The Lallantop

एक कविता रोज़: सुलगा फाल्गुन का सूनापन सौंदर्य-शिखाओं में अनंत!

आज एक कविता रोज़ में पढ़िए सुमित्रानंदन पंत को.

post-main-image
फोटो - thelallantop
प्रिय पाठको, आज एक कविता रोज़ में सुमित्रानंदन पंत (20 मई 1900 – 28 दिसंबर 1977). पंत भी हिंदी कविता के उस दौर के ही प्रमुख कवि हैं, जिसे ‘छायावाद’ कहा गया. नेपोलियन के असर में आकर लंबे और घुंघराले बाल रखने वाले पंत हिंदी के सबसे सुकुमार कवियों में से एक हैं. ज्ञानपीठ, साहित्य अकादेमी और पद्मभूषण से सम्मानित पंत ने हरिवंश राय ‘बच्चन’ के बड़े बेटे का नामकरण भी किया, जिसे आज दुनिया अमिताभ बच्चन के नाम से जानती है. प्रकृति को अपनी कविता में बहुत महत्व देने वाले पंत ने अपने समय के महान व्यक्तित्वों पर भी तमाम कविताएं लिखीं. आध्यात्मिक गुरु अरविंदो से भी पंत प्रभावित रहे. ‘‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान उमड़ कर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अंजान’’ यह कहने वाले पंत की कविता सुंदरता का दूसरा नाम है.

अब पढ़िए सुमित्रानंदन पंत की यह कविता :

चंचल पग दीप-शिखा-से धर गृह, मग, वन में आया वसंत! सुलगा फाल्गुन का सूनापन सौंदर्य-शिखाओं में अनंत! सौरभ की शीतल ज्वाला से फैला उर-उर में मधुर दाह आया वसंत, भर पृथ्वी पर स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह! पल्लव-पल्लव में नवल रुधिर पत्रों में मांसल-रंग खिला आया नीली-पीली लौ से पुष्पों के चित्रित दीप जला! अधरों की लाली से चुपके कोमल गुलाब के गाल लजा आया, पंखुड़ियों को काले- पीले धब्बों से सहज सजा! कलि के पलकों में मिलन-स्वप्न अलि के अंतर में प्रणय-गान लेकर आया प्रेमी वसंत आकुल जड़-चेतन स्नेह-प्राण! काली कोकिल! सुलगा उर में स्वरमयी वेदना का अंगार आया वसंत, घोषित दिगंत करती भव पावक की पुकार! आः, प्रिये! निखिल ये रूप-रंग रिल-मिल अंतर में स्वर अनंत रचते सजीव जो प्रणय-मूर्ति उसकी छाया, आया वसंत! *** इनके बारे में भी पढ़ें : निराला जयशंकर प्रसाद घनानंद जायसी