भारत में हिरासत में मौत यानी कस्टडियल डेथ एक गंभीर मानवीय और संवैधानिक- मुद्दा है.
हिरासत में 19 साल के लड़के की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई सेंट्रल जेल में 19 साल के लड़के की हिरासत में हुई मौत पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेजा और CCTV व मेडिकल रिकॉर्ड सुरक्षित रखने का आदेश दिया.


जब कोई व्यक्ति पुलिस या जेल प्रशासन की हिरासत में रहता है, तब उसकी सुरक्षा और जीवन की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से सरकार की होती है.
अगर उस इंसान की मौत हिरासत के दौरान हो जाती है, तो ये न केवल कानून व्यवस्था की नाकामी नहीं मानी जायेगी, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21- जो हर व्यक्ति को “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार” देता है उसका भी उल्लंघन होता है.
लेकिन ये सब मालूम होने के बावजूद हिरासत में लोगों की जाना जाती रही है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से पिछले 8 महीने में 11 कस्टडियल डेथ्स पर जवाब माँगा था, साथ ही नोटिस भी भेजा था. और अब मामला महाराष्ट्र का है, जहाँ एक 19 साल के लड़के की मौत हिरासत में हो गयी. मुंबई सेन्ट्रल जेल में.
उसे 16 सितंबर 2025 को गिरफ्तार किया गया था, और 24 सितंबर 2025 को वह जेल में मृत पाया गया.
परिवार का कहना है कि गिरफ्तारी के समय युवक पूरी तरह स्वस्थ था, लेकिन कुछ ही दिनों में उसकी मौत हो गई, जिससे यह आशंका गहरी हो गई कि उसके साथ जेल में शारीरिक तौर पर अत्याचार हुआ है यानी कस्टडियल टॉर्चर.
विक्टिम की मां ने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील फ़ाइल की. उन्होंने ये आरोप लगाया कि जेल अधिकारियों ने उनके बेटे के अस्पताल में भर्ती होने की बात छिपाई.
उनकी मांग थी कि FIR दर्जहो, और जितने भी सबूत हो सकते हैं, जैसे CCTV फुटेज, मेडिकल रिकॉर्ड, और डॉक्युमेंट्स- सब सुरक्षित रखे जाएँ.
हालाँकि, हाई कोर्ट ने नोटिस तो जारी किया, लेकिन सबूत को सुरक्षित रखने वाली बात नहीं मानी गयी.
अब इसी के खिलाफ ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा. स्पेशल लीव पिटीशन फ़ाइल की गयी .
सुनवाई करते हुए 13 अक्टूबर को जस्टिस एम.एम. सुंदरश और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेजा और ऑर्डर दिया कि आर्थर रोड जेल और काला चौकी पुलिस स्टेशन की 16 से 24 सितंबर तक की CCTV फुटेज और विक्टिम के मेडिकल रिकॉर्ड्स को सुरक्षित रखा जाए.
ये जजमेंट इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले से एक स्वतः संज्ञान यानी सूओ-मोटो मामले की सुनवाई कर रही है, जो देशभर में बढ़ती हिरासत में मौतों से जुड़ा है.
उस मामले में भी अदालत ने साफ़ कहा था कि CCTV फुटेज, थाने की डायरी और मेडिकल दस्तावेज़ ऐसे मामलों में सबसे ज़रूरी सबूत होते हैं.
ये मामला एक बार फिर उस बुनियादी सवाल को उठाता है-
जब राज्य की हिरासत में भी कोई नागरिक सुरक्षित नहीं है, तो न्याय और जवाबदेही की गारंटी कौन देगा?
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