राहुल गांधी तो एक दशक से ये सपना पाले हुए हैं, पर कोई उम्मीद नहीं दिख रही क्योंकि नरेंद्र मोदी की धूम है चारों ओर. हालांकि राजनीति के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. दिग्विजय सिंह ने बाद में ट्वीट सही कर लिया और राहुल की जगह राजीव कर दिया.

दिग्विजय सिंह ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी और हाफिज सईद को साहेब भी कह चुके हैं. कांग्रेस की ही मीनाक्षी नटराजन को टंच माल भी कहा था. फिर टीवी चैनलों को इसका मतलब भी समझाया कि प्योर गोल्ड होता है, कुछ और समझाए तो केस कर दूंगा. एक बार थोड़ा अलग बोल गए थे. पाकिस्तान ऑक्युपाइड कश्मीर को इंडिया ऑक्युपाइड कश्मीर कहा था.

रत्ना सिंह
पर ये दिनेश सिंह कौन हैं?
ये यूपी के प्रतापगढ़ जिले के राजघराने के थे. पूरा परिवार गांधीवादी था. इनके दादाजी कांग्रेस के फाउंडिंग मेंबर थे. महात्मा गांधी गंगा किनारे बने इनके घर पर आया करते थे. इनके चाचा ब्रजेश सिंह कम्युनिस्ट थे, जिन्होंने रूस के तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना से शादी की थी.

गांधी जी दिनेश सिंह के पिता के साथ
नेहरू ने इनको लंदन में इंडियन राजदूत का सेक्रेटरी बनाया, पर इन्होंने इनकार कर दिया. दिनेश सिंह ने राजनीति में कदम रखा. 1957 में बांदा से सांसद हुए. बाद में दिनेश सिंह प्रतापगढ़ से सांसद हुए. 1969-70 और 1993-95 में इंदिरा गांधी और नरसिम्हा राव की सरकार में विदेश मंत्री बने थे.
इनकी शादी टिहरी गढ़वाल की राजकुमारी नीलिमा से हुई थी. इनकी 6 बेटियां हैं. रत्ना सिंह ही छठी बेटी हैं. जो प्रतापगढ़ से ही सांसद हैं. 30 नवंबर 1995 को दिनेश सिंह का निधन हो गया था.

दिनेश सिंह
दिनेश सिंह की आइडियॉल्जी फ्लेक्सिबल थी. पर महत्वाकांक्षा दृढ़ थी. इंदिरा गांधी फॉरेन पॉलिसी को लेकर सीरियस रहती थीं. दिनेश सिंह उनकी किचन कैबिनेट का हिस्सा थे. विदेश मंत्री थे और महत्वपूर्ण मामलों में उनके साथ रहते थे. ब्रिटिश अखबार इंडिपेंडेंट ने लिखा है कि दिनेश सिंह कभी-कभी ये हिंट ड्रॉप कर देते थे कि इंदिरा गांधी के साथ उनके रिश्ते सिर्फ राजनीतिक नहीं हैं और इस झूठ से उनका स्टेटस बढ़ जाता था.
पर 1971 में जब ये अफवाह इंदिरा गांधी के कानों तक पहुंची तो दिनेश सिंह को रातो-रात मंत्रिमंडल से ड्रॉप कर दिया गया. इंदिरा ने फिर उनको लंबे समय तक स्वीकार नहीं किया. फिर इमरजेंसी लगी. उसके बाद जनता पार्टी की सरकार आई. दिनेश सिंह उनमें शामिल हो गए. पर दो साल बाद वो फिर इंदिरा गांधी के साथ आ गए और सांसद बन गए. पर उनको इंदिरा की कैबिनेट में जगह नहीं मिली.
यहां तक कि राजीव गांधी ने भी वही रुख अपनाया. राजीव कम समय में ही अपने कैबिनेट में फेर-बदल करते रहते थे, पर दिनेश को सिर्फ एक बार कॉमर्स मिनिस्टर बनाया था थोड़े समय के लिए.

राजीव गांधी और इंदिरा गांधी
पर इनका दिन भी आया. राजीव के बाद प्रधानमंत्री बने नरसिम्हा राव राजनीति के अलावा ज्योतिष और शुभ-लाभ में भी भरोसा रखते थे. उनका मानना था कि दिनेश उनके लिए लकी हैं. तो 1993 में उन्होंने उनको विदेश मंत्री बना दिया.
इंदिरा गांधी की कैबिनेट से बाहर निकलने के बाद सिंह ने Towards New Horizons नाम की किताब भी लिख दी. पर नई दिल्ली के सरकारी बंगले से निकलने से इनकार कर दिया. मीडिया में बेइज्जती हुई, पर जुगाड़ लगाकर वहीं बने रहे.
दिनेश सिंह के पूर्वज बाबू लाल प्रताप सिंह 1857 की लड़ाई में लड़े थे. उनके पोते यानी कि दिनेश सिंह के दादा राजा रामपाल सिंह कांग्रेस से शुरू से ही जुड़े थे. इंग्लैंड में पढ़े थे और वापस आकर हिंदुस्तान अखबार निकालना शुरू किया. मदनमोहन मालवीय इसके एडिटर हुआ करते थे. उनके दो बेटे थे अवधेश सिंह और ब्रजेश सिंह. अवधेश सिंह के ही बेटे हैं दिनेश सिंह. ब्रजेश सिंह ने पहले राजकुमारी लक्ष्मी देवी से शादी की फिर ऑस्ट्रिया की लीला नाम की लड़की से की. फिर स्टालिन की बेटी से की और रूस के सोची में बस गए. वहीं उनकी मौत हो गई. उनकी वाइफ अस्थियां लेकर उनके गांव आईं और गंगा में प्रवाहित किया. उस वक्त न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट किया था कि स्टालिन की बेटी स्वेतलाना ने इंडिया के इस गांव को स्वर्ग कहा था. स्वेतलाना अमेरिका में ही बस गईं और 2011 में उनकी मौत हुई.
दिनेश सिंह की बेटी रत्ना सिंह 1996 में पहली बार सांसद बनीं. 1999 में भी जीतीं. पर 2004 में इनके रिश्तेदार और भदरी रियासत के राजा भैया ने जेल में रहते हुए अपने मौसेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह को रत्ना सिंह के खिलाफ खड़ा कर दिया. और जिता भी दिया. पर 2009 में रत्ना सिंह फिर जीत गईं.

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