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एक H-1B वीजा वाले को 10 अवैध प्रवासियों के बराबर बताया, अमेरिकी एक्सपर्ट का भारतीयों पर हमला

अमेरिकी राजनीतिक विश्लेषक Mark Mitchell ने कहा कि Silicon Valley के वर्क फोर्स का दो तिहाई हिस्सा विदेशी मूल का है और इसमें वालमार्ट जैसी कंपनियों में तो 85 से 90 फीसदी भारतीय नागरिक हैं. इनको वापस भेजना आर्थिक तौर पर वह 10 अवैध प्रवासियों को वापस भेजने के बराबर है.

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मार्क मिशेल अमेरिका के सबसे बड़े चुनावी सर्वेक्षणकर्ताओं में से एक हैं. (क्रेडिट - Via War Room)

अमेरिकी राजनीतिक विश्लेषक और मशहूर चुनावी सर्वेक्षणकर्ता मार्क मिशेल (Mark Mitchell) ने प्रवासी आईटी प्रोफेशनल्स की तुलना अवैध प्रवासियों से की है. उनका कहना है कि ‘एप्पल’ (Apple) जैसी तकनीकी कंपनियों में काम करने वाले एक सीनियर H1B वीजा पाए डेवलपर को वापस भेजना आर्थिक तौर पर 10 अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकालने (निर्वासित करने) के बराबर है.

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अमेरिका की टॉप सर्वेक्षण कंपनियों में से एक रैसमसन रिपोर्ट्स के CEO मार्क मिशेल ने कहा कि सिलिकॉन वैली के वर्कफोर्स का दो तिहाई हिस्सा विदेशी मूल का है और इसमें वालमार्ट जैसी कंपनियों में तो 85 से 90 फीसदी भारतीय नागरिक हैं. मिशेल ने इन प्रोफेशनल्स को 'तीसरी दुनिया' का इंजीनियर बता दिया. ‘तीसरी दुनिया’ (Third World) शब्द एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील और कम विकसित देशों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि अब इस शब्द का प्रयोग कम होता है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्क मिशेल ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पूर्व सलाहकार स्टीव बैनन के एक कार्यक्रम में भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स और H1B वीजा वालों के खिलाफ ये टिप्पणियां की. स्टीव बैनन राष्ट्रपति ट्रंप के मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA) पॉलिसी के समर्थक हैं. 'वॉर रूम विद स्टीव बैनन' नाम के शो के दौरान मिशेल ने H1B वीजाधारकों को वापस नहीं भेजने के लिए ट्रंप प्रशासन की कड़ी आलोचना की. उन्होंने कहा,

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हम एप्पल में काम करने वाले जितने भी H1B वीजा वाले सीनियर डेवलपर्स को वापस भेजते हैं, आर्थिक तौर पर वह 10 अवैध प्रवासियों को वापस भेजने के बराबर है. इसलिए मुझे समझ में नहीं आता कि हमने यह काम क्यों नहीं किया. इनमें से कुछ लोग एंट्री लेवल पर हैं. लेकिन अधिकतर लोग काफी अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं.

मिशेल ने कहा कि सिलिकॉन वैली की कंपनिया कम लागत वाले वर्कफोर्स के लिए अप्रवासी प्रोफेशनल्स पर बहुत अधिक निर्भर हैं. ये कंपनियां अमेरिकी लोगों को काम पर रखने से बचती हैं. उन्होंने कहा, 

तीसरी दुनिया के इंजीनियर आसानी से अमेरिकी श्रमिकों की जगह ले सकते हैं, क्योंकि अमेरिकियों को अपने परिवारों की देखभाल करनी पड़ती है और स्वास्थ्य बीमा थोड़ा ज्यादा महंगा होता है.

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उन्होंने आगे कहा कि अक्सर उम्रदराज अमेरिकी इंजीनियर्स की यह शिकायत होती है कि उन्हें अस्थायी वीजा वाले सस्ते श्रमिकों से रिप्लेस कर दिया जाता है. मार्क मिशेल की ये टिप्पणियां ऐसे समय में आई हैं जब हाल ही में जारी आंकड़ों से पता चला है कि सिलिकॉन वैली की तकनीकी कंपनियों में लगभग 66 फीसदी विदेशी मूल के लोग काम करते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया ने 2025 के उद्योग सूचकांक का हवाला देते हुए बताया है कि इनमें से 23 फीसदी भारतीय और 18 फीसदी चीनी नागरिक हैं.

H-1B वीजा के लिए सालाना 88 लाख रुपये

हाल ही में डॉनल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा के लिए सालाना 100,000 डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) शुल्क लगाने का एलान किया है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सभी स्वीकृत H-1B वीजा धारकों में 71 प्रतिशत भारत से आते हैं. चीन का हिस्सा 11.7 प्रतिशत है. H-1B वीजा आमतौर पर 3 से 6 साल की अवधि के लिए दिए जाते हैं. अमेरिका हर साल 85,000 H-1B वीजा लॉटरी सिस्टम से जारी करता है. ज्यादातर मामलों में नौकरी देने वाली कंपनियां H-1B वीजा का खर्चा उठाती हैं.

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