अमीनुल इस्लाम कप्तानी कर रहे थे. बांग्लादेश के भी कप्तान थे. अमीनुल ने लाम्बा से हेल्मेट पहनने को कहा. लाम्बा ने कहा कि तीन ही गेंद तो बाकी हैं, खड़े रहने दे. मोहम्मदन स्पोर्टिंग क्लब के मेहराब हुसैन ने ओवर की चौथी गेंद खेली. पुल मारा. गेंद सीधे रमन लाम्बा के सर पर जा लगी. गेंद इतनी जोर से मारी गयी थी कि सर पर लगने के बाद वो सीधे विकेटकीपर के ग्लव्स में पहुंच गई. कप्तान अमीनुल इस्लाम दौड़ कर लाम्बा के पास पहुंचे. पूछा कि वो ठीक हैं या नहीं. लाम्बा का जवाब था 'बुल्ली, मैं तो मर गया यार.' देखने से लाम्बा के सर में लगी चोट इतनी खतरनाक नहीं लग रही थी. मगर उन्हें अस्पताल ले जाया गया. उनके सर के अंदर खून बह रहा था. दिल्ली से एक न्यूरोसर्जन ने भी उड़ान भरी. लेकिन कुछ नहीं किया जा सका. लाम्बा कोमा में चले गए और 23 फरवरी 1998 को उनकी मौत हो गयी. लाम्बा ने एक बहुत बड़ा सबक दिया. बचाव ज़रूरी है. इलाज़ से भी ज़्यादा. इलाज और बचाव में जब चुनाव की बात आये तो ये भी ज़रूरी है कि बचाव को चुना जाये. इलाज से दूरी ही बेहतर. बाइक लेकर 500 मीटर भी जाना हो तो हेल्मेट पहना जाए. 1 गेंद भी खेलनी हो तो सारे साज-ओ-सामान धारण किये जायें. रमन लाम्बा के बारे में कहे हैं कि वो एक ऐसा लेजेंड था जो समय से बहुत पहले चला गया. लाम्बा की टेक्निकल खामियों पर जब-जब सवाल उठाये तो बड़ी ही अथॉरिटी से जवाब देते थे, 'जब रन बनाऊंगा तब देखना.' और ऐसा उसने सचमुच किया. दिल्ली के लिए रणजी ट्रॉफी में 1034 रन बनाये. 14 इनिंग्स में. ये उनका सबसे अच्छा सीज़न था. रमन लाम्बा उस वक़्त विजय हजारे के साथ दूसरे इंडियन थे जिसने 2 ट्रिपल सेंचुरी बनाई थीं. 1986 में रमन लाम्बा को इंडिया के लिए टेस्ट टीम में चुना गया. इंग्लैंड के खिलाफ़. मगर वो टीम में नहीं आ पाए. भारत के लिए खेलते हुए 4 टेस्ट मैचों की 5 इनिंग्स में 102 रन बनाये. 1 हाफ़-सेंचुरी. 32 वन-डे मैचों में 783 रन. जिसमें 1 सेंचुरी और 6 हाफ़ सेंचुरी. रमन लाम्बा के बारे में एक मशहूर किस्सा तबका है जब फ़ील्डिंग करने वाली टीम के 12 खिलाड़ी मैदान पर मौजूद थे. एक पूरा ओवर निकल गया और किसी को मालूम ही नहीं चला. ये उनका पहला टूर था. 1986. लाम्बा टीम में नहीं थे. के श्रीकांत मैदान से बाहर गए और उनकी जगह लाम्बा को बुलाया गया. सब्स्टिट्यूट के तौर पर. श्रीकांत मैदान पर वापस आ गए. रवि शास्त्री ओवर फेंकने को तैयार हो गए. और श्रीकांत ने लाम्बा को बताया नहीं कि वो फ़ील्ड पर वापस आ चुके हैं. एक पूरा ओवर ऐसे ही निकल गया.
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