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केरल बाढ़ के हीरो आईएएस कन्नन गोपीनाथन ने कश्मीर मसले पर नौकरी छोड़ते हुए ये बातें कही हैं

नौकरी छोड़ दी. अब न कोई सेविंग्स है, न ही रहने को अपना ख़ुद का घर.

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केरल बाढ़ के दौरान उन्होंने ख़ुद राहत कार्यों में मदद दी थी. किसी अनजान आदमी की तरह. बतौर सिविल सर्वेंट वो एक मौके पर नरेंद्र मोदी के साथ भी नज़र आए. (फोटोः एफबी/कन्नन गोपीनाथन)
केरल कैडर के 2012 बैच के IAS अफसर कन्नन गोपीनाथन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. वो दादरा एवं नगर हवेली में सचिव के पद पर काम कर रहे थे. पावर एंड रीन्यूएबल एनर्जी डिपार्टंमेंट में.
जम्मू-कश्मीर में उपजे राजनीतिक हालात को उन्होंने अपने इस्तीफे का सबसे बड़ा कारण बताया है. गोपीनाथन ने कहा,'मुझे फिर से बोलने का अधिकार चाहिए. मैं अपनी मर्जी का जीवन चाहता हूं. एक दिन के लिए ही सही'. 21 अगस्त को उन्होंने इस्तीफा सौंप दिया. हालांकि अभी तक इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है. एक मलयाली वेबसाइट
को दिए इंटरव्यू में कन्नन गोपीनाथन ने अपने इस्तीफे की वजहें साझा की हैं.
गोपीनाथन ने कहा,
"जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने एक राज्य को बंद कर दिया और लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन तक किया. अगर आप पूछेंगे कि मैं उस वक्त क्या कर रहा था? मेरे पास देने के लिए कम-से-कम एक जवाब तो होगा कि मैंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था.
कन्नन अपने पिता के साथ.
कन्नन अपने पिता के साथ.

मैं इस उम्मीद के साथ सिविल सर्विस का हिस्सा बना था कि मैं उन लोगों की आवाज बनूंगा जिनको चुप करा दिया गया है. सवाल ये नहीं है कि मैंने इस्तीफा क्यों दिया, बल्कि ये है कि मैं इस्तीफा कैसे नहीं देता. मुझे नहीं लगता कि मेरे इस्तीफे से कोई फर्क पड़ने वाला है. लेकिन जब देश अशांति के दौर से गुजर रहा है, कोई मुझसे ये पूछे कि मैंने क्या किया. मैं ये नहीं कहना चाहता कि मैं छुट्टी लेकर पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया था. नौकरी छोड़ देना कहीं बेहतर विकल्प है.
हम अक्सर ये बात करते हैं कि सिस्टम में रहकर ही सिस्टम को बदलने की कोशिश करनी चाहिए. मैंने काफी कोशिश की. लेकिन मुझे सिस्टम के सही होने की कोई उम्मीद नहीं है. लोग जानते हैं कि मैंने उनके लिए क्या किया. लेकिन वो पर्याप्त नहीं है. मेरे पास कोई सेविंग्स नहीं हैं. मैं सरकारी घर में रह रहा हूं. अगर मुझे घर छोड़ने के लिए कहा गया तो मेरे पास कोई ठौर नहीं होगा. मेरी पत्नी के पास नौकरी है. वो मेरी मददगार है. यही बात मुझे हिम्मत देती है."
द वायर से बातचीत में कन्नन गोपीनाथन ने ये भी कहा कि "ये न तो यमन है और न ही 70 का दशक चल रहा है. जहां आप लोगों के मौलिक अधिकारों को खत्म कर देंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा. लगभग 20 दिनों से पूरे कश्मीर में पहरा है और हर तरह की पाबंदियां हैं और इसे लेकर मैं चुप नहीं बैठ सकता था. मुझे खुलकर बोलने के लिए अपने पद से इस्तीफा ही क्यों ना देना पड़े और मैंने यही किया है."

