भारतीय महिला टीम अब वर्ल्ड चैंपियन बन गई है. साउथ अफ्रीका को नवी मुंबई में खेले गए फाइनल में भारत ने 52 रनों से हराकर खिताब जीत लिया. इस खिताबी जीत के कई नायक रहे. हमने सबको सेलिब्रेट भी किया. लेकिन, एक अनसंग हीरो ऐसा भी है, जिसने महज दो साल में वो कर दिखाया, जो सपना 2005 और 2017 में पूरा होते-होते रह गया था. जीत के बाद कप्तान हरमनप्रीत कौर (Harmanpreet Kaur) के इमोशंस ये बयां करने के लिए काफी थे कि इस जीत में उस इंसान का कितना योगदान है. हम बात कर रहे हैं भारतीय महिला टीम के कोच अमोल अनिल मजूमदार (Amol Anil Mazumdar) की.
अमोल मजूमदार: कभी नहीं पहन पाए इंडियन टीम की जर्सी, पर इंडिया को वर्ल्ड चैंपियन बना दिया
Amol Mazumdar Story : ये कहानी है एक ऐसे आदमी की, जिसने 21 साल क्रिकेट मैदान पर तपस्या की. लेकिन, फिर भी कभी इंडियन जर्सी नहीं पहन सका. अब बतौर कोच भारतीय महिला टीम को पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बना दिया है.


मुंबई का वो क्रिकेटर, जो फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 11000 से ज्यादा रन बनाने के बावजूद गुमनाम रहा. वही प्लेयर, जिसके नाम रणजी में डेब्यू पर हाईएस्ट स्कोर करने का रिकॉर्ड बरसों तक रहा. वही बैटर, जो तब पैड बांधे इंतज़ार करता रह गया था, जब सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) और विनोद कांबली (Vinod Kambli) ने 664 रनों की रिकॉर्ड पार्टनरशिप कर दी थी. मुंबई क्रिकेट का वो सितारा, जो 21 साल तक चमकता रहा. लेकिन, कभी इंडिया की जर्सी नहीं पहन सका.
पहले उनका परिचय ले लेते हैं11 नवंबर 1974 को मुंबई में पैदा हुए अमोल के जीवन का बड़ा हिस्सा क्रिकेट के नाम रहा है. वह भी सचिन की ही तरह कोच रमाकांत आचरेकर के शिष्य थे. अभी 14 साल के ही थे कि मुंबई की तरफ से खेलने लगे. विजय मर्चेंट ट्रॉफी में अंडर-15 कैटेगरी में सौराष्ट्र के खिलाफ उन्होंने अपना पहला मैच खेला. और खाता शतक मारकर खोला. नॉट आउट 125 रन बनाए. इससे कुछ ही महीने पहले वह इंतज़ार का दंश क्या होता है ये सीख चुके थे. आगे चलकर क्रिकेट के भगवान बन जाने वाले सचिन और उनके यार कांबली के हाथों. हैरिस शील्ड के सेमी-फाइनल मैच में सचिन-कांबली ने 664 रनों की पार्टनरशिप कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था. सबको पता है. कम लोगों को ये पता है कि उसी मैच में अमोल पैड बांधे अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रहे थे. जो कि कभी आई ही नहीं. पूरे दो दिन इंतज़ार करने के बावजूद. इंतज़ार तबसे अमोल मुज़ुमदार की किस्मत में कुंडली मारकर बैठ गया. 21 साल इंतज़ार के बावजूद इंडियन जर्सी नहीं मिली. लेकिन, अब लगता है उनका ये इंतज़ार अंतत: पूरा हो गया है. अब उनके क्रिकेटिंग करियर पर भी एक नज़र मार लेते हैं.
# 1991 में मुंबई के लिए अंडर-16 खेला और लगातार तीन शतक मारे. जिनमें से तीसरा तो ट्रिपल सेंचुरी थी.
# 1992 में मुंबई अंडर-19 टीम में चुने गए और यहां भी तीन शतक मारे.
# 1994 में अंडर-19 चिदंबरम ट्रॉफी हुई. अमोल ने पांच शतक मार दिए एक ही टूर्नामेंट में.
# फिर हुआ रणजी करियर का आगाज़. 12 फ़रवरी 1994 को. अमोल ने पहले ही मैच में 260 रन टांग दिए. जो कि तबका रिकॉर्ड था. जिसे 2018 में अजय रोहेरा ने तोड़ा.
# 1994 ख़त्म होते-होते उन्हें इंडिया की अंडर-19 टीम में चुन लिया गया. वीवीएस लक्ष्मण के साथ. इंग्लैंड टूर पर गए. एक शतक और एक अर्धशतक मारा.
# 1995 साल उनके करियर में सफलतम रहा. 15 मैच में उन्होंने 1068 रन बनाए. 50 के एवरेज से.
# आगे चलकर फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उन्होंने ढेर रन बनाए. 11,167 रन. 48 से ज़्यादा की एवरेज से.
