ताइवान की सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी फॉक्सकॉन ने भारतीय कंपनी वेदांता के साथ किए जॉइंट वेंचर से हाथ खींच लिए हैं. 19 अरब डॉलर (1.56 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा) के इस समझौते के तहत गुजरात के अहमदाबाद में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाया जाना था. लेकिन फॉक्सवॉन ने समझौता रद्द कर भारत के सेमीकंडक्टर हब बनने के सपने को झटका दे दिया.
फॉक्सकॉन-वेदांता डील टूटने से 34 साल पहले भी भारत के सेमीकंडक्टर लीडर बनने के सपने को लगी थी आग
ये आरोप तक लगा था कि विदेशी ताकतों ने सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स लिमिटेड में आग लगवाई थी.

ये पहली बार नहीं है जब सेमीकंडक्टर की तकनीक में वैश्विक केंद्र बनने की भारत की कोई योजना पूरी तरह लागू नहीं हो पाई. भारत कई दशकों से इस तकनीक में वर्ल्ड लीडर बनने की कोशिश कर रहा है. 1976 में पंजाब के मोहाली में सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स लिमिटेड (SCL) नाम के सरकारी उपक्रम की स्थापना इस क्षेत्र में भारत का एक बड़ा कदम था. लेकिन 1989 में SCL के प्लांट में लगी भीषण आग ने इस उपक्रम को बर्बाद कर दिया.
कहानी SCL कीअंग्रेजी अखबार द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके मंत्रिमंडल ने 1976 में 'सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स' को गठन करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी थी. उस समय ताइवान, इज़रायल, कोरिया और चीन सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में बड़ी ताकत बनने के आसपास भी नहीं थे. आज चीन और ताइवान को इस तकनीक में महारत हासिल हो चुकी है.
इंदिरा गांधी सरकार के प्रस्ताव पारित करने के 8 साल बाद 1984 में SCL की शुरुआत हुई. इस सरकारी उपक्रम का मकसद मैन्युफैक्चर लीडिंग सर्किट और इलेक्ट्रॉनिक्स का डिजाइन और निर्माण करना था. बताया जाता है कि ये कंपनी भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की नींव बन सकती थी. अगर आज ये कंपनी होती तो हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था की गति और बेहतर होती.
द ट्रिब्यून की फरवरी 1989 की एक रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने शुरुआत से ही उम्मीद के मुताबिक सेमीकंडक्टर का उत्पादन शुरू कर दिया था. उस समय इस क्षेत्र में दुनिया का कोई भी देश या कंपनी SCL से बहुत आगे नहीं थी. सब कुछ जैसा सोचा था वैसे ही जा रहा था.
दी लल्लनटॉप के एक इंटरव्यू में बिजनेस टुडे के मैनेजिंग एडिटर सिद्धार्थ ज़राबी बताते हैं,
“उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने इस फैक्ट्री के लिए सिर्फ एक रुपये में जमीन दी थी. धूल को नियंत्रण में रखने के लिए इस फैक्ट्री के चारों तरफ बहुत ऊंचे-ऊंचे फव्वारे लगाए गए थे. यूरेका फोर्ब्स जो एक काफी जानी पहचानी कंपनी है, उस वक़्त उसके उपकरणों में SCL की चिप्स लगाई गई थीं.”
लेकिन 7 फ़रवरी 1989 को SCL में रहस्यमय तरीके से आग लग जाती है. इस आग में करोड़ों रुपये के विदेशी उपकरण बर्बाद हो गए. इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के अधिकारियों ने जांच के लिए SCL का दौरा किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईबी की पड़ताल में आग लगने की कोई ठोस जानकारी कभी सामने नहीं आ पाई.
वहीं SCL कर्मचारी संघ ने मंत्रालय को एक मेमोरैंडम सौंपा. इसमें यूनियन ने इस आशंका से इनकार किया कि किसी अंदरूनी गड़बड़ी से प्लांट में आग लगी थी. हालांकि यूनियन का मानना था कि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की ओर से पहल की कमी और कुप्रबंधन के कारण आग पर काबू नहीं पाया जा सका.
हालांकि सिद्धार्थ जराबी फैक्ट्री में लगी आग के बारे में कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं,
कहां है SCL?“उस वक़्त फैक्ट्री में आग बहुत ही संगठित तरह से लगी. फैक्ट्री की अलग-अलग जगहों पर अचानक से एक साथ आग लगी थी. आज भी आग क्यों और कैसे लगी इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है. कुछ लोग मानते हैं कि ये आग विदेशी ताकतों द्वारा लगाई भी हो सकती है, क्योंकि उस वक़्त सिर्फ ताइवान एक ऐसा देश था जो हमसे आगे था. चीन की तो पूछ दूर-दूर कहीं नहीं थी.”
SCL में आग लगने के बाद उस वक़्त के तत्कालीन केंद्रीय राज्य मंत्री के. आर. नारायणन का बयान आया. उन्होंने कहा कि SCL जल्द ही फिर से उत्पादन करने लगेगी. ये भी कहा गया कि नई तकनीक लाई जाएगी और कर्मचारियों को आश्वासन दिया गया कि कोई छंटनी नहीं होगी. हालांकि, इस काम में आठ साल लग गए. आख़िरकार 1997 में कंपनी को दोबारा शुरू किया गया.
फिर साल 2000 में SCL की कुछ हिस्सेदारी निजी निवेशकों को देने की कोशिश भी की गई. लेकिन वे सरकार के साथ किसी भी समझौते पर हामी न भर सके. ट्रिब्यून ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया कि सरकार द्वारा की गई अत्यधिक देरी से भारत सेमीकंडक्टर सेक्टर में पिछड़ गया.
आगे चलकर 2006 में SCL को एक शोध और विकास संस्थान के रूप में गठित कर दिया गया. इसका नाम बदल कर 'सेमीकंडक्टर लैबोरेटरी' रख दिया गया. ये विभाग अब अंतरिक्ष विभाग के साथ काम करता है.
अब आगे क्या?फॉक्सकॉन के डील से पीछे हटने से भारत के सेमीकंडक्टर लीडर बनने की योजना पर कोई असर नहीं पड़ेगा, ऐसा सरकार कह रही है. उसकी दलील है कि इन दोनों ही कंपनियों के पास सेमीकंडक्टर बनाने का अनुभव नहीं है. केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने ट्विटर पर लिखा कि डील टूटने के बाद फॉक्सकॉन और वेदांता अब अपनी-अपनी रणनीतियों के तहत भारत में निवेश करेंगी. फॉक्सकॉन ने भी इसके संकेत दिए हैं. उसका कहना है कि वो भारत छोड़कर नहीं जा रही, यहां अकेले ही प्लांट लगाएगी. इसके लिए आवेदन की तैयारी की जा रही है.
इस बीच अमेरिकी टेक्नॉलजी कंपनी माइक्रोन की चर्चा चल पड़ी है. खबरों के मुताबिक कंपनी ने हाल ही में भारत में सेमीकंडक्टर सेक्टर के लिए अरबों डॉलर के निवेश की बात कही थी. हालांकि ये निवेश सेमीकंडक्टर के उत्पादन के लिए नहीं, बल्कि टेस्टिंग चिप और उनकी पैकेजिंग के लिए होगा.