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यूपी सरकार का सुप्रीम कोर्ट में जवाब, बुलडोज़र चलाने का दंगे से कोई लेना-देना नहीं

याचिका दायर करने वालों पर यूपी सरकार ने कहा - "इन्होंने बदनाम करने की कोशिश की है"

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(फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश में बीते 10 जून को जुमे की नमाज के बाद अलग-अलग जगहों पर हुई हिंसा के बाद स्थानीय प्रशासन ने आरोपियों के खिलाफ कई तरह की कार्रवाई की. इसमें बुल्डोजर से घर गिराना भी शामिल है. हालांकि अब उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि ‘प्रशासन द्वारा घर गिराने का संबंध दंगे से नहीं' है और वो कार्यवाही कानून के अनुसार की गई थी.

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उन्होंने दावा किया कि कानपुर और प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1972 के अनुरूप कदम उठाए हैं.

दरअसल, प्राधिकरणों की कार्रवाई के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बुल्डोजर से घर गिराने के खिलाफ स्थानीय प्रशासन पर कार्रवाई और नुकसान की भरपाई की मांग की थी, जिसके जवाब में यूपी सरकार ने कानून सम्मत कार्रवाई की दलील दी है .

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बुलडोजर के बारे में यूपी सरकार ने और क्या कहा?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा, 

'याचिकाकर्ता ने स्थानीय विकास प्राधिकरणों द्वारा उठाए गए कानूनी कदम को 'बुरे इरादे से की गई कार्रवाई' बताने की कोशिश की है. उन्होंने कुछ मामलों पर एकतरफा मीडिया रिपोर्टिंग का हवाला देकर पूरे राज्य पर आरोप लगाया है. यह पूरी तरह से गलत और भ्रामक है. स्थानीय विकास प्राधिकरणों द्वारा जिन घरों को गिराया गया है, वह 1972 के कानून के अनुरूप है.'

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में राज्य के कुछ अधिकारियों के बयानों का हवाला दिया है, जिसमें उन्होंने (अधिकारियों ने) घर गिराने को हिंसा के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई बताया था. हालांकि इस दलील पर यूपी सरकार ने आपत्ति जताई और कहा कि याचिकाकर्ता ने राज्य के शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्तियों और लोकल प्रशासन पर 'एक विशेष धार्मिक समुदाय' को प्रताड़ित करने का आरोप लगाकर 'बदनाम' करने की कोशिश की है.

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उन्होंने आगे कहा कि दंगे के आरोपियों के खिलाफ कानून की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई की जा रही है. इसमें उन्होंने सीआरपीसी, आईपीसी, यूपी गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) कानून,1986, सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम और उत्तर प्रदेश सार्वजनिक तथा निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली अधिनियम, 2020 का हवाला दिया है.

कानून के अनुसार कार्रवाई!

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि कानपुर में जो दो लोगों के घर गिराए गए हैं, उनके मकान मालिकों ने ये स्वीकार किया है कि उन्होंने गैरकानूनी ढंग से इसका निर्माण कराया था.

वहीं प्रयागराज में स्थानीय कार्यकर्ता जावेद मोहम्मद का घर गिराने को लेकर सरकार ने वही अपनी पुरानी बातें दोहराईं. उन्होंने कहा कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण को स्थानीय नागरिकों से कई शिकायतें प्राप्त हुई थीं, जिसमें उन्होंने कहा था कि आवासीय क्षेत्र में अनधिकृत कार्यालय बनाया गया है. साथ ही अवैध निर्माण और अतिक्रमण के भी आरोप लगाए गए थे.

राज्य सरकार ने दावा किया कि जावेद मोहम्मद का घर गिराने का संबंध हिंसा के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई से जुड़ा नहीं है क्योंकि उन्हें 10 मई को नोटिस जारी किया गया था और 24 मई को सुनवाई के लिए बुलाया गया था.

यूपी सरकार ने आगे सुप्रीम कोर्ट में कहा, 

'घर जाकर उन्हें नोटिस देने की कोशिश की गई थी, लेकिन परिवार वालों ने नोटिस लेने से मना कर दिया. इसके बाद बिल्डिंग पर ही नोटिस चस्पा कर दिया गया था.'

यूपी सरकार ने कहा कि जावेद मोहम्मद या उनकी ओर से कोई भी सुनवाई के लिए नहीं आया. इसके बाद सभी कानूनी प्रक्रियाओं के बाद उनके घर को गिरा दिया गया. हालांकि जावेद मोहम्मद के परिजनों ने कहा है कि उन्हें प्रशासन से किसी भी तरह का कोई नोटिस प्राप्त नहीं हुआ था. 10 जून को हिंसा के बाद उन्हें सीधे घर गिराने का पत्र मिला और 24 घंटे के भीतर बिल्डिंग को जमींदोज कर दिया गया. वो घर जावेद मोहम्मद की पत्नी के नाम पर था.

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