जब आतंकियों ने हमला किया तो वीर सिंह बस में थे. उनको गोलियां लग चुकी थी, 7 गोलियां लगने के बाद भी उनने अपनी एके-47 से 39 राउंड फायर किया और एक आतंकी को मार डाला. अगर वो ऐसा न करते तो शहीदों की संख्या और ज्यादा बढ़ जाती.मेरठ के शहीद सतीश चंद ने भी गोलियां लगने के बाद भी 32 राउंड गोली चलाई और एक आतंकी को भागते हुए गिरा दिया. इन दोनों के अलावा पशुपति नाम के जवान ने अपनी एके-47 से 20 राउंड गोलियां चलाकर एक आतंकी को मार डाला. इस हमले में आठ जवान शहीद हुए थे. 22 घायल हुए थे. अगर इन तीनों ने इतनी बहादुरी न दिखाई होती गोलियां लगने के बाद भी आतंकियों से मुकाबला न किया होता तो जाने कितने लोग और मारे जाते. ये बहादुर लोग होते हैं. जो बिना अपनी परवाह किए दूसरों के लिए जान दे देते हैं. वो ये नहीं सोचते कि वो ऐसा किसके लिए कर रहे हैं. दूसरी तरफ वो घटिया लोग होते हैं, जो अपनी जातियों से चिपके रहते हैं.
7 गोलियां लगने के बाद भी आतंकियों से लड़ रहे थे वीर सिंह
39 राउंड गोलियां चलाकर एक आतंकी को मारा, उस शहीद ने जिसे मरने के बाद चिता की जमीन नहीं दे रहे.
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हेड कॉन्स्टेबल वीर सिंह
कल आपने वो खबर पढ़ी होगी कि खुद को ऊंची जाति का मानने वाले लोगों ने शहीद की चिता के लिए जमीन देने में रोड़े अड़ा दिए थे. 'शहीद को चिता की जमीन नहीं देंगे, क्योंकि 'नीची' जाति का था' ये खुद को 'ऊंची जाति' बताने वाले छोटे लोग हैं. उनकी सोच छोटी है. अपनी जाति लिए बैठे रहें. जिंदगी भर बैठे रहें. अंत में भी इनके हाथ सिर्फ जाति रह जाएगी. जिन्हें कुछ करना होता है वो जीते जी बड़े काम कर जाते हैं, और बाकियों से ऊपर उठ जाते हैं. वीर सिंह ऐसे ही थे. जम्मू कश्मीर के पंपोर में जब आतंकी हमला हुआ उसमें 8 जवान शहीद हो गए. इनमें से तीन जवानों गोलियां लगने के बाद भी अपने दूसरे साथियों की जान बचाने में लगे रहे. गोलियां चलाते रहे, आतंकियों से लड़ते रहे. इनमें से एक जवान अस्पताल में है. जबकि वीर सिंह और सतीश चंद शहीद हो गए.
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