उत्तर प्रदेश कैडर के IAS और गौतमबुद्धनगर के पूर्व डीएम सुहास एलवाई ने Paris Paralympics 2024 में इतिहास रच दिया है. बैडमिंटन की SL4 कैटेगरी में सुहास ने सिल्वर मेडल जीता है. सुहास ने 2020 के टोक्यो पैरालंपिक्स में भी सिल्वर मेडल अपने नाम किया था.
Paris Paralympics: बैडमिंटन में फिर सिल्वर मेडल जीते यूपी के IAS सुहास एलवाई
Suhas LY अपने छोटे से करियर में कई इंटरनेशनल और नेशनल गोल्ड मेडल्स जीत चुके हैं. पांच साल में लगभग दो दर्जन मेडल्स अपने नाम करने वाले सुहास ने Tokyo 2020 Paralympics में भी सिल्वर मेडल अपने नाम किया था.

फाइनल मुकाबले में सुहास फ्रांस के लुकास मजूर के खिलाफ दो सीधे सेट्स में 9-21, 13-21 से हार गए. पहले गेम में लुकास ने शुरुआत से ही सुहास पर दबाव बनाए रखा था. अंत तक सुहास गेम में वापसी नहीं कर सके. दूसरे गेम में भी लुकास ने शुरुआती बढ़त बना ली थी. 11-6 से गेम में आगे होने के बाद लुकास ने गेम 21-13 से अपने नाम किया. सुहास गोल्ड मेडल नहीं जीत सके. हालांकि वो पैरालंपिक्स में लगातार दो मेडल जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं.
सुहास का ये सफर साल 2016 में शुरू हुआ था. चाइना में हुई एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था. इसी जीत ने सुहास को पैरालंपिक्स तक पहुंचाया.
# कौन हैं Suhas?सुहास हमेशा से बैडमिंटन नहीं खेलना चाहते थे. उनकी टू डू लिस्ट में IAS बनना नहीं शामिल था. 2 जुलाई 1983 को कर्नाटक के शहर हसन में पैदा हुए सुहास बचपन से ही एक पैर से विकलांग हैं. सुहास का दाहिना पैर पूरी तरह फिट नहीं है. और जैसा कि रवायत है, किसी की कमियां समाज से देखी नहीं जातीं. समाज सब छोड़कर उस व्यक्ति की कमियों का तमाशा बनाना शुरू कर देता है.
लेकिन सुहास के सिविल इंजीनियर पिता अपने बेटे के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे. उनकी अलग-अलग जगहों पर होती पोस्टिंग और समाज के ताने
कभी भी सुहास के भविष्य के आड़े नहीं आ पाए. पिता और परिवार के साथ शहर दर शहर बदलते हुए सुहास ने अपनी पढ़ाई पूरी की. गांव के स्कूल से शुरू हुई सुहास की पढ़ाई खत्म हुई सुरतकल शहर में. सुहास ने यहीं के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से कम्प्यूटर साइंस में डिस्टिंक्शन के साथ अपनी इंजीनियरिंग पूरी की.
सुहास के इंजीनियर बनने के पीछे भी मजेदार क़िस्सा है. बारहवीं के बाद उन्होंने मेडिकल और इंजीनियरिंग, दोनों की परीक्षा दी. और सुहास दोनों में पास भी हो गए. पहले ही राउंड की काउंसिलिंग के बाद उन्हें बैंगलोर मेडिकल कॉलेज में सीट भी मिल गई. लेकिन मन अभी भी इंजीनियरिंग की ओर ही था. पूरा परिवार चाहता था कि सुहास डॉक्टर बनें और बेटा उनकी इच्छा के आगे सरेंडर भी कर चुका था. लेकिन तभी एक दिन उन्हें मुंह लटकाए बैठा देख सुहास के पिता ने कहा,
‘जा बेटे, जी ले अपनी जिंदगी.’
बस, यहीं से तय हुआ कि सुहास इंजीनियर ही बनेंगे. पढ़ाई में बेहद तेज सुहास खेलकूद में भी आगे रहते थे. और बाकी भारतीय बच्चों/युवाओं की तरह उनका भी मन क्रिकेट समेत कई खेलों में लगता था. हालांकि क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी रहे सुहास ने कभी प्रोफेशनल एथलीट बनने के बारे में नहीं सोचा था. इंजीनियरिंग के बाद उन्होंने लगभग हर भारतीय इंजीनियर के ड्रीम प्लेस बेंगलुरु में एक आईटी फर्म जॉइन कर ली.
सब सेट था. जिंदगी ठाठ से चल रही थी. लेकिन जिन्हें इतिहास बनाना होता है वो रुकते कहां हैं, उनकी भूख कभी खत्म नहीं होती. नौकरी के चक्कर में बेंगलुरु से जर्मनी तक घूमते-टहलते सुहास को हमेशा लगता कि कुछ कमी है. जीवन में पैसा भी है और ऐशो-आराम भी, लेकिन ये जीवन पूर्ण नहीं है. सुहास के मन में रह-रहकर सिविल सर्विसेज जॉइन करने का खयाल आता रहा. इसी बीच साल 2005 में सुहास के पिता की मृत्यु हो गई.
