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1984 के दंगों पर बनी फिल्म को CBFC ने 9 जगह से कुतर दिया

इस फिल्म में सोहा अली खान और वीर दास पंजाबी दंपत्ति की भूमिका में हैं.

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फिल्म "31 अक्टूबर" के दृश्य में सोहा एवं वीर दास.
नाम तो है केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड. यानी CBFC. काम है फिल्मों को उनके कंटेंट के मुताबिक सादा या एडल्ट सर्टिफिकेट देकर पास करना और सिनेमाघरों की ओर जाने देना. लेकिन लंबे समय से ये एक कुतरने वाली संस्था बन गई है. ज्यादा से ज्यादा ध्यान नैतिकता पर और जो भी सेंसर सदस्य को निजी रूप से आपत्तिजनक लगे उसे कैंची चलाकर काट फेंकना. एक और गंभीर फिल्म के साथ ऐसा ही हुआ है.
सोहा अली खान और वीर दास के अभिनय वाली फिल्म '31 अक्टूबर' को बोर्ड ने लंबे समय लटकाए रखने के बाद अब पास भी किया है तो काट-कूटी करके. फिल्म के निर्देशक हैं शिवाजी लोटन पाटील जिनकी मराठी फिल्म 'धग' को 2012 में तीन नेशनल अवॉर्ड मिले थे. उनकी ये पहली हिंदी फिल्म है. निर्माण हैरी सचदेवा ने किया है.
उन्होंने बताया कि चार महीने के इंतजार के बाद फिल्म को पास किया गया है. इसमें से हिंसा और ख़ून के दृश्य काट दिए गए हैं. फिल्म में से 9 संवाद और दृश्य काट दिए गए हैं. बोर्ड का कहना था कि इन दृश्यों से कुछ समुदाय सड़कों पर उतर आते.
'31 अक्टूबर' को रिवाइजिंग कमिटी के समक्ष कई बार पेश करना पड़ा. वहां ऐसे सीन छोटे करने के लिए कहा गया जो छह से सात मिनट लंबे थे. अगर कोई सीन इतना लंबा है तो कलात्मकता की वजह से लेकिन वहां उस कलात्मकता की हत्या कर दी गई. कई बार संपादन का ये काम चला.
बताया गया है कि फिल्म में से सभी गालियों को बीप कर दिया गया है. यहां तक कि 'साला' जैसा आम शब्द भी इसमें बोलने नहीं दिया गया है. पहलाज निहलानी की अध्यक्षता वाला यह प्रमाणन बोर्ड अस्तित्व में आने के बाद से ऐसा करता रहा है. जहां ये बेहद आपत्तिजनक फिल्मों को सीधे तौर पर पास कर देते हैं, गंभीर मुद्दों पर बनी 'उड़ता पंजाब' और '31 अक्टूबर' जैसी फिल्मों को लेंस लेकर देखते हैं. एक समय में जब पहलाज खुद निर्माता हुआ करते थे तो तब प्रमाणन बोर्ड की इन्हीं कारणों से निंदा करते थे और आज वे खुद ऐसा कर रहे हैं.
इस बीच फिल्म के निर्माता का दावा है कि उन्होंने इस कहानी की आत्मा को नहीं मरने दिया है. मौजूदा वर्जन इस विषय से न्याय करता है.
ये कहानी दिल्ली में स्थित है. 31 अक्टूबर के बाद के घटनाक्रम पर आधारित. वो दिन जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उन्हीं के दो सिख अंगरक्षकों ने गोली मार दी थी. उसके बाद से राजधानी में सिख विरोधी दंगे फैले और फैलाए गए. सोहा इसमें तेजिंदर कौर की भूमिका निभा रही हैं. वे अपने पति (वीर दास), 10 महीने की बच्ची और जुड़वा बेटों के साथ राजधानी में रहती हैं. दंगों की उस रात में यह परिवार, अन्य लाखों परिवारों की तरह जान बचाने की लड़ाई लड़ता है.
फिल्म की शूटिंग लुधियाना में की गई. वहीं दिल्ली का सेट बनाया गया. इसे लंदन फिल्म फेस्टिवल और वैंकूवर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शन के लिए चुना जा चुका है. 30 अक्टूबर को इसे रिलीज किया जाना है.
फिल्म का पोस्टर.
फिल्म का पोस्टर.

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