आरोपियों पर गैर इरादतन हत्या (culpable homicide) का मामला दर्ज किया गया है. मुख्य आरोपियों के बैंक खाते सील कर दिए गए हैं. नकली वैक्सीन मामले में, पुलिस उपायुक्त, विशाल ठाकुर की निगरानी में एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया है. मुंबई पुलिस ने कहा है कि हो सकता है कि फर्जी वैक्सीन लगाने वालों ने नागरिकों को खारे या नमक के पानी का इंजेक्शन लगाया हो. ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस विश्वास पाटिल ने कहा कि आरोपियों से 12.40 लाख रुपये बरामद हुए हैं. मुख्य आरोपी मनीष त्रिपाठी और महेंद्र सिंह का बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिया गया है. पुलिस का कहना है कि इस तरह के आठ और शिविरों का आयोजन भी किया गया था, जिनमें से छह के खिलाफ मामले दर्ज किए जा चुके हैं. क्या है पूरा मामला? कोरोना के संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए वैक्सीनेशन पर जोर दिया जा रहा है. मुंबई के कांदिवली इलाके में स्थित हीरानंदानी एस्टेट सोसायटी (Hiranandani Estate Society) में 30 मई को वैक्सीन कैंप का आयोजन किया गया था. यहां सबसे पहले फर्जी टीकाकरण केस का खुलासा हुआ. वैक्सीन लगवाने वाले लोगों ने दावा किया है कि उन्हें फर्जी वैक्सीन लगाई गई. लोगों का कहना है कि न तो उन्हें वैक्सीन लगवाये जाने का प्रमाण पत्र जारी किया गया और न ही वैक्सीन लगवाने के बाद शरीर में कोई लक्षण नजर आए. जैसा कि आमतौर पर वैक्सीन लगवाने के बाद सामने आते हैं. इसके बाद से ही उन लोगों को शक होने लगा और उन्होंने धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवाई. लोगों का ये भी कहना था कि उन्हें वैक्सीन सेल्फी लेने से भी मना किया गया.

398 लोगों को लगी थी वैक्सीन इस वैक्सीनेशन कैंप में 398 लोगों को कथित कोविशील्ड वैक्सीन की डोज दी गई थी. प्रति डोज के हिसाब से 1260 रुपए लिए गए थे. सोसायटी के लोगों का कहना है कि राजेश पांडे नाम का एक शख्स बीते कुछ दिनों से वैक्सीनेशन को लेकर लगातार सोसायटी कमेटी से संपर्क कर रहा था. उसने अपना परिचय कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल का प्रतिनिधि बताकर दिया था. सोसायटी में आयोजित किया गया कोविड वैक्सीन कैंप संजय गुप्ता नामक शख्स की देखरेख में चलाया गया था. वहीं, महेंद्र सिंह नाम के एक तीसरे शख्स ने टीकाकरण के लिए सोसाइटी के लोगों से कैश में पेमेंट ली थी. मुंबई में कहां-कहां लगे थे फर्जी वैक्सीनेशन शिविर? महाराष्ट्र सरकार के मुताबिक मुंबई में नौ अलग-अलग टीकाकरण शिविरों में 2,053 लोग फर्जी वैक्सीन का शिकार हुए. 25 मई को मलाड में 30 लोगों को फर्जी वैक्सीन लगाई गई. दो दिन बाद ठाणे में 122 और फिर बोरीवली इलाके के आदित्य कॉलेज में 514 लोगों को वैक्सीन की डोज़ लगाई गई. कांदिवली में हीरानंदानी एस्टेट सोसायटी शिविर में 398, वर्सोवा में 365, और लोअर परेल में पोद्दार एजुकेशन सेंटर में 28 और 29 मई को कम से कम 207 लोगों को फर्जी टीके की डोज लगाई गई. रमेश तौरानी भी हुए फर्जीवाड़े का शिकार टिप्स इंडस्ट्रीज के मालिक रमेश तौरानी भी फेक वैक्सीनेशन स्कैम का शिकार हुए. इन्होंने 30 मई और 3 जून को करीब 365 कर्मचारियों को वैक्सीनेट कराया था. इनमें से किसी को भी सर्टिफिकेट नहीं मिला, जिसके बाद रमेश तौरानी ने बयान जारी किया. 18 जून को उन्होंने कहा था कि हम सभी अभी तक सर्टिफिकेट्स का इंतजार कर रहे हैं. जब मेरे ऑफिस के लोगों ने संजय गुप्ता, एसपी इवेंट्स से कॉन्टैंक्ट किया तो उन्होंने कहा कि शनिवार 12 जून तक सभी के सर्टिफिकेट आ जाएंगे, लेकिन अभी तक इस पर कोई जानकारी हासिल नहीं हो पाई है. हमारे 365 कर्मचारी वैक्सीनेट हुए हैं. हर व्यक्ति के लिए डोज को 1200 प्लस जीएसटी के मुताबिक खरीदा गया है. पैसों से ज्यादा हमें सभी को इस बात की चिंता सता रही है कि आखिर हमें दिया क्या गया है? क्या हमें सच में कोविशील्ड लगाई गई है या फिर केवल सैलाइन वॉटर लगाया गया है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्या कहा? अब तक 400 गवाहों के बयानों के आधार पर कई FIR दर्ज की गई हैं. फर्जी टीकाकरण पर चिंता जताते हुए हाईकोर्ट ने राज्य और बीएमसी को निर्देश दिया कि वे इसे रोकने के लिए एक नीति पर हलफनामा दाखिल करें. अलगी सुनवाई 29 जून को होगी. मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी की पीठ कोरोना वायरस के टीकों से जुड़ी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

राज्य सरकार के वकील दीपक ठाकरे ने पीठ को बताया कि शहर में अब तक कम से कम 9 फर्जी शिविर लगे. इस सिलसिले में चार अलग-अलग FIR दर्ज की गई हैं. राज्य सरकार ने इस मामले में जारी जांच संबंधी स्थिति रिपोर्ट भी दाखिल की. पीठ ने रिपोर्ट स्वीकार करते हुए कहा है कि राज्य सरकार और बीएमसी के अधिकारियों को पीड़ितों में फर्जी वैक्सीन के दुष्प्रभाव का पता लगाने और उनकी जांच करवाने के लिए कदम उठाने चाहिए.
पीठ ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि राज्य सरकार ने हाउसिंग सोसायटी, कार्यालयों आदि में वैक्सीनेशन कैंप आयोजित करने संबंधी विशेष दिशा-निर्देश तय नहीं किए हैं, जबकि हाई कोर्ट इस बारे में इस महीने की शुरुआत में आदेश दे चुका है.