कन्नन अपनी पत्नी और बच्चे के साथ.
कन्नन अपनी पत्नी और बच्चे के साथ.
केरल में आई बाढ़ में गुमनाम रहकर की थी मदद
अगस्त 2018 में केरल में भयानक बाढ़ आई थी. उस वक्त कन्नन गोपीनाथन दादरा और नगर हवेली में डिस्ट्रिक्ट कलक्टर के पद पर काम कर रहे थे. केरल उनका घर है. बाढ़ की भारी आपदा को देखकर वो केरल पहुंचे. बिना किसी को पहचान बताए उन्होंने बाढ़ में फंसे लोगों की मदद की. जब फोटो वायरल हुई, तब लोगों ने कन्नन के बारे में जाना. दादरा एवं नगर हवेली प्रशासन की तरफ से उन्होंने केरल के सीएम आपदा राहत फंड में एक करोड़ रुपये का चेक भी दिया था.
kannan gopi in kerala floods
केरल की बाढ़ में गुमनाम रहकर मदद करने के लिए चर्चा में रह चुके हैं. (फोटो: ट्विटर)

इस्तीफे पर जारी है बहस
आर्टिकल 370 में बदलाव के क्या परिणाम होंगे, ये भविष्य के पिटारे में कैद है. इस फैसले का समर्थन और विरोध करने वालों के अपने-अपने तर्क हैं. कन्नन गोपीनाथन के इस्तीफे के बाद से इस बहस की रफ्तार तेज हो गई है. सोशल मीडिया पर उनका नाम खूब चर्चा में है.
कोई उनको हीरो बता रहा है तो कोई मौकापरस्त. कई लोग ये भी कह रहे हैं कि कन्नन को अपने राज्य के अंदर हो रही हिंसा के बारे में भी बोलना चाहिए. कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि जब केरल में कम्युनिस्ट राजनैतिक विरोधियों की हत्याएं करवाते हैं तब कन्नन जैसे लोग कुछ नहीं बोलते. लोगों का कहना है कि उनका ये सेलेक्टिव विरोध नहीं चलेगा.
कन्नन एक चाय बागान में पत्ते इकट्ठा करते हुए. दूसरी ओर, बैडमिंटन प्लेयर पुलेला गोपीचंद के साथ.
कन्नन खेती में हाथ आज़माते हुए. दूसरी ओर, बैडमिंटन प्लेयर पुलेला गोपीचंद के साथ.

कन्नन गोपीनाथन को सपोर्ट करने वालों की भी कोई कमी नहीं है. सरकार को जम्मू-कश्मीर के मसले पर घेरा जा रहा है. उनके समर्थकों के अनुसार, सरकार लोगों की आवाज दबा रही है, फिर भी कन्नन गोपीनाथन जैसे अफसरों का बोलना उम्मीद की रौशनी को तेज करता है. सोशल मीडिया पर कन्नन को केरल की बाढ़ के दौरान की गई मदद के लिए भी याद किया जा रहा है. कईयों का मानना है कि कन्नन जैसे अफसर इस देश के लिए बने ही नहीं हैं.
कन्नन प्रशासन के रवैये से भी परेशान चल रहे थे. 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने चुनाव आयोग से शिकायत की थी कि बड़े अधिकारी चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. जिसके बाद उन्हें सिलवासा के कलक्टर के पद से हटाकर कम रुतबे वाला विभाग दे दिया था.
कश्मीर के पहले यूपीएससी टॉपर शाह फैसल ने भी कश्मीर में बिगड़े हालातों से नाराज़ होकर इस्तीफा दे दिया था. अधिकारी से नेता बने शाह फैसल जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने का जमकर विरोध कर रहे हैं. कुछ दिन पहले वो विदेश जाने की तैयारी में थे. उन्हें दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से हिरासत में लेकर वापस श्रीनगर भेज दिया गया था. फिलहाल वो अपने घर में नजऱबंद हैं.


वीडियो: नेता नगरी: 370 के बाद कश्मीर में अमित शाह और पीएम मोदी का नया प्लान