जब मैं छोटी थी, तब मेरी हैंडराइटिंग बहुत खराब थी. मतलब बहुत ही ज़्यादा खराब. इसके चक्कर में मम्मी के हाथ से खूब थप्पड़ भी खाए. लेकिन, राइटिंग फिर भी नहीं सुधरी. फिर एक दिन बातों ही बातों में मेरी मम्मी को किसी ने आइडिया दिया कि वो मुझे डॉक्टर के पास ले जाएं. मैं डॉक्टर के पास गई. वहां डॉक्टर ने कहा कि मेरे हाथों और मेरी आंखों का आपस में तालमेल ही नहीं है. उसने मम्मी को कुछ चीज़ें और बताईं. फिर मेरा पूरा थेरेपी प्लान बना दिया. अलग-अलग एक्टिविटीज़ कराईं. धीरे-धीरे मेरी हैंडराइटिंग बदतर से बेहतर होने लगी. असर ये हुआ कि लैपटॉप पर काम करने के बावजूद मेरी राइटिंग आज अच्छी है. तो आज डॉक्टर से जानेंगे कि हैंडराइटिंग क्या है? कुछ बच्चों की हैंडराइटिंग खराब क्यों होती है? हैंडराइटिंग खराब करने में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स जैसे- मोबाइल फोन का क्या रोल है? और, बच्चों की हैंडराइटिंग कैसे सुधर सकती है?
कुछ बच्चों की हैंडराइटिंग क्यों सुधारे नहीं सुधरती? इसे ठीक करने के तरीके जानें
अक्सर बच्चों की हैंडराइटिंग बहुत खराब होती है. इन्हें हम उनकी लापरवाही समझते हैं. हालांकि अक्सर दोष उनका नहीं होता. बच्चे में कुछ स्किल्स की कमी के कारण राइटिंग बिगड़ जाती है जिसे थेरेपी कराकर सुधारा भी जा सकता है.
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हैंडराइटिंग क्या है?
ये हमें बताया डॉ. मोहित कुमार ने.

हैंडराइटिंग बहुत सारी स्किल्स को मिलाकर बनती है. जैसे- Fine Motor Skills, Eye–hand coordination, Visual Processing Skills आदि. हैंडराइटिंग में बच्चे द्वारा लिखे गए अक्षरों का साइज़, शेप और स्पेस शामिल किया जाता है. यह भी देखा जाता है कि उसमें पेंसिल पकड़ने की ताकत है या नहीं. जब बच्चे में ये सारी स्किल्स आ जाती हैं तब वह अच्छे से लिख पाता है.
कुछ बच्चों की हैंडराइटिंग खराब क्यों होती है?
कई बार बच्चों की हैंडराइटिंग बहुत खराब होती है या उनके लिखने की स्पीड धीमी होती है. ऐसा कई वजहों से हो सकता है. इनमें सबसे पहला कारण फाइन मोटर स्किल्स का न होना या फिर कम होना है. फाइन मोटर स्किल यानी बच्चा अपने हाथ को कितने बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकता है. दूसरा कारण है विज़ुअल मोटर इंटीग्रेशन का सही से न होना. विज़ुअल मोटर इंटीग्रेशन यानी हाथ और आंख आपस में कितना अच्छा कोऑर्डिनेशन कर सकते हैं. इसी स्किल से ही बच्चा ब्लैक बोर्ड या कॉपी-किताब से देखकर कुछ लिख पाता है. विज़ुअल मोटर इंटीग्रेशन में दिक्कत से बच्चे के लिखने की स्पीड धीमी हो जाती है. उसके अक्षर ऊपर-नीचे होने लगते हैं, शब्दों के बीच स्पेस भी कम-ज़्यादा होने लगता है.
तीसरा कारण ऑर्थोग्राफिक कोडिंग है. जब बच्चे को कोई अक्षर या शब्द याद नहीं रहता. इसके अलावा विज़ुअल प्रोसेसिंग स्किल्स हैं यानी जो कहीं लिखा हुआ है, उसे बच्चा कितने प्रभावी तरीके से खुद से लिख सकता है. अगर बच्चे को इनमें से किसी स्किल में दिक्कत है तो उसकी हैंडराइटिंग खराब हो सकती है. हैंडराइटिंग खराब होने की एक वजह डिसग्राफिया भी हो सकती है. इसमें बच्चे को लिखने में दिक्कत होने लगती है.

हैंडराइटिंग खराब करने में मोबाइल फोन का रोल क्या?
आजकल बच्चे छोटी उम्र से ही मोबाइल इस्तेमाल करने लगते हैं. इससे उनकी फाइन मोटर स्किल्स सही से डेवलप नहीं हो पातीं. फोन पर टाइपिंग, स्वैपिंग या स्कॉलिंग करने से हैंड फंक्शनिंग भी सही से विकसित नहीं हो पाती. ऐसे में बच्चों को हाथ से लिखने में परेशानी आ सकती है.
बच्चों की हैंडराइटिंग कैसे सुधर सकती है?
अगर बच्चे की हैंडराइटिंग सही नहीं है तो उसे ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट के पास लेकर जाएं. थेरेपिस्ट उसकी हैंडराइटिंग, फाइन मोटर स्किल्स, विज़ुअल प्रोसेसिंग स्किल्स और सेंसरी प्रोसेसिंग डिफिकल्टी चेक करते हैं. सेंसरी प्रोसेसिंग डिफिकल्टी यानी कहीं बच्चे को पेन या पेंसिल पकड़ने में कोई दिक्कत तो नहीं हो रही. इसके अलावा वेस्टिबुलर सेंस और प्रोप्रियोसेप्टिव सेंस हैं. वेस्टिबुलर सेंस हमारी आंखों के साथ कोऑर्डिनेट करके काम करती है. वहीं प्रोप्रियोसेप्टिव सेंस मतलब हमारे जॉइंट्स और मसल्स की समझ होना. अगर किसी बच्चे के प्रोप्रियोसेप्टिव सेंस में दिक्कत है तो उसकी हैंडराइटिंग खराब होगी. साथ ही उसे पेंसिल से कॉपी पर ज़ोर लगाने में भी दिक्कत होगी. इन सभी की ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट जांच करते हैं. बच्चे का पॉस्चर भी देखा जाता है कि वह किस तरह से अपने हाथ और कॉपी को रखता है. फिर जो भी दिक्कत निकल कर आती है, उसके हिसाब से पूरा थेरेपी प्लान बनाया जाता है.
अगर आपके बच्चे को लिखने में किसी तरह की दिक्कत है. उसकी हैंडराइटिंग नहीं सही है. तो, ज़रूरी नहीं कि यह उसकी लापरवाही हो. हो सकता है कि उसे कोई परेशानी हो. जिसे आप समझ न पा रहे हों. बच्चे की राइटिंग अच्छी नहीं है तो उसे थेरेपिस्ट के पास लेकर जाना ज़रूरी है.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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