कुलदीप यादव (Kuldeep Yadav) को एजबेस्टन टेस्ट मैच में भी प्लेइंग इलेवन में मौका नहीं मिला. जिसके बाद फैन्स से लेकर दिग्गज तक लगातार सवाल उठाने लगे. यहां तक कि दिग्गज सुनील गावस्कर (Sunil Gavaskar) ने इसको लेकर मैनेजमेंट पर सवाल उठा दिए. अब हम आपको एक ऐसा आंकड़ा दिखाने वाले हैं, जो देखकर आप ना सिर्फ हैरान रह जाएंगे, बल्कि टीम मैनेजमेंट से कई सवाल भी पूछेंगे. हमें कुलदीप और टीम इंडिया के करंट बॉलिंग कोच मोर्ने मोर्कल (Morne Morkel) से जुड़ा एक ऐसा ही आंकड़ा मिला है.
कुलदीप के साथ इस कदर 'नाइंसाफी', गंभीर बस कोच मोर्कल का रिकॉर्ड खंगाल लें, पता चल जाएगा
Kuldeep Yadav को एजबेस्टन टेस्ट मैच में भी प्लेइंग इलेवन में मौका नहीं मिला. जिसके बाद फैन्स से लेकर दिग्गज तक लगातार सवाल उठाने लगे थे.
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दरअसल, भारतीय क्रिकेट में कई बार टैलेंट और मौके के बीच काफी गहरी खाई देखने को मिलती है और कुलदीप यादव की कहानी इसका सबसे ताजा उदाहरण हैं. कुलदीप यादव ने 25 मार्च 2017 को धर्मशाला में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट डेब्यू किया था. तब से अब तक, आठ साल के करियर में उन्हें सिर्फ 13 टेस्ट खेलने का मौका मिला.
जबकि टीम के बॉलिंग कोच, मोर्ने मोर्कल, जो कुलदीप के डेब्यू तक 73 टेस्ट मैच खेल चुके थे. उन्होंने 30 मार्च 2018 को आखिरी टेस्ट मैच खेला उनका करियर 86 टेस्ट मैचों का रहा. यानी कुलदीप के डेब्यू से लेकर अपने रिटायरमेंट तक उन्होंने एक साल में 13 टेस्ट मैच खेल लिए.
फर्क देखिए... मोर्कल उस दौरान 50 से ज्यादा विकेट लेकर 300 विकेट क्लब में शामिल हुए, रिटायर हुए, दुनिया घूमे और अब भारतीय टीम के बॉलिंग कोच बन गए. वहीं, कुलदीप यादव, जिनकी फिरकी के बड़े-बड़े बल्लेबाज नाचे, आज भी मैच दर मैच टीम में मौका मिलने का इंतजार कर रहे हैं. कुलदीप को आठ साल के करियर में सिर्फ 13 मैच खेलने का मौका मिला है.
कुलदीप ने इन 13 टेस्ट मैच में 56 विकेट अपने नाम किए हैं. जो कि किसी भी बॉलर के लिए एक डिसेंट रिकॉर्ड है. इंग्लैंड के खिलाफ तो उनका रिकॉर्ड और भी शानदार है. 6 मैचों में 21 विकेट, जिसमें उनका औसत 22.28 है. अकेले 2024 की सीरीज में कुलदीप ने 19 विकेट अपने नाम किए थे.
बावजूद इसके, एशिया से बाहर उन्हें सिर्फ दो टेस्ट खेलने मिले. एक इंग्लैंड में (2018, लॉर्ड्स) और एक ऑस्ट्रेलिया में (2019, सिडनी), जिसमें उन्होंने पांच विकेट लिए. लेकिन टीम इंडिया की प्लेइंग इलेवन में उनकी जगह कभी पक्की नहीं रही. एक बात फिर साफ कर दें कि हम बात टेस्ट क्रिकेट की कर रहे हैं.
मोर्कल के साथ तुलनामोर्कल रिटायरमेंट के बाद कोचिंग में आ गए, लेकिन कुलदीप को अब तक सिर्फ और सिर्फ 13 टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला. 30 साल के कुलदीप, अब भी हर सीरीज में सिर्फ मौका मांग रहे हैं. ऐसे में टीम इंडिया के सेलेक्टर्स की सोच पर सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर क्यों एक मैच विनर स्पिनर को लगातार नजरअंदाज किया जाता है? क्या टीम मैनेजमेंट के पास कुलदीप के लिए कोई पक्की प्लानिंग ही नहीं है?
ऐसे में आज के क्रिकेट सिस्टम पर एक तगड़ा सवाल है कि क्या टैलेंट और परफॉर्मेंस के बावजूद टीम इंडिया में जगह पाना इतना मुश्किल है? या फिर यहां भी किस्मत के नाम पर ही सब चीज को टाला जा रहा है.
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