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सड़क पर मरते आदमी के पास लोग आए, मदद के लिए नहीं, चोरी करने

जिसे आप इंसानियत कहते हैं, उसका असली चेहरा देखिए. हमारे दौ़ड़-भाग वाले महानगरों का असली चरित्र यही है?

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फोटो - thelallantop
देश की राजधानी दिल्ली. 1 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाला शहर. कंक्रीट की सड़कें, कंक्रीट के घर. और दिल भी कंक्रीट के. वेस्ट दिल्ली के सुभाष नगर में बुधवार को एक घटना ने इंसानियत की नंगई दिखा दी. एक आदमी सड़क पर जा रहा था. उसे एक तेज रफ्तार टेंपो ने टक्कर मारी. 1 टक्कर इतनी भयानक थी कि आदमी उड़ता हुआ जा  गिरा. 2 टेंपो वाले की ढिठाई देखिए. वह आराम से टेम्पो से उतरता है. उतरकर सड़क किनारे पड़े उस आदमी को देखता है और बड़े आराम से टेम्पो में बैठकर चुपचाप फरार हो जाता है. इसके बाद और भी कई राहगीर वहां रुकते हैं और देख-दाख कर चलते बनते हैं. कोई उसकी मदद नहीं करता. कोई अस्पताल ले जाने की जहमत नहीं उठाता. 3 उसी सड़क पर एक रिक्शे वाला गुजर रहा है. वह रिक्शा रोकता है और घायल आदमी के पास आता है. आप उम्मीद कर सकते हैं कि वो मदद करने आ रहा है. 4 लेकिन नहीं. सड़क पर उस घायल आदमी का फोन पड़ा है. रिक्शे वाला उस फोन की तरफ बढ़ता है, उसे चुराता है और चलता बनता है. 5

 खून से लथपथ ये आदमी दर्द में तड़पते हुए मर जाता है. 

मरने वाले की पहचान हो गई है. उसका नाम मतीबुल था. पश्चिम बंगाल का रहने वाला था. यहां अकेला रहता था. दिन में ई-रिक्शा चलाता था. रात को चौकीदारी करता था. सुबह 5:40 बजे जब ये एक्सीडेंट हुआ, या यूं कहिए कि एक्सीडेंट पब्लिक मर्डर में बदला, तब मतीबुल अपनी ड्यूटी करके लौट रहा था. मतीबुल की पत्नी और दो बेटियां पश्चिम बंगाल में रहती हैं. वो यहां नौकरी करने आया था जिससे घर का खर्चा चल सके. जो भी थोड़ा बहुत कमाता होगा, घर भेजता होगा. शायद उसकी बेटियां उन्हीं पैसों से पढ़ पाती होंगी. जो हुआ, वो हमें हमारी असलियत दिखता है. एक समाज के तौर पर हम कितने गिरे हुए हैं. ये कैसे शहर हम लोग बना रहे हैं? उस शायर ने ग़लत नहीं लिखा था, तुम इस शहर में क्या नए आए हो रुक जाते हो जो हादसा देखकर!

इस घटना का वीडियो देखिए. कलेजा मुंह को आ जाता है.

https://www.youtube.com/watch?v=hbxhfgSJuAo

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