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सुप्रीम कोर्ट पहुंचा बिहार वोटर लिस्ट मामला, इस तारीख को होगी सुनवाई

Manoj Jha ने कहा है कि ECI ने फैसला करने से पहले राजनीतिक दलों के साथ कोई बातचीत नहीं की. उनके अलावा Mahua Moitra और Yogendra Yadav ने भी Supreme Court का दरवाजा खटाखटाया है.

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ECI को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

बिहार के वोटर लिस्ट (Bihar Voter List) वेरिफिकेशन का मामला अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पहुंच गया है. चुनाव आयोग (ECI) के खिलाफ कम से कम पांच याचिकाएं दायर हुई हैं. शीर्ष अदालत इन याचिकाओं की तत्काल सुनवाई को तैयार हो गया है. 10 जुलाई को सभी पक्षों की दलीलें सुनी जाएंगी.

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राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राज्यसभा सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा और एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है. इनके अलावा ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADPR) और ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ (PUCL) ने भी ECI को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

मनोज झा की दलीलें

RJD सांसद ने अपनी रिट याचिका में कहा है कि ये फैसला न केवल जल्दबाजी में लिया गया है बल्कि गलत समय पर भी लिया गया है. उनका मानना है कि इससे करोड़ों वोटर मताधिकार से वंचित हो जाएंगे, जिससे वोट देने का उनका संवैधानिक अधिकार छिन जाएगा.

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लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मनोज झा ने ये भी कहा है कि आयोग ने फैसला करने से पहले राजनीतिक दलों के साथ कोई बातचीत नहीं की. उन्होंने ECI पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा,

अपारदर्शी बदलावों को सही ठहराने की कोशिश की जा रही है. इसके जरिए मुस्लिम, दलित और गरीब समुदायों को टारगेट किया जा रहा है. 

'नागरिकता साबित करना राज्य का काम है'

RJD नेता ने कहा कि कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति की नागरिकता साबित करने का भार राज्य पर होता है, न कि संबंधित व्यक्ति पर. उन्होंने आगे कहा,

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इस प्रक्रिया के शुरू होने के कारण वोटर लिस्ट में शामिल 7.9 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 4.74 करोड़ वोटर पर जन्म तिथि और जन्म स्थान के दस्तावेजों की मदद से अपनी नागरिकता साबित करने का बहुत ज्यादा बोझ है.

ऐसे राज्य में ये प्रक्रिया क्यों अपनाई जा रही है, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर और गरीबी से जूझ रहे अशिक्षित लोग हैं, जबकि विधानसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं. 

आधार को शामिल न करने पर उठाए सवाल

चुनाव आयोग ने वेरिफिकेशन के लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है. इसमें आधार कार्ड को शामिल नहीं किया गया है. राज्यसभा सांसद ने इस पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 10 में से 9 लोगों के पास आधार है. इसके बावजूद इसको मान्यता न देना पूरी तरह से आयोग की मनमानी है. जिन 11 दस्तावेजों को मान्य बताया गया है, उसको लेकर भी RJD नेता ने सवाल खड़े किए हैं.

महुआ मोइत्रा ने फैसले पर रोक लगाने की मांग की

TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि ECI ने कानूनों का उल्लंघन करते हुए इस प्रक्रिया की शुरुआत की है. उन्होंने आगे कहा है,

देश में पहली बार ऐसा हो रहा है कि चुनाव आयोग इस तरह की कवायद कर रही है. वैसे वोटर जिनके नाम पहले से वोटर लिस्ट में हैं और जो कई बार वोट दे चुके हैं, उन्हें अपनी पात्रता साबित करने को कहा जा रहा है.

मोइत्रा के साथ-साथ एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव ने भी अपनी याचिका में इसको नियमों का उल्लंघन बताया है. दोनों याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि ECI के फैसले पर रोक लगाई जाए.

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ADPR और PUCL ने फैसले की वैधता पर उठाए सवाल

ADPR की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का ये आदेश मनमाना है और इससे लाखों मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं. उन्होंने कहा है,

ECI ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी राज्य से हटाकर प्रत्येक नागरिक पर डाल दी है. आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेजों को बाहर कर दिया गया है. इसके कारण वंचित और गरीब समुदाय मुश्किल में पड़ गए हैं. 

PUCL ने भी ECI के इस फैसले की वैधता पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा है कि ECI ने इस प्रक्रिया के उद्देश्य को स्पष्ट नहीं किया है और न ही इससे होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कोई कदम उठाया है.

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