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मुंबई ट्रेन ब्लास्ट: 2015 में फांसी की सजा, 2025 में बरी, इस बीच क्या-क्या हुआ?

Mumbai Train Blast केस में स्पेशल कोर्ट ने कमाल अहमद मोहम्मद वकील अंसारी, मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान बशीर खान को मौत की सजा सुनाई थी.

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2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट में 189 लोगों की मौत हुई थी. (India Today)

साल 2006 में मुंबई लोकल ट्रेन में हुए बम धमाकों के केस में बड़ा फैसला आया. बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस केस में दोषी ठहराए गए 12 लोगों को बरी कर दिया है. लेकिन इस फैसले को आने में 10 साल लग गए. जबकि इस केस के दोषियों की जिंदगी के कीमती 18-19 साल जेल में ही गुजर गए.

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11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेन में हुए सात सिलसिलेवार धमाकों में 189 लोगों की मौत हो गई थी और 800 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. इस मामले में 13 लोगों पर केस चला. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में एक स्पेशल कोर्ट ने महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम्स एक्ट (MCOCA) के तहत एक आरोपी को बरी कर दिया, बाकी 12 में से 5 को मौत की सजा और 7 को उम्रकैद की सजा मिली थी.

इस मामले में स्पेशल कोर्ट ने बिहार के कमाल अहमद मोहम्मद वकील अंसारी, मुंबई के मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, ठाणे के एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, सिकंदराबाद के नवीद हुसैन खान और जलगांव के आसिफ खान बशीर खान को मौत की सजा सुनाई थी. कमाल अहमद मोहम्मद वकील अंसारी की 2021 में जेल में मौत हो गई थी.

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वहीं तनवीर अंसारी, मोहम्मद माजिद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और जमीर अहमद लतीफुर रहमान शेख को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

जुलाई 2025 में गठित जस्टिस अनिल एस किलोर और जस्टिस श्याम सी चांडक की स्पेशल बॉम्बे हाई कोर्ट बेंच ने 31 जनवरी को मैराथन नियमित सुनवाई पूरी की. सबूतों की कमी और कई कानूनी खामियों के आधार पर उच्च न्यायालय ने सोमवार, 21 जुलाई को सभी 12 दोषियों को बरी करने का फैसला सुनाया.

आखिर क्यों लगे 10 साल?

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सितंबर 2015 में स्पेशल कोर्ट ने दोष सिद्ध करने के बाद सजा सुनाई थी. अक्टूबर 2015 में महाराष्ट्र सरकार ने हाई कोर्ट में मौत की सजा की पुष्टि के लिए याचिका दाखिल की थी. क्रिमिनिल प्रोसीजर कोड (CrPC) की धारा 366 के तहत सेशन कोर्ट से मिली मौत की सजा को हाई कोर्ट में पेश करना जरूरी है.

जब तक हाई कोर्ट सजा की पुष्टि नहीं करता, तब तक मौत की सजा पर अमल नहीं किया जाता है. अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 497 ने CrPC की धारा 366 की जगह ले ली है.

जनवरी 2019 में जब यह मामला पहली बार बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने आया तो उसने पाया कि नागपुर जेल अधीक्षक ने अक्टूबर 2015 में दोषियों को एक सूचना जारी की थी. इसमें उनसे पूछा गया था कि क्या वे स्पेशल कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर करना चाहते हैं. हालांकि, मौत की सजा की पुष्टि की याचिकाओं के लंबित होने का जिक्र किया गया था. इसलिए हाई कोर्ट ने दोषियों को नए नोटिस जारी करने का निर्देश दिया, जिसके बाद उन्होंने अपील दायर की.

मौत की सजा की पुष्टि की याचिकाएं तीन बेंचों के सामने आईं, जिनमें पूर्व जस्टिस नरेश पाटिल, जस्टिस बीपी धर्माधिकारी और जस्टिस एसएस जाधव शामिल हैं. हालांकि, ये जज रिटायर होने वाले थे इसलिए सुनवाई नहीं हो सकी.

जनवरी 2022 में अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि जस्टिस पीके चव्हाण की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती. नवंबर 2022 में दो जजों की बेंच का नेतृत्व कर रहे जस्टिस एएस गडकरी ने याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया.

उसी साल जस्टिस आरडी धानुका (अब रिटायर हो चुके हैं) की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाओं की सुनवाई टाल दी क्योंकि पीठ पर 'काम का ज्यादा बोझ' था. ऐसा तब हुआ जब राज्य सरकार ने हाई कोर्ट को बताया कि 169 वॉल्यूम में उपलब्ध सबूत, लगभग 2000 पन्नों के मृत्युदंड के फैसले और 100 से ज्यादा गवाहों को देखते हुए सुनवाई में कम से कम पांच से छह महीने लगेंगे.

सितंबर 2023 में जस्टिस नितिन डब्ल्यू साम्बरे की अध्यक्षता वाली बेंच ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई कि वो इस मामले को लेकर गंभीर नहीं है. दरअसल, कोर्ट को बताया गया था कि राज्य सरकार ने अभी तक स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर (SPP) को नियुक्त नहीं किया है.

तब बेंच ने चेतावनी दी थी कि अगर दो दिनों में SPP को नियुक्त नहीं किया गया तो राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को तलब किया जाएगा. तब जाकर 8 सितंबर 2023 को सीनियर वकील राजा ठाकरे को SPP नियुक्त किया गया. जस्टिस साम्बरे ने दिसंबर 2023 तक याचिकाओं पर सुनवाई की, लेकिन उनका हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में ट्रांसफर हो गया. कुछ महीनों तक फिर ये केस अधर में लटक गया.

आखिरकार जुलाई 2024 में हाई कोर्ट की एक स्पेशल बेंच गठित की गई, जिसने लगातार छह महीने में 70 से ज्यादा बार सुनवाई की और जनवरी 2025 में फैसला सुरक्षित रख लिया. जुलाई 2025 में फैसला आया और सभी 12 लोगों को बरी कर दिया गया.

मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में जो दोषी बरी किए गए, उनकी जिंदगी के सबसे अहम साल जेल में बीत गए. ये लोग जब जेल से रिहा होंगे तो उनके सामने एक बड़ा सवाल खड़ा होगा कि 18-19 साल जेल में बिताने के बाद अब जिंदगी कहां से शुरू करें.

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