इस घटना ने मानो उन्हें झकझोर दिया. पहले से ही नौकरी के साथ सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे सुहास ने अब मन पक्का कर लिया. एक दिन सबको चौंकाते हुए सुहास ने जमी-जमाई नौकरी छोड़ी और बताया कि उन्होंने सिविल सर्विसेज के प्री और मेंस एग्जाम निकाल लिए हैं और अब उन्हें IAS ही बनना है. नौकरी छोड़ने के बाद सुहास ने सिविल का इंटरव्यू भी क्लियर किया और साल 2007 में वह यूपी कैडर से IAS बन गए. भारत में ज्यादातर लोग इस कठिन परीक्षा को पास करने के बाद रुक जाते हैं, लेकिन सुहास यहां भी नहीं रुके.
# Badminton Champion Suhasशौकिया बैडमिंटन खेलने वाले सुहास ने साल 2016 की पैरा एशियन चैंपियनशिप में भाग लेने का फैसला किया. बिना किसी को बताए वह चुपचाप सात दिन की छुट्टी लेकर चाइना निकल गए. लेकिन चाइना पहुंचकर आजमगढ़ के डीएम सुहास को लगा कि जीवन इतना भी आसान नहीं है. अपने पहले इंटरनेशनल टूर्नामेंट के पहले ही सेट में सुहास हार गए. और दूसरा सेट भी 12-9 से विपक्षी प्लेयर की ओर जा रहा था. लेकिन इसी स्कोर पर मिले ड्रिंक्स ब्रेक ने सब बदल दिया.
इस बारे में सुहास ने दी लल्लनटॉप को बताया,
‘इस ड्रिंक्स ब्रेक के दौरान मेरे एक दोस्त ने मुझे टोका. उसने कहा- ‘डरकर क्यों खेल रहे हो भाई?’ और उसके टोकने के बाद मैंने भी सोचा कि एक हार से क्या ही होगा, और अगर हारना ही है तो अपना नेचुरल गेम खेलकर हारेंगे.’
और इतना सोचना था कि गेम पलट गया. सुहास ने ना सिर्फ ये मैच बल्कि टूर्नामेंट का गोल्ड मेडल भी जीत लिया. और उनके इस गोल्ड ने सुहास की PCS बीवी ऋतु सुहास की शिकायत भी दूर कर दी. दरअसल सुहास के वक्त बे-वक्त बैडमिंटन खेलने से ऋतु को अक्सर शिकायत होती थी. लेकिन सुहास की मेहनत का फल जब गोल्ड मेडल के रूप में आया तो ऋतु की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा.
एलवाई सुहास और ऋतु के मिलने का क़िस्सा भी बिल्कुल फिल्मी है. इस बारे में सुहास ने हमें बताया,
‘ये पहली नज़र का प्यार वाला हाल था. नौकरी की शुरुआत में मेरी पहली पोस्टिंग आगरा में हुई. और उसी दौरान ऋतु की पहली पोस्टिंग भी आगरा में ही हुई. यहां जब एक मीटिंग के दौरान मैं पहली बार इनसे मिला, तभी मुझे लग गया कि जीवन तो इन्हीं के साथ बिताना है. फिर धीरे-धीरे हमारी मुलाकातें होने लगीं और इन्हीं मुलाकातों के दौरान बात बढ़ते-बढ़ते शादी तक आ गई.’
एलवाई सुहास और ऋतु सुहास अभी दो बच्चों के माता-पिता हैं. मौजूदा वक्त में यूपी में स्पोर्ट्स एंड यूथ वेलफेयर सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत सुहास ने साल 2018 में जकार्ता में हुए एशियन पैरा गेम्स में ब्रॉन्ज़ मेडल भी जीता था. इस मेडल से जुड़ा एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाते हुए सुहास ने दी लल्लनटॉप से कहा,
‘2018 के एशियन गेम्स से पहले मैं दिन-रात तैयारी में ही लगा रहता था. तमाम दूसरे प्लेयर्स के वीडियो देखना, अपने वीडियोज शूट करके अपनी कमियों को सुधारना और मौका मिलते ही रैकेट उठा लेना. उस वक्त मेरा जीवन ऐसे ही चल रहा था. और ऋतु को ये बात सख्त नापसंद थी. लेकिन एशियन चैंपियनशिप के गोल्ड के बाद वह थोड़ी सॉफ्ट हो चुकी थीं. और इसका फायदा उठाकर मैंने अपनी प्रैक्टिस और तेज कर दी.
फिर इसी दौरान आई दिवाली. घर वालों का प्लान था कि पूरे दिन घर में रहेंगे, शाम की तैयारी करेंगे. लेकिन मेरे दिमाग में तो एशियन पैरा गेम्स थे. बस मैं सुबह उठा, नाश्ता किया और अपनी बैडमिंटन किट उठाकर निकल गया प्रैक्टिस करने. मैंने इस छुट्टी का पूरा फायदा उठाया और शाम को बेहद खुश होकर घर लौटा. लेकिन मुझे ये बात पता ही नहीं थी कि घर पर तूफान मेरा इंतजार कर रहा है. दिवाली के पूरे दिन मेरे गायब रहने से ऋतु बहुत गुस्सा हुई और फिर उसने मुझे जकार्ता गेम्स का ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने के बाद ही माफ़ किया.’
एशियन चैंपियनशिप और एशियन पैरा गेम्स में मेडल जीतने के बाद सुहास ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अपने छोटे से करियर में वह कई इंटरनेशनल और नेशनल गोल्ड मेडल्स जीत चुके हैं. पांच साल में लगभग दो दर्जन मेडल्स अपने नाम करने वाले सुहास ने Tokyo 2020 Paralympics में भी सिल्वर मेडल अपने नाम किया था.
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