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क्रिकेट और हॉकी दोनों के मास्टर के ओलंपिक गोल्ड चूकने की कहानी!

भारत की क्रिकेट और हॉकी टीम के तार दो प्लेयर्स के ज़रिए जुड़ते थे. दो ऐसे खिलाड़ी, जो दोनों खेलों में महारथ रखते थे.

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एमजे गोपालन और भारतीय हॉकी टीम. फोटो: Getty Images

15 अगस्त 1936 का दिन. सुबह के 11 बजे का वक्त. इंग्लैंड की राजधानी लंदन में मौजूद केनिंग्टन ओवल के मैदान पर दो टीम्स आमने-सामने खड़ी थी. एकतरफ थी मेज़बान टीम इंग्लैंड और दूसरी तरफ था भारत. जो उस वक्त इंग्लैंड के अधीन था. 1936 तक भारत को टेस्ट क्रिकेट का दर्जा मिले पांच साल हो चले थे. इन पांच सालों में भारत दूसरी बार इंग्लैंड के दौरे पर था. ये मुकाबला उस टेस्ट सीरीज़ का तीसरा और निर्णायक मैच था. इससे पहले भारत ने पहला मुकाबला लॉर्ड्स में हारा था और दूसरा टेस्ट मैनचेस्टर में ड्रॉ करवाया था.

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इस टेस्ट और उस सीरीज़ को आज हम इसलिए याद कर रहे हैं क्योंकि ठीक उसी तारीख को 11 साल बाद भारत आज़ाद हुआ. हां तो, 15 अगस्त 1936 को जब दोनों टीम्स टेस्ट मैच खेलने जा रही थीं. तभी भारत की एक और टीम उस मैदान से लगभग 700 किलोमीटर दूर एक और मुकाबला खेल रही थी. ये मुकाबला क्रिकेट नहीं बल्कि हॉकी का था. वो भी खेलों के सबसे बड़े महाकुंभ यानि ओलंपिक्स में. गोल्ड मेडल के लिए. इस मुकाबले में भारत का नेतृत्व कर रहे थे दिग्गज ध्यानचंद.

लंदन में भारतीय टीम टेस्ट मैच खेलने जा रही थी तो बर्लिन के मैदान पर भारतीय टीम हॉकी फाइनल खेलने जा रही थी. अब आप सोच रहे होंगे कि इनमें कॉमन क्या है? जनाब, यही बताने के लिए तो हमने ये कहानी शुरू की है. दरअसल एक ही दिन मैदान पर उतर रही भारत की क्रिकेट और हॉकी टीम के तार दो प्लेयर्स के ज़रिए जुड़ते थे. दो ऐसे खिलाड़ी, जो दोनों खेलों में महारथ रखते थे. एक खिलाड़ी तो ऐसा था जिसका चयन भी दोनों ही टीम्स में हुआ था. लेकिन उस खिलाड़ी ने बर्लिन जाने की जगह ब्रिटेन जाने का फैसला लिया. जो बाद में बुरी तरह से गलत साबित हुआ.

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हॉकी छोड़ क्रिकेट के मैदान पर उतरने का फैसला करने वाले इन दो खिलाड़ियों में एक थे सैय्यद मुश्ताक अली. वहीं दूसरे थे एम.जे. गोपालन. मुश्ताक अली तो पहले ही क्रिकेट को अपना चुके थे. लेकिन गोपालन अभी भी दोनों खेलों में अटके थे और उन्हें दोनों टीम्स से बुलावा भी आया था. उस वक्त गोपालन ने बर्लिन की जगह इंग्लैंड जाना पंसद किया.

और फिर उन्हें एक कहावत सच होती दिखी- माया मिली ना राम. इंग्लैंड के उस दौरे पर गोपालन को एक भी मुकाबले में खेलने का मौका नहीं मिला. और क्रिकेट टीम 2-0 से बुरी तरह से हारकर दौरे से वापस भी लौटी. यानी कटे पर नमक मिर्च का तड़का. दूसरी तरफ बर्लिन गई हॉकी टीम ने फाइनल में जर्मनी को 8-1 से हराकर ओलंपिक्स में गोल्ड मेडल की हैट-ट्रिक पूरी की.

यही नहीं, अभी और सुनिए. इसके बाद गोपालन ने भारत के लिए कोई भी टेस्ट मैच नहीं खेला. उनके करियर का इकलौता टेस्ट मैच 1934 में आया. जो उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ़ कोलकाता के मैदान पर खेला था. जहां गोपालन के बल्ले से 18 रन निकले और उन्होंने मैच में एक विकेट चटकाया.

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हालांकि फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में वो कमाल के ऑल-राउंडर रहे. उन्होंने 94 विकेट लेने के साथ 2916 रन भी बनाए. लगभग 25 सालों तक वो मद्रास क्रिकेट के शानदार खिलाड़ी बने रहे. 1926 से 1951 तक उन्होंने मद्रास के लिए क्रिकेट खेला और कई साल कप्तानी भी की. क्रिकेट छोड़ने के बाद 1950 और 60 के दशक के दिनों में वो टेस्ट सेलेक्टर भी रहे. 

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