# 21 सालों में फैले अपने फर्स्ट क्लास करियर में उन्होंने 30 शतक और 60 अर्धशतक मारे.
# अमोल मुंबई रणजी टीम के कप्तान भी रहे और टीम को ट्रॉफी भी जिताई.
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अमोल मजूमदार का जब प्राइम टाइम चल रहा था, उनके साथ कई और सितारे उभर रहे थे. एक साथ टैलेंट का जैसे विस्फोट हो रहा था. इसका खामियाज़ा सिर्फ अमोल ने ही भुगता. सचिन-कांबली के हाथों बैटिंग को तरस जाना भले ही छोटी सी घटना थी लेकिन थी सिंबॉलिक. ऐसा उनके साथ बार-बार हुआ. 1995 में उन्हें इंडिया-ए की जिस टीम में चुना गया, उसमें राहुल द्रविड़, सौरभ गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण थे. इंग्लैंड-ए के खिलाफ द्रविड़, लक्ष्मण टेस्ट मैच में कमाल कर रहे थे, तो गांगुली वनडे में करिश्मा. मिडिल ऑर्डर के कमाल के बैट्समैन मजूमदार के लिए इंडिया की जर्सी दूर का सपना लगती रही.
ऐसा ही थोड़े समय बाद तब हुआ, जब पहले रवि शास्त्री और बाद में नवजोत सिंह सिद्धू की रिटायरमेंट के बाद टेस्ट टीम के मध्यक्रम में वैकेंसी निकल आई. अप्लाई करने के लिए दलीप ट्रॉफी का टेस्ट पास करना था. फिर से लक्ष्मण, द्रविड़ और गांगुली चमके. तीनों ने एक ही साल में इंडियन टीम में जगह बनाई. अमोल रह गए. फिर इन तीनों ने मध्यक्रम में ऐसी जगह बनाई कि किसी और की एंट्री की गुंजाइश ही न रही.
अमोल डॉमेस्टिक क्रिकेट खेलते रहे. बढ़िया प्रदर्शन करते रहे. 15 साल मुंबई के लिए खेले. फिर आसाम के लिए खेले और अंत में आंध्र प्रदेश के लिए. 2013 में उन्होंने अपना आखिरी मैच खेला. 2014 में रिटायर होने की घोषणा कर दी. हालांकि, ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती. यहां शुरुआत हुई एक ऐसे कोच की कहानी, जिसने भारतीय महिला टीम को पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बना दिया. लेकिन, ये सफर भी उतना आसान नहीं था.
अमोल जब आए थे, महिला टीम काफी संघर्ष कर रही थीरिटायरमेंट के बाद वैसे तो अमोल ने कई टीमों को कोचिंग दी. नेशनल क्रिकेट अकेडमी में भारत की अंडर-19 और अंडर-23 टीम को कोच किया. दिसंबर 2013 में नीदरलैंड्स की टीम के बैटिंग कोच बने. आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स टीम के बैटिंग कोच रहे. साउथ अफ्रीका की टीम के बैटिंग कोच रहे. लेकिन, उन्हें असली पहचान अब जाकर मिली है, जब वो भारतीय महिला टीम के कोच बने हैैं. लेकिन, ये सफर जितना ग्लोरिफाइड अभी दिख रहा है, शुरुआत में कहानी इसके बिल्कुल उलट थी.
10 महीने के उथल-पुथल. बहुत सारे सवाल. भविष्य की अनिश्चितताएं. घर पर अगले वर्ल्ड कप का दबाव. इन सब के बीच, अक्टूबर 2023 में अमोल अनिल मजूमदार ने भारतीय महिला टीम की कमान संभाली थी. टीम संघर्ष के एक बड़े दौर से गुजर कर रही थी. दो बार वनडे वर्ल्ड कप का फाइनल खेल चुकी थी. लेकिन, बड़े मौकों पर चोकर्स बनने का एक टैग लेकर घूम रही थी. घर पर हुए वर्ल्ड कप में टीम ने ग्रुप स्टेज में लगातार तीन मैच हारे तो लगा इस बार तो सेमीफाइनल भी मुश्किल है. लेकिन, अमोल की अगुवाई में हरमनप्रीत की इस सेना ने हार नहीं मानी. न्यूजीलैंड को रौंदकर जब टीम ने नॉकआउट का टिकट कटाया तो ऊपर वही तीन टीमें थीं, जिनसे ग्रुप स्टेज में हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन, सेमीफाइनल और फिर फाइनल में जिस तरह भारतीय महिला टीम खेली, ट्रॉफी तो उन्हें जीतना ही था.
सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ रिकॉर्ड रन चेज में हमने टीम को अमोल के पास जाकर भावुक होते देखा है. हालांकि, ट्रॉफी अभी भी एक कदम दूर थी. फाइनल में टीम को अच्छी शुरुआत मिली और बोर्ड पर 298 रन लग गए. ‘ये स्काेर कम है’, ज्यादातर क्रिकेट जानकार पिच को देखकर यही बता रहे थे. लेकिन, भारतीय टीम ने 246 रनों पर साउथ अफ्रीका को समेटकर 52 रनों से मुकाबला जीता और इसी के साथ वर्ल्ड कप जीतने वाली पहली एशियन टीम बन गई. बीच-बीच में अमोल का इनपुट लेकर हरमनप्रीत के पास आतीं एक्सट्रा प्लेयर को हमने कई बार देखा. यही कारण है कि मैच जीतने के बाद जैसे ही हरमनप्रीत अमोल के पास पहुंचीं वो उनके पैरों में गिर पड़ीं. अमोल को भले 21 साल डोमेस्टिक क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन का रिवॉर्ड इंडियन जर्सी के रूप में नहीं मिला हो. लेकिन, उन्हें हमेशा महिला क्रिकेट में पहला वर्ल्ड कप जिताने वाले कोच के रूप में याद किया जाएगा.
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