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राजीव गांधी सरकार में नंबर-2 रहे बूटा सिंह का निधन, PM मोदी ने ट्वीट कर दुख जताया

बूटा सिंह 86 साल के थे, अक्टूबर-2020 में उन्हें ब्रेन हैमरेज के बाद AIIMS में भर्ती कराया गया था.

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जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तो बूटा सिंह का भी दौर था. राजीव को सरकारें गिरानी हों या मुख्यमंत्री बदलने हों. सब बूटा करते. राजीव के भरोसेमंद. ये तस्वीर उसी दौर की है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह का दो जनवरी को निधन हो गया. बूटा सिंह 86 साल के थे. अक्टूबर-2020 में उन्हें ब्रेन हैमरेज के बाद AIIMS में भर्ती कराया गया था. इसके बाद से ही उनकी तबीयत लगातार ख़राब चल रही थी. दिल्ली में उन्होंने अंतिम सांस ली. बूटा सिंह राजीव  गांधी सरकार में देश के गृह मंत्री रहे, कृषि मंत्री  रहे. राजीव गांधी के भरोसेमंद लोगों में शुमार बूटा आगे चलकर बिहार के राज्यपाल और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति कमीशन के चेयरमैन भी बने. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके दुख जताया. मोदी ने लिखा –
“श्री बूटा सिंह अनुभवी प्रशासक थे, ग़रीबों और पिछड़ों की आवाज़ थे. उनके निधन से दुखी हूं. उनके परिवार और समर्थकों के साथ मेरी संवेदनाएं.”
राहुल गांधी ने ट्वीट किया -
"सरदार बूटा सिंह जी के देहांत से देश ने एक सच्चा जनसेवक और निष्ठावान नेता खो दिया है. उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा और जनता की भलाई के लिए समर्पित कर दिया, जिसके लिए उन्हें सदैव याद रखा जाएगा. इस मुश्किल समय में उनके परिवारजनों को मेरी संवेदनाएं."
बूटा सिंह की राजनीतिक पारी बूटा सिंह ने अपनी राजनीतिक पारी अकाली दल के साथ शुरू की थी. 1960 में कांग्रेस से जुड़े, जब जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. 1962 में पहली बार सांसद बने, लोकसभा पहुंचे. यहां से बूटा सिंह का एक दौर शुरू हुआ. आठ बार सांसद रहे. केंद्रीय मत्री रहे. राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहने के अलावा उन्होंने अपनी पहचान पंजाब के बड़े दलित नेता के रूप में बनाई. 1978 से 80 तक कांग्रेस के महासचिव रहे. सक्रिय राजनीति में दौर पूरा होने के बाद वे 2004 से 2006 तक बिहार के राज्यपाल रहे. भारतीय राजनीति के बड़े नाम बूटा सिंह अब नहीं रहे. लेकिन उनके ज़िक्र के साथ राजनीतिक पंडितों को वो दौर हमेशा याद आएगा, जब पत्रकारों के सामने खिलखिलाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी कहा करते थे -
"बूटा सिंह जी, अब अपनी कृपाण अंदर रखिए."
ये सुन क्या विरोधी, क्या पार्टी वाले..सब राहत की सांस लेते. क्योंकि वो बूटा का दौर था. राजीव को सरकारें गिरानी हों या मुख्यमंत्री बदलने हों. सब बूटा करते. सियासी पंडित कहते- एक और कटा, बूटा की कृपाण से. बूटा सिंह को श्रद्धांजलि